तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन गया है। इस खबर से आप सभी वाकिफ होंगे।
अब इसी बात को जरा दूसरे तरीके से कहते हैं…कमाई के मामले में देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी नहीं रह गई।
जी हां, कमाई के मामले में तृणमूल कांग्रेस देश में भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। …और इस पार्टी का सबसे बड़ा जरिया हैं- इलेक्टोरल बॉन्ड।
तकनीकी रूप से देखें तो राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने से तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दान लेने की उसकी एलिजिबिलिटी पर भी फिलहाल तो कोई सवाल नहीं है, मगर इन नियमों में ऐसी तकनीकी बारीकियां जरूर हैं जो उसके इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाने पर सवाल खड़े कर सकती हैं।
2021-22 में तृणमूल कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये 528 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि 2020-21 में ये कमाई महज 42 करोड़ के आस-पास थी।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम की शुरुआत 2018 में हुई थी। तब से अब तक भाजपा के अलावा अगर दूसरी कोई पार्टी इस योजना से बड़ा फायदा ले पाई है तो वो तृणमूल कांग्रेस ही है। अब 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उसकी पहचान पर उठे सवाल इस कमाई को भी डेंट पहुंचा सकते हैं।
जानिए, क्या है तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय पहचान का पेंच और कैसे ये पेंच इलेक्टोरल बॉन्ड्स से हो रही कमाई पर ग्रहण भी लगा सकता है…
पहले समझिए, TMC का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिना क्यों?
जिन 4 राज्यों में TMC को स्टेट पार्टी का दर्जा था…उनमें से दो राज्यों में छिन गया सिंबल
राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए चुनाव आयोग की तीन शर्ते होती हैं-
लोकसभा की कुल सीटों में से 2% सीटें कम से कम तीन राज्यों जीतना जरूरी है।
4 या ज्यादा राज्यों के विधानसभा चुनाव में कम से-कम 6% वोट हासिल हुआ हो।
4 या इससे ज्यादा राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी की मान्यता मिली हो।
तृणमूल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा तीसरी शर्त पूरी करने पर मिला था। पार्टी को पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में स्टेट पार्टी का दर्जा मिला हुआ था।
मगर अब चुनाव आयोग ने मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस का स्टेट पार्टी का दर्जा छीन लिया है। इसकी वजह से पार्टी अब सिर्फ दो ही राज्यों में स्टेट पार्टी रह गई है और राष्ट्रीय पार्टी बनने की शर्त अब पूरी नहीं करती है।
अरुणाचल प्रदेश में आखिरी विधानसभा चुनाव 2019 में हुआ था। इसमें तृणमूल कांग्रेस ने कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारा था।
मणिपुर में आखिरी विधानसभा चुनाव 2017 में हुआ था। इसमें तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर सिर्फ 1.41% ही था। पार्टी ने 60 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 1 जीती थी।
अब जानिए, कैसे ये हालात TMC की कमाई पर ग्रहण लगा सकते हैं
तृणमूल की कमाई का 96% इलेक्टोरल बॉन्ड्स से…इसके लिए लेटेस्ट चुनाव में 1% वोट शेयर जरूरी
तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव आयोग को जो वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक 2021-22 में उसने 545 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाई की है।
इसमें से 528 करोड़ से ज्यादा की कमाई इलेक्टोरल बॉन्ड्स से हुई है। यानी कुल कमाई का 96% से ज्यादा हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड से ही आया है।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स की स्कीम 2018 में लॉन्च की गई थी। इलेक्टोरल बॉन्ड कौन खरीद सकता है और कौन सी पार्टी इनके जरिये दान ले सकती है, इसके लिए नियम तय हैं।
नियम के मुताबिक जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के सेक्शन 29A के तहत रजिस्टर्ड कोई भी पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दान ले सकती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उसने पिछले लोकसभा चुनाव या पिछले किसी विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट शेयर हासिल किया हो।
अब ये नियम ही तृणमूल कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।
2023 में तृणमूल कांग्रेस ने दो राज्यों में चुनाव लड़ा…जहां स्टेट पार्टी का दर्जा, वहीं वोट शेयर 1% से भी कम
इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाने के लिए तृणमूल कांग्रेस की एलिजिबिलिटी सबसे लेटेस्ट चुनावों में उसके परफॉर्मेंस के आधार पर ही देखी जाएगी।
2023 में तृणमूल कांग्रेस ने अब तक दो राज्यों मेघालय और त्रिपुरा के विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारे हैं।
मेघालय में पार्टी का वोट शेयर 13.78% है। उसने 59 सीटों में से 5 पर जीत भी हासिल की है, लेकिन दिक्कत ये है कि मेघालय में तृणमूल कांग्रेस को स्टेट पार्टी का दर्जा नहीं हासिल है।
त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस स्टेट पार्टी है, लेकिन यहां पार्टी का वोट शेयर महज 0.88% ही रहा। राज्य की 60 में से एक भी सीट उसने नहीं जीती है।
कानून में ये स्पष्ट नहीं कि 1% से ज्यादा वोट शेयर कौन सा देखा जाएगा
इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर बनाए गए नियमों में ये स्पष्टता नहीं है कि इन बॉन्ड के जरिये दान लेने वाली पार्टी के किस चुनावी परफॉर्मेंस के आधार पर उसकी एलिजिबिलिटी तय होगी।
नियम की भाषा के मुताबिक…
last general election to the House of the People or a Legislative Assembly.
यानी पिछले लोकसभा चुनाव या किसी विधानसभा चुनाव में 1% से ज्यादा वोट शेयर होना चाहिए।
मगर ये स्पष्ट नहीं है स्टेट पार्टी का दर्जा जिन दलों को मिला हुआ है, उनका परफॉर्मेंस क्या उन्हीं राज्यों में देखा जाएगा जहां वो स्टेट पार्टी के तौर पर रजिस्टर्ड हैं।
ये भी स्पष्ट नहीं है कि अगर किसी भी हालिया विधानसभा चुनाव के मुकाबले पिछले (यानी 2019 के) लोकसभा चुनाव में वोट शेयर ज्यादा था तो किस परफॉर्मेंस को आधार माना जाएगा।
स्टेट पार्टी के दर्जे वाले राज्यों में परफॉर्मेंस देखा जाए तो तृणमूल के लिए हो सकती है मुश्किल
तृणमूल को अभी पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा दो ही राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा हासिल है। इनमें सबसे हाल में विधानसभा चुनाव त्रिपुरा में हुए हैं।
इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर 0.88% ही है, यानी 1% से कम। यानी इलेक्टोरल बॉन्ड्स के लिए एलिजिबिलिटी का आधार अगर स्टेट पार्टी के दर्जे वाले राज्यों में लेटेस्ट परफॉर्मेंस को माना गया तो तृणमूल इस क्राइटेरिया से बाहर हो सकती है।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स से तृणमूल की कमाई भाजपा की आधी…मगर ग्रोथ सबसे तेज
इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये होने वाली कमाई के मामले में 2018 से ही भाजपा सबसे आगे रही है।
मगर इस मद में मिल रहे दान में सबसे तेज ग्रोथ तृणमूल कांग्रेस की है। तृणमूल कांग्रेस की इस ग्रोथ में दो बातें बहुत चौंकाने वाली हैं।
पहली…2020-21 में कोविड के दौर में हर पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिला दान घट गया। इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस को मिला दान भाजपा से करीब दोगुना था।
दूसरी बात…2021-22 में भाजपा को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिला दान फिर 1 हजार करोड़ के ऊपर पहुंच गया। लेकिन फिर भी ये 2019-20 में मिले 2555 करोड़ के मुकाबले बहुत कम था।
तृणमूल को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला दान सीधे 528 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। 2019-20 में उसे महज 100 करोड़ रुपए ही इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये मिले थे।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये कमाई होने वाले कमाई का सच पर्दे में…
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हर पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये मिलने वाले दान का ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपता है। मगर ये ब्योरा सीलबंद लिफाफे में होता है।
राष्ट्रीय दलों और स्टेट पार्टियों को अपनी वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट भी चुनाव आयोग को देनी होती है। इस रिपोर्ट में भी इलेक्टोरल बॉन्ड्स से मिलने वाले दान का जिक्र होता है।
लेकिन रजिस्टर्ड अनरिकग्नाइज्ड दलों को ऑडिट रिपोर्ट नहीं देनी होती और इलेक्टोरल बॉन्ड का ब्योरा सीलबंद लिफापे में होता है।
2019 में चुनाव आयोग को जिन 69 रजिस्टर्ड अनरिकग्नाइज्ड दलों ने अपना ब्योरा सौंपा ADR ने उनके नाम के आधार पर एक एनालिसिस किया।
ADR के मुताबिक इन 69 दलों में 43 दल तो ऐसे हैं जिनके वोट शेयर का कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है।
जिनके वोट शेयर का आंकड़ा उपलब्ध है, उनमें से सिर्फ 1 दल ही इलेक्टोरल बॉन्ड से दान लेने के लिए एलिजिबलिटी क्राइटेरिया पूरा करता है।
यानी बाकी 68 रजिस्टर्ड अनरिकग्नाइज्ड दल अवैध रूप से इलेक्टोरल बॉन्ड भुना रहे हैं।