राजद्रोह पर क्यों बदला मोदी सरकार का स्टैंड:खत्म कर नया कानून ला रही; क्या-क्या बदल जाएगा

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क्या नया कानून राजद्रोह से भी ज्यादा सख्त है?
संसद में पेश भारतीय न्याय संहिता की धारा 150 के अनुसार कोई भी इरादतन या जानबूझकर बोले या लिखे शब्दों, संकेतों से, कुछ दिखाकर, इलेक्ट्रॉनिक संदेश से, वित्तीय साधनों के उपयोग से अगर देश में अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों और अलगाववादी गतिविधियों की भावना को उकसाता है।

इसके अलावा अगर कोई भारत की संप्रभुता, एकता या अखंडता को खतरे में डालता है या ऐसे कार्य में शामिल होता है तो नए कानून के तहत अपराधी माना जाएगा। इसके तहत 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा के साथ जुर्माना भी हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक इन प्रावधानों से साफ है कि राजद्रोह का कानून नए तरीके से कानून की किताब में शामिल हो रहा है। इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा को 3 से बढ़ाकर 7 साल करने की वजह से नए प्रावधान पुराने कानून से ज्यादा सख्त साबित हो सकते हैं।

आईपीसी में चैप्टर-VI में राज्य के खिलाफ अपराधों के लिए 9 प्रावधान हैं।भारतीय न्याय संहिता के विधेयक में इसके लिए चैप्टर-VII में 12 प्रावधान किए गए हैं।

मोदी सरकार ने राजद्रोह कानून क्यों खत्म किया?

राजद्रोह कानून शुरुआत से ही सियासत का शिकार रहा है। अंग्रेजों के समय तिलक और गांधी ने और आजादी के बाद लोहिया जैसे नेताओं ने इस कानून का विरोध किया था।

कम्युनिस्ट सांसद डी. राजा ने इसे खत्म करने के लिए 2011 में राज्यसभा में प्राइवेट बिल पेश किया था। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इस कानून को खत्म करने का वादा किया था।

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक इस कानून के जन्मदाता देश ब्रिटेन में इस तरह के कानून को खत्म कर दिया गया है, इसीलिए भारत में भी बहुत समय से इसे खत्म करने की मांग हो रही थी।

NCRB के आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2021 के बीच इस कानून के तहत 428 मामले दर्ज हुए जिनमें 634 गिरफ्तारियां हुईं। आईपीसी की धारा 124-ए में अस्पष्टता की वजह से इस कानून का दुरुपयोग हो रहा था।

इसी वजह से मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून के जरिए नए मामले दर्ज करने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि जो लंबित मामले हैं, उन पर यथास्थिति रखी जाए। ऐसे में सरकार उन कानूनों के तहत केस नहीं दर्ज कर सकती थी।

नए तीन बिलों में औपनिवेशिक कानूनों की समाप्ति की बात कही जा रही है, इसीलिए राजद्रोह कानून का प्रावधान खत्म हो गया है। अब सरकार नए कानून के तहत केस दर्ज कर सकती है।

क्या नया कानून राजद्रोह से भी ज्यादा सख्त है?
संसद में पेश भारतीय न्याय संहिता की धारा 150 के अनुसार कोई भी इरादतन या जानबूझकर बोले या लिखे शब्दों, संकेतों से, कुछ दिखाकर, इलेक्ट्रॉनिक संदेश से, वित्तीय साधनों के उपयोग से अगर देश में अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों और अलगाववादी गतिविधियों की भावना को उकसाता है।

इसके अलावा अगर कोई भारत की संप्रभुता, एकता या अखंडता को खतरे में डालता है या ऐसे कार्य में शामिल होता है तो नए कानून के तहत अपराधी माना जाएगा। इसके तहत 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा के साथ जुर्माना भी हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक इन प्रावधानों से साफ है कि राजद्रोह का कानून नए तरीके से कानून की किताब में शामिल हो रहा है। इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा को 3 से बढ़ाकर 7 साल करने की वजह से नए प्रावधान पुराने कानून से ज्यादा सख्त साबित हो सकते हैं।

आईपीसी में चैप्टर-VI में राज्य के खिलाफ अपराधों के लिए 9 प्रावधान हैं। भारतीय न्याय संहिता के विधेयक में इसके लिए चैप्टर-VII में 12 प्रावधान किए गए हैं।

नए प्रस्तावित कानून की कुछ बातों पर विवाद क्यों है?
संविधान के अनुसार हर 5 साल में चुनावों से नई सरकार का गठन होता है, इसलिए सरकार की आलोचना को देशद्रोह नहीं माना जा सकता। राजद्रोह कानून में अस्पष्टता की वजह से पुलिस और जांच एजेंसियां सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर लेती हैं।

नए कानून में विध्वंसक गतिविधियों और लोगों को भड़काने वाले प्रयास को शामिल किया गया है। हालांकि इन शब्दों की व्याख्या कानून में स्पष्ट रूप से नहीं की गई है।

आईटी एक्ट और इन नए बिलों में सरकार ने यह भी कहा है कि कानून अब सरल और स्पष्ट होंगे, जिससे उनके दुरुपयोग को रोका जा सके। राजद्रोह की तर्ज पर धारा 150 के तहत शामिल प्रस्तावित कानून का दुरुपयोग नहीं हो, इसके लिए अस्पष्टता को खत्म करने के साथ, दुरुपयोग से बेगुनाह लोगों को फंसाने के मामलों में सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान भी होना चाहिए।

क्या राजद्रोह कानून को खत्म कर कांग्रेस की राह पर है बीजेपी?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक राजद्रोह को खत्म करने पर कांग्रेस का विरोध करने वाली बीजेपी का यह स्टैंड हर किसी को हैरान करने वाला लगता है। हालांकि सरकार ने इस कानून के जरिए भारत सरकार और भारत देश के बीच के भेद को मिटाने की कोशिश की है। 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजद्रोह कानून होकर भी लगभग खत्म हो गया था, ऐसे में संभव है सरकार को नई कानून की जरूरत महसूस हुई होगी।

अब अगर भारत सरकार की लोग आलोचना करेंगे तो इसे ये दिखाने की कोशिश होगी कि ये भारत देश की आलोचना है। इस तरह सरकार के लिए अब उसकी आलोचना करने वालों को जेल भेजना और देशद्रोही कहना आसान होगा। इसके लिए कानून में कुछ तकनीकी शब्द जोड़े और बदले गए हैं। ये सिविल राइट और कानून के इकबाल से सही नहीं है।

क्या राजद्रोह खत्म कर नए कानून लाने का कोई पॉलिटिकल मकसद भी है?
कानून की परिभाषा में राजनीतिक बातें नहीं आती हैं। इस कानून को लाने के पीछे सरकार का राजनीतिक मकसद अभी पूरी तरह से बता पाना मुश्किल है।

रशीद किदवई के मुताबिक आम तौर पर जब कोई देश हित के विरुद्ध बोलता है तो कार्रवाई होती है, लेकिन मसला ये है कि देश हित के खिलाफ क्या है ये फैसला कौन करेगा? इसे ऐसे समझिए कि इंकलाब जिंदाबाद आजादी के समय का नारा रहा है, लेकिन कई जगहों पर ये नारा जिन लोगों ने लगाया उन्हें देशद्रोही कहा गया।

इस कानून में तोड़फोड़ और उग्र विरोध को देश तोड़ने वाला अपराध बताया गया है। ऐसे ही कई और शब्द इस कानून में शामिल किए गए हैं जो परिभाषित नहीं हैं।

नया कानून कब और कैसे लागू होगा?
फिलहाल तीनों बिलों को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है। राजद्रोह जैसे प्रावधान की सुप्रीम कोर्ट आलोचना कर चुका है। नए कानूनों में और सख्त प्रावधान किए गए हैं। ऐसे मुद्दों पर स्थायी समिति में विरोधाभास हो सकते हैं। शीत सत्र के पहले समिति की रिपोर्ट नहीं आई तो लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने पर बिल रद्द हो जाएंगे। हालांकि सरकार चाहेगी तो इस पर सहमति बन सकती है।

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