जयपुर, 4 अक्टूबर। राजस्थान हाईकोर्ट ने रिश्वत मांगने की ऑडियो क्लिप के चलते बर्खास्त किए गए हैड कांस्टेबल की सेवा समाप्ति के आदेश को अवैध ठहराते हुए रद्द कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह मृत हैड कांस्टेबल को मिले अंतिम वेतन के आधार पर बकाया वेतन और अन्य परिलाभ का भुगतान तीन माह में उसके आश्रितों को करे। जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश हनुमान राम की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिका लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ता की मौत हो चुकी है। ऐसे में प्रकरण में पुनः जांच कराने या वापस बहाली का आदेश देने का कोई औचित्य नहीं है।
याचिका में अधिवक्ता तनवीर अहमद की ओर से अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता अजमेर के नसीराबाद थाने में हैड कांस्टेबल था। घटना के दिन 4 फरवरी, 2020 को चैकिंग के दौरान शराब और डोडा-पोस्त ले जा रहे वाहन को छोडने की एवज में याचिकाकर्ता पर लाखों रुपए मांगने का आरोप है। प्रकरण को लेकर सोशल मीडिया पर ऑडियो क्लिप जारी हुई। जिसमें याचिकाकर्ता की आवाज बताई गई और पुलिस अधीक्षक ने 27 फरवरी को उसे बर्खास्त कर दिया। याचिका में कहा गया कि घटना में एक अन्य हैड कांस्टेबल की भूमिका भी सामने आई, लेकिन उसे निलंबित किया गया। याचिका में बताया गया कि कर्मचारी को बिना जांच उसी स्थिति में बर्खास्त किया जा सकता है, जब जांच संभव नहीं हो। वहीं बर्खास्त करने वाले अधिकारी को यह भी बताना पड़ेगा की जांच संभव नहीं होने के क्या आधार हैं। समान मामले में एक हैड कांस्टेबल को निलंबित किया गया और याचिकाकर्ता को बर्खास्त किया गया है। जिससे साबित होता है कि मामले में जांच की जा सकती थी। इसके अलावा सिर्फ ऑडियो क्लिप के आधार पर याचिकाकर्ता पर कार्रवाई की गई है। यह जांच नहीं की गई की ऑडियो क्लिप में याचिकाकर्ता की आवाज है या किसी अन्य की। इसलिए बर्खास्तगी आदेश को रद्द किया जाए। वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता की आवाज की पहचान तीन अन्य पुलिसकर्मियों ने की थी। याचिकाकर्ता के कृत्य से पुलिस की छवि खराब हुई है। इसके अलावा जिस पुलिसकर्मी को निलंबित किया गया था, ऑडियो क्लिप में उसकी आवाज नहीं थी। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है।