‘क्या महिला जज ने महिला से शादी की है’:समलैंगिकता पर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा- कोर्ट का फैसला न मानें, ये हमारा क्षेत्र है

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सेम सेक्स मैरिज यानि समलैंगिकता को मान्यता देने वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में छठे दिन की सुनवाई खत्म हो गई है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से 3 मई तक जवाब मांगा है कि वे बताएं कि समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता के बिना भी शादी की अनुमति दिए जाने से क्या फायदा होगा?

इधर, इस मुद्दे पर गोवर्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर शंकाराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने आने वाले फैसले को मानवता के लिए कलंक बताया है। उन्होंंने कहा- ये हमारा मामला है। इसमें कोर्ट को नहीं पड़ना चाहिए। जजों को कह देना चाहिए कि प्रकृति ऐसे लोगों को दंड देगी। यदि न्यायालय का कोई ऐसा फैसला होता है तो उसे मानने की आवश्यकता नहीं है।

शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती अपने दो दिवसीय प्रवास पर गुरुवार को जयपुर पहुंचे हैं। यहां मानसरोवर स्थित गोपेश्वर महादेव मंदिर में दोपहर 1 बजे गुरु दीक्षा कार्यक्रम के दौरान उन्होंने मीडिया से बात की।

मानवता के लिए कलंक है
वे बोले- जिन न्यायाधीशों से निर्णय आने वाला है या आएगा उनसे पूछना चाहिए कि क्या आप नपुंसक होकर नपुंसक से शादी कर चुके हैं ? आप पुरुष हैं तो पुरुष से शादी कर चुके हैं क्या? आप स्त्री हैं तो स्त्री से शादी कर चुके हैं ? यह मानवता के लिए कलंक है। इससे व्यभिचार को बढ़ावा मिलेगा। विवाह धार्मिक क्षेत्र में पहला स्थान रखता है। यह हमारे क्षेत्र का विषय है, न्यायालय के क्षेत्र का नहीं। समलैंगिकता से पशुता की भावना आएगी, यह प्रकृति के खिलाफ है।

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