वर्ष 1949 से जयपुर ही राजस्थान की राजधानी है। इस दौरान कई नए जिले बने, लेकिन जयपुर का विभाजन नहीं किया गया। अब जबकि राज्य सरकार ने जयपुर को दो जिलों में बांट दिया गया है तो नया सवाल खड़ा हो गया है कि राजस्थान की राजधानी बदलेगी या दोनों जिलों को समान रूप से राजधानी का दर्जा दिया जाएगा। पहली बार राजस्थान में एकसाथ 19 जिले और 3 संभाग बनाए गए हैं। इस तरह प्रदेश में अब 50 जिले और 10 संभाग हो गए हैं। चुनावी साल में इस घोषणा के कई मायने हैं।
राजस्थान में पिछले 14 साल से कोई नया जिला नहीं बना है। वसुंधराराजे की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने 26 जनवरी 2008 में प्रतापगढ़ को आखिरी बार जिला बनाया था। इसके बाद तीन सरकारें आईं और हर सरकार ने नए जिलों के लिए कमेटी बनाई, लेकिन जिले नहीं बनाए। वसुंधराराजे के दूसरे कार्यकाल में भी नए जिलों के गठन के लिए रिटायर्ड आईएएस परमेशचंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। 2014 में बनाई इस कमेटी ने 2018 में सरकार को रिपोर्ट भी दे दी, लेकिन सरकार ने कोई नया जिला नहीं बनाया। उधर, सत्ता बदली तो गहलोत सरकार ने परमेशचंद कमेटी की रिपोर्ट को मानने से ही इनकार कर दिया और नए सिरे से रिपोर्ट तैयार करने के लिए रामलुभाया कमेटी बना दी।
दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस कमेटी का कार्यकाल 6 माह के लिए बढ़ा दिया तो लगा नए जिलों की घोषणा खटाई में पड़ गई है। लेकिन बजट पर जबाव में मुख्यमंत्री की 19 नए जिले बनाने का ऐलान कर सबको चौंका दिया। गहलोत के इस मास्टरस्ट्रोक से विपक्ष भी हक्का बक्का रह गया। जिस विधायक ने मांगा वहां तो जिला मिला ही, जहां विधायक विपक्ष का था और उसने मांग नहीं की वहां भी जिला देकर गहलोत ने विरोधियों से तालियां बजवा दी।
चुनावी साल में मुख्यमंत्री के इस दांव से सब चकराए हैं। नए जिले बनने इन इलाकों में जश्र मनाया जा रहा है। हालांकि इस घोषणा के बाद भी राजस्थान से क्षेत्रफल में छोटे दो राज्यों उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में ज्यादा जिले हैं। उत्तरप्रदेश में कुल जिलों की संख्या 75 हैं तो मध्यप्रदेश में यह संख्या 55 हैं। संभाग जरूर मध्यप्रदेश के बराबर 10 हो गए हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस सियासी दांव से गहलोत ने 60 विधानसभा क्षेत्रों को साधा है और चुनाव में विपक्ष से बड़ा मुद्दा छीन लिया है। यह बात अलग है कि कांग्रेस को चुनाव में इसका कितना फायदा होगा।
2023-03-18