एक बार फिर राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर कई छात्र नेता अपना भाग्य आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। अलग-अलग पार्टियों से दावेदारी कर ये पूर्व छात्र नेता दौरे कर रहे हैं।
उन जगहों से टिकट मांग रहे हैं, जहां पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच जगह बनाना चुनौती है। भास्कर ने विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक ऐसे छात्र नेताओं से बात की। ये जाना कि सामने के कद्दावर प्रतिद्वंद्वी को वो कैसे हराएंगे? अगर पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो क्या करेंगे?
1. रविंद्र सिंह भाटी : मैं शिव से कर रहा हूं तैयारी
छात्रों के सहयोग से साल 2019 में मुझे जोधपुर की जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी में निर्दलीय छात्रसंघ अध्यक्ष बनने का मौका मिला था। कोविड के चलते मेरा कार्यकाल तीन साल का रहा। इन तीन साल में मैंने छात्र हितों के लिए हर संभव संघर्ष करने का प्रयास किया।
राजस्थान की शिव विधानसभा क्षेत्र में मेरा गांव दुधौड़ा है। बॉर्डर इलाके के शिव विधानसभा क्षेत्र के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। बेहतर शिक्षा का अभाव है। रोजगार की बड़ी परेशानी है। मुझे यहां की समस्याओं और उनके समाधान की समझ है। इसलिए मैं यहां सर्व समाज और सभी वर्गों के समर्थन से काम कर रहा हूं। मुझे इसके लिए हर तबके का भरपूर सपोर्ट मिल रहा है।
अब मैं आगामी विधानसभा चुनाव में शिव विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हूं। फिलहाल तो मैं इंडिपेंडेंट ही हूं। सामने कोई भी प्रतिद्वंद्वी हो, मुझे यकीन है कि यहां के लोग मुझ पर अपना भरोसा जताएंगे।
हालांकि रविंद्र भाटी बीजेपी से भी टिकट के प्रयास में जुटे हैं और पिछले तीन साल से शिव विधानसभा क्षेत्र में चुनावी तैयारी कर रहे हैं। राजस्थानी भाषा में पोस्ट ग्रेजुएट रविंद्र सिंह भाटी 2019 में जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से ABVP से छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ना चाहते थे। टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय लड़कर रिकॉर्ड जीत हासिल की थी। आंदोलन और आक्रामक रवैया रखने वाले भाटी अब यूथ में पॉपुलर नाम हैं।
इस सीट पर कई दिग्गज : शिव विधानसभा सीट पर मौजूदा विधायक कांग्रेस के पूर्व मंत्री एवं कद्दावर नेता अमीन खान हैं। उनके सामने पिछली बार बीजेपी से खंगार सिंह सोढा ने चुनाव लड़ा था। इससे पहले मानवेन्द्र सिंह बीजेपी से यहां विधायक थे, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
2. अभिमन्यु पूनिया : संगरिया से मांग रहे टिकट
छात्र राजनीति में किए गए संघर्ष के बाद ये हमारा दायित्व है कि अब हम अपनी जनता के हितों के लिए संघर्ष करें। किसी अन्य लॉन्चिंग वाले नेता के मुकाबले हमारा अनुभव भी ज्यादा होता है। छात्र राजनीति के सहारे हम माइक्रो मैनेजमेंट को भी बेहतर ढंग से जानते हैं।
पूनिया ने कहा कि वे संगरिया विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव के लिए दावेदारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी अगर मुझे मौका देती है तो निश्चित ही इसका फायदा संगरिया ही नहीं अन्य सीटों पर भी यूथ कनेक्ट से होगा।
संगरिया सीट पर कई दिग्गज : इस विधानसभा सीट पर लगातार 2 बार से कांग्रेस हार रही है। फिलहाल यहां मौजूदा विधायक बीजेपी के गुरदीप सिंह शाहपीनी हैं। उनसे पहले 2013 में बीजेपी के ही कृष्ण कड़वा यहां से विधायक बने थे।
NSUI से छात्र राजनीति की शुरुआत करने वाले अभिमन्यु पूनिया ने साल 2012 में राजस्थान कॉलेज, जयपुर से छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा, लेकिन 2 वोट से हार गए। अगले साल NSUI के टिकट पर राजस्थान यूनिवर्सिटी में महासचिव का चुनाव जीते। इसके बाद NSUI के प्रदेश महासचिव, फिर प्रदेश उपाध्यक्ष और स्टेट प्रेसिडेंट तक बने। सचिन पायलट के समर्थन में अपने पद से इस्तीफा देकर अभिमन्यु पूनिया चर्चा में आए। हाल ही में यूथ कांग्रेस के इलेक्शन रिजल्ट में भी पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष पद पर सर्वाधिक मत मिले हैं।
3. अरविन्द जाजड़ा : नागौर से तैयारी
मैं राजस्थान यूनिवर्सिटी में महासचिव रहने के दौरान हमेशा छात्रों के सहयोग के लिए उनके बीच ही रहा और कई आंदोलन किए। शुरू से यही मकसद था कि राजनीति के जरिये अपने लोगों की सेवा कर पाऊं। यही सोचकर छात्र राजनीति में आया था। अब नागौर विधानसभा क्षेत्र के लोगों के हक के लिए काम करना चाहता हूं, इसलिए यहां से विधायक का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हूं। भारतीय जनता पार्टी से टिकट मांग रहा हूं। पार्टी ने चाहा तो निश्चित ही चुनाव लडूंगा। सामने कोई भी प्रतिद्वंद्वी हो मैं अपनी पार्टी की विचारधारा और संघर्ष के दम पर उससे पार पा लूंगा।
नागौर के सिणोद गांव के रहने वाले अरविंद जाजड़ा आरएसएस के प्रथम वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक हैं। साल 2022 में जाजड़ा ने राजस्थान विश्वविद्यालय में ABVP के टिकट पर महासचिव पद के लिए छात्रसंघ चुनाव लड़ा और जीत गए।
यहां टक्कर रहती है दिलचस्प : मौजूदा विधायक वयोवृद्ध नेता मोहनराम चौधरी हैं। RSS बैकग्राउंड के मोहनराम कुछ समय पहले तक पार्टी के जिलाध्यक्ष भी थे। उनसे पहले 2008 और 2013 में 2 बार कांग्रेस छोड़कर बीजेपी टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हबीबुर्ररहमान विधायक बने थे। 2018 में टिकट कटने के बाद हबीबुर्रहमान वापस कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा। उन्हें मोहनराम चौधरी के सामने हार मिली थी।
4. भागीरथ मूंड : जहां से दावेदारी, वहां पहले से BJP विधायक
लूणकरणसर विधानसभा सीट से मैं विधायकी का चुनाव लड़ना चाहता हूं और इसके लिए मेरी पार्टी भाजपा से टिकट भी मांग रहा हूं। पार्टी ने चाहा तो चुनाव लडूंगा। इस विधानसभा सीट पर ज्यादातर कांग्रेस पार्टी के ही जीतने का इतिहास रहा है। यही कारण है कि आज भी यहां लोगों को मूलभूत सुविधाओं की कमी है। यहां ट्रॉमा सेंटर, कॉलेज और कई जरूरी सुविधाओं की दरकार है। मेरे पास इसके लिए एक प्रॉपर विजन है।
युवाओं से लेकर आम जनता भी मुझे पसंद करती है। अब उन्हीं के समर्थन से मैं यहां चुनाव लड़ना चाहता हूं। हालांकि पिछली बार हमारी पार्टी को यहां विजय मिली थी और सुमित गोदारा विधायक बने थे, लेकिन इस बार मैं टिकट मांग रहा हूं। मेरी कार्यशैली के प्रति लोगों के विश्वास के चलते मुझे यकीन है कि मैं यहां से कोई भी प्रतिद्वंद्वी हो, उसे चुनाव हरा दूंगा।
बीकानेर जिले के मूंडसर गांव के रहने वाले भागीरथ ने साल 2010 में बीकानेर संभाग के बेहद चर्चित डूंगर कॉलेज में निर्दलीय छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और जीत गए। छात्र हितों को लेकर उन्होंने कई सफल आंदोलन किए। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। लगातार 10 साल तक बीकानेर के भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष रहे। पार्टी संगठन में अलग-अलग जिम्मेदारियां निभा रहे हैं।
यहां बीजेपी का ही विधायक : लूणकरणसर विधानसभा सीट पर मौजूदा विधायक BJP के सुमित गोदारा हैं। उनसे पहले यहां साल 2013 में BJP के बागी माणिक चंद सुराणा निर्दलीय विधायक बने थे। साल 2003 और 2008 में कांग्रेस के वीरेंद्र बेनीवाल विधायक बने थे।
5. नरसी किराड़ : पहले भी लड़ चुके चुनाव, लेकिन मिली हार
जब मैं छात्र जीवन में यूनिवर्सिटी में पहुंचा और वहां छात्र हितों के लिए लड़ाइयां लड़ीं और कई बदलावों का भागीदार बना तो ये समझ में आ गया कि समाज में बदलाव लाने के लिए संघर्ष वाली राजनीति कितनी जरूरी है। आम गरीब परिवार से आता हूं, जिसकी मां पानी की एक बाल्टी के लिए घंटों लाइन में खड़ी रहती थी।
जो विधायक हमारी कठूमर विधानसभा सीट से जीतते थे, उन्होंने इलाके में कुछ काम नहीं किया। हर बार वो ही तीन नेता यहां अदला-बदली से विधायक बनते आ रहे हैं। यही कारण है कि राजनीति में नरसी किराड़ का जन्म हुआ है। इलाके के लोग भी मुझे आशा भरी नजरों से देख रहे हैं।
अब विधायक बनकर इलाके में नए उद्योग लगवाने, चंबल का पानी घर-घर तक पहुंचाने और शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ ही सभी आशाओं पर खरा उतरने का काम करना है। पार्टी टिकट देगी तो अवश्य ही चुनाव लडूंगा और जीतूंगा। नहीं तो जो पार्टी का आदेश होगा, वो काम करेंगे।
कठूमर विधानसभा से बीजेपी का टिकट मांग रहे नरसी किराड़ पिछला इलेक्शन आरएलपी से लड़ चुके हैं। हालांकि चुनाव हार गए। छात्र राजनीति में NSUI के टिकट पर साल 2010 में राजस्थान यूनिवर्सिटी में चुनाव जीतकर छात्रसंघ महासचिव बने। इसके बाद उन्होंने लगातार NSUI में कई पदों पर काम किया। फिलहाल उन्होंने भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर ली है।
पिछले चुनाव में मिले 11 हजार वोट : साल 2018 में यहां से भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए बाबूलाल विजयी हुए थे। वहीं नरसी किराड़ ने यहां अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई और 11 हजार मत हासिल किए। इससे पहले साल 2013 में बीजेपी के मंगलाराम और 2008 में BJP के टिकट पर बाबूलाल जीते और MLA बने थे।
अभिषेक चौधरी : मैंने कांग्रेस से टिकट के लिए आवेदन किया है
राजस्थान यूनिवर्सिटी में लॉ कॉलेज के अध्यक्ष रहे अभिषेक चौधरी फिलहाल NSUI के प्रदेशाध्यक्ष हैं। वे लम्बे समय से लोहावट विधानसभा क्षेत्र में चुनावी तैयारी कर रहे हैं और कांग्रेस से टिकट के प्रयास में जुटे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी चौधरी का मारवाड़ के युवाओं में काफी क्रेज भी है। वे क्षेत्र में सामूहिक विवाह सम्मलेन और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन को लेकर भी चर्चित रहते हैं।
अभिषेक चौधरी का कहना है कि लोहावट विधानसभा क्षेत्र से मैंने कांग्रेस से टिकट के लिए आवेदन किया है। नवसृजित जिले फलोदी और लोहावट में जब युवाओं को नशे की लत में खराब होते देखता हूं, तो सोचता हूं कि जिन युवाओं के लिए मैं राजनीति में आया हूं, उनके लिए पॉजिटिव काम करूं और उन्हें सही दिशा देने का काम करूं। यही मेरे चुनाव लड़ने का कारण है। अब पार्टी चाहेगी तो मैं निश्चित ही चुनाव लडूंगा। मैं किसी को भी अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता हूं। नकारात्मकता और नशे की लत ही मेरे प्रतिद्वंद्वी हैं और इनसे ही मुझे लड़ना है। भरोसा है कि इस लड़ाई में मुझे मेरी कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों के साथ ही युवाओं का पूरा साथ मिलेगा। हम लोहावट को सही दिशा दे पाए तो ये प्रदेश और देश के लिए भी बेहतर होगा।
अभी कांग्रेस के ही विधायक : लोहावट विधानसभा सीट पर मौजूदा विधायक कांग्रेस के किशनाराम विश्नोई हैं। उनके सामने पिछली बार बीजेपी से पूर्व कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने चुनाव लड़ा था। इससे पहले लगातार दो बार 2008 और 2013 में गजेंद्र सिंह खींवसर बीजेपी से यहां विधायक चुनाव जीते थे।
ये छात्रनेता भी तैयारी में
ABVP से बागी होकर पूर्व में राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष (2016) रह चुके अंकित धायल भी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो अंकित धायल झुंझुनूं जिले की सूरजगढ़ सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से जुड़े चार नए छात्र नेताओं को टिकट दिया था, उनमें से 2 विधायक बन गए। साल 2015 में राजस्थान यूनिवर्सिटी के लॉ कॉलेज से अध्यक्ष बने रामनिवास गावड़िया परबतसर से कांग्रेस के विधायक बने।
वहीं, साल 2010 में राजस्थान यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष पद पर इलेक्शन हारने वाले और बाद में एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष रहे मुकेश भाकर लाडनूं विधानसभा क्षेत्र से जीतकर MLA बने थे। वहीं, कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले शाहपुरा से मनीष यादव और सांगानेर से पुष्पेन्द्र भारद्वाज चुनाव हार गए थे।