अदालत द्वारा निर्दिष्ट तारीख पर मामले को सूचीबद्ध नहीं करने पर रजिस्ट्री के खिलाफ अवमानना याचिका दायर नहीं की जा सकती’: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और रजिस्ट्रार न्यायिक प्रशासन के खिलाफ दायर अवमानना याचिका खारिज कर दिया, क्योंकि कोर्ट के निर्देश के बावजूद कथित तौर पर मामले को सूचीबद्ध नहीं किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की और इसे ‘धौंस जमाने की रणनीति’ और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए इस प्रथा को बहुत गलत प्रवृत्ति बताया और शुरुआत में याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल द्वारा बार एसोसिएशन के सदस्य याचिकाकर्ता की ओर से बिना शर्त माफी मांगने के बाद जुर्माने को वापस ले लिया गया।
खंडपीठ ने कहा, “मौजूदा अवमानना याचिका और कुछ नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। केवल इसलिए कि कोई मामला अदालत द्वारा निर्दिष्ट तारीख पर सूचीबद्ध नहीं है, यह अदालत के सेक्रेटरी जनरल और रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने का आधार नहीं हो सकता। कुछ कठिनाइयां हैं, जिनके कारण मामलों को सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता, भले ही अदालत मामले को किसी विशेष तिथि पर सूचीबद्ध करने का निर्देश दे। ऐसे मामले को सूचीबद्ध न करने पर अवमानना याचिका दायर करना रजिस्ट्री को डराने-धमकाने का प्रयास है, ऐसा प्रयास अत्यधिक निंदनीय है।”

जुर्माना लगाने के बाद न्यायालय ने बाद में अपने आदेश में जोड़ा; “इस स्तर पर एससीबीए की ओर से पेश हुए अध्यक्ष आदिश अग्रवालवाला ने याचिकाकर्ता की ओर से बिना शर्त माफी मांगी, इसलिए जुर्माने का आदेश वापस ले लिया जाता है।” जस्टिस बीआर गवई ने अवमानना याचिका के संबंध में याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि अगर इस तरह की प्रथा की अनुमति दी गई तो इसका इस्तेमाल अंततः न्यायाधीशों के खिलाफ भी किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, “कल आप न्यायाधीशों को डराना शुरू कर देंगे। कुछ कठिनाइयां हैं, कुछ पीठ रजिस्ट्री को 30 से अधिक मामलों को सूचीबद्ध नहीं करने का निर्देश देती हैं, यदि आपका मामला 31 तारीख को आता है तो रजिस्ट्री के पास क्या विकल्प है?” जस्टिस गवई ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता के पास प्रशासनिक पक्ष के समक्ष शिकायत दर्ज करके अपनी शिकायत उठाने का विकल्प है। उन्होंने कहा, “अधिक से अधिक आप प्रशासनिक पक्ष के समक्ष शिकायत कर सकते हैं।”

जस्टिस गवई ने कहा, “अगर हम किसी मामले को शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध करते हैं और हम इसे नहीं ले सकते हैं, तो आप माननीय जस्टिस गवई और माननीय जस्टिस मिश्रा के खिलाफ अवमानना याचिका शुरू करेंगे, यह कहते हुए कि उन्होंने मामले की सुनवाई न करके अपनी ही अदालत की अवमानना की है। अवमानना याचिका आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित मामले में जमानत याचिका के संबंध में दायर की गई। याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि अदालत के निर्देशों के बावजूद मामले को रजिस्ट्री द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया गया।

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में दलील दी, “यह केवल आदेश को लागू करने के लिए था।” सीनियर एडवोकेट एससीबीए अध्यक्ष आदिश अग्रवालवाला ने यह स्वीकार करते हुए कि ऐसी याचिका दायर नहीं की जानी चाहिए, सुझाव दिया कि अदालत याचिका को वापस लेने की अनुमति दे।

जस्टिस गवई ने कहा, “वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं है, हम इसे खारिज कर रहे हैं।” हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर मुख्य आवेदन में जमानत की अनुमति दे दी।

अदालत ने कहा, “अपने एसोसिएशन के सदस्यों से कहें कि वे ऐसी रणनीति में शामिल न हों। वास्तव में इससे मुख्य आवेदन की योग्यता प्रभावित होती। लेकिन पहले हमने उस [जमानत याचिका] में आदेश पारित किया और फिर हमने यह आदेश [अवमानना ​​याचिका] पारित किया।“
केस टाइटल: मनोज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 7696/2023

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