वेश्यावृति में कम उम्र की लड़कियों की डिमांड है।

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वेश्यावृति में कम उम्र की लड़कियों की डिमांड है। आर्म्स-ड्रग्स की पैडलिंग, तस्करी तो एक बार होती है, लेकिन यहां एक ही लड़की को 15-15 बार बेचा जाता है। तस्करी कर लाई गई लड़कियों को सबसे पहले प्रेग्नेंट किया जाता है। ऐसे में हार्मोन चेंज होने की वजह से इनकी उम्र ज्यादा दिखने लगती है।

बच्चे को जन्म देने के बाद उस लड़की को बच्चे से अलग कर दिया जाता है। मेंटली और फिजिकली, दोनों ही तरह से वो लड़की टॉर्चर होती है। मैं एक दशक से मानव तस्करी के खिलाफ काम कर रही हूं। हर रोज ऐसी घटनाएं देखती हूं, पीड़ितों को रेस्क्यू करती हूं। ये सब करते वक्त आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कई रात सो नहीं पाती हूं।’

जब यह कहानी पल्लबी घोष सुना रही थीं, तो मेरा भी मन विचलित हो रहा था। बॉटल से दो घूंट पानी पीने के बाद मैं उनसे बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाता हूं। उनसे मिलने मैं दिल्ली के वंसत कुंज इलाके के पार्क में पहुंचा था।

पल्लबी कहती हैं, ‘एक बार जी बी रोड रेस्क्यू करने गई थी। वहां 8 से अधिक नाबालिग लड़कियों को एक कोठे में बने टनल के अंदर बंद करके रखा गया था। उनसे जबरदस्ती देह-व्यापार करवाया जा रहा था। लड़कियां देह-व्यापार के लिए तैयार हों, इसलिए इन्हें हर रोज नशा और ड्रग्स दिया जा रहा था।’

33 साल की पल्लबी से मेरी करीब 4 घंटे की बातचीत हुई। इस दाैरान वो दर्जनों तस्करी की शिकार हुई लड़कियों की रोंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी सुनाती गईं। मैं बस उन्हें सुनता जा रहा हूं।

पल्लबी कहती हैं, ‘टॉर्चर की सारी हदें पार कर दी जाती हैं। आप हैरान होंगे यह सुनकर कि एक लड़की के नाखून ही नहीं थे, उसे नोच दिया गया था। एक की चमड़ी को सब्जी के छिलके की तरह छील दिया गया था।

तस्करी की दुनिया में हर दिन एक अलग दर्दनाक कहानी होती है। एक बार तो 60 साल की महिला को लेकर आ गए थे। जब मैंने उस महिला का रेस्क्यू किया, तो उनसे पूछा कि उनकी तस्करी गिरोह ने क्यों की, तो उस महिला ने कहा- इन्हें कोई लड़की नहीं मिली, तो मुझे उठा लिया।’

आप मूल रूप से बंगाल से हैं?

पल्लबी कहती हैं, ‘मैं हूं तो बंगाली, लेकिन असम से हूं। हालांकि, पश्चिम बंगाल से पुराना नाता है। कई रिलेटिव्स वही रहते हैं।’

पल्लबी अपने घर और बचपन का जिक्र करती हैं। बताती हैं, ‘पापा कानपुर की एक लैदर फैक्ट्री में काम करते थे। ​​​​​​सब कुछ नॉर्मल चल रहा था। दुख का पहाड़ तो उस वक्त टूट पड़ा जब मैं 12वीं में थी।

पापा को माउथ कैंसर हो गया और वो हम सबको छोड़कर चले गए। पापा के इलाज में लाखों रुपए खर्च हो चुके थे, फिर भी हम उन्हें नहीं बचा पाए। घर की स्थिति ज्यादा खराब हो गई। मां टीचर थीं, तो उन्होंने ही हम दोनों बहनों की परवरिश की।’

पल्लबी अपने मोबाइल में कुछ फोटो देखने लगती हैं, इसमें उनकी फैमिली, बचपन के दिनों और पश्चिम बंगाल की कुछ फोटोज हैं। एक फोटो देखते ही वो ठहर जाती हैं, मानो किसी ने बोलने से रोक दिया हो।

मेरे पूछने पर कहती हैं, ‘वो वाकया याद आ गया, जिसके बाद मानव तस्करी के खिलाफ काम करने की मेरी कहानी शुरू हुई। 12 साल की थी। एक बार अपने एक मुंह बोले मामा के साथ बंगाल गई थी। जिस इलाके में गई थी, वहां के एक बुजुर्ग की बेटी गायब हो गई थी।

बेटी को ढूंढते-ढूंढते उस आदमी की हालत पागल जैसी हो गई थी। वो बुजुर्ग आदमी हर किसी से पूछ रहा था- मेरी बेटी को किसी ने देखा है। वो बुजुर्ग मेरे पास भी आया और पकड़कर कहा- तुम्हारी जैसी ही मेरी बेटी थी। यदि तुम गायब हो जाओगी, तो तुम्हारे पापा क्या करेंगे। तुम्हें ढूंढेंगे?

मैं उस वक्त बहुत छोटी थी। 12 साल के बच्चे को क्या ही समझ होगी, लेकिन ये बात मेरे दिमाग में बैठ गई। उस वक्त तो ये तक पता नहीं था कि मानव तस्करी क्या होती है। इसके बावजूद मैंने सोचना शुरू किया कि जो लोग गायब होते हैं, उनका क्या होता है, वो कहां जाते हैं, दोबारा मिलते हैं या नहीं…।’

वो बताती हैं, ‘उस समय हमेशा ही रेलवे-स्टेशन, पब्लिक प्लेस, ट्रैफिक सिग्नल इन जगहों को गौर से देखती रहती थी। जब थोड़ी बड़ी हुई, तो देखा कि असम जैसे राज्य में, जहां लोकल लैंग्वेज बोली जाती है, वहां साफ-सुथरी हिंदी बोलने वाली महिलाएं, बच्चे भीख मांग रहे हैं। ये बात भी मेरे दिमाग में खटकने लगी कि ये लोग यहां तक आते कैसे होंगे।’

धीरे-धीरे शाम ढल रही है। पार्क में कुछ लोग टहल रहे हैं। हमारी बातचीत के बीच आसमान में पक्षियों के चहचहाने की आवाज गूंज रही है।

पल्लबी खुले आसमान में देखते हुए कहती हैं, ‘हर कोई चाहता है कि वो खुले में सांस ले। ऐसा संभव नहीं हो पाता। मानव तस्करी का इतना बड़ा नेटवर्क देशभर में फैला हुआ है कि कोई लड़की यदि एक बार इसमें फंस गई, तो वो गलत धंधे में ढकेल दी जाती हैं। सेक्स स्लेव बना दी जाती है। पूरी जिंदगी उनकी नर्क हो जाती है।’

कुछ महिला अपनी मर्जी से भी इस पेशे में आती हैं?

इस पर कहती हैं, ‘अब तक का जो मेरा अनुभव रहा है, देह-व्यापार में ऐसी एक भी महिला या लड़की मुझे नहीं मिली, जिन्होंने यह कहा हो कि वो अपनी मर्जी से यहां आईं। जबरदस्ती या बहला-फुसलाकर ही लड़कियां लाई जाती हैं। ज्यादातर को नौकरी और शादी करवा देने का लालच देकर उन्हें जाल में फंसाते हैं।’

पल्लबी कॉलेज के दिनों की एक घटना सुनाती हैं। वो कहती हैं, ‘दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिले के बाद ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर रिसर्च करने लगी। 2012 की बात है। मेरी एक फ्रेंड ने कहा कि तुम जिस तरह से बंगाली में बोलती हो, उसी तरह से मेरे यहां की रहने वाली कुछ महिलाएं भी बोलती हैं।

वो फ्रेंड हरियाणा की रहने वाली थी। उसकी बात सुनकर मैं शॉक्ड हो गई। सोचने लगी कि कोई बंगाली, असामी बोलने वाली लड़की हरियाणा-राजस्थान में क्या कर रही है। उन महिलाओं से मिलने की उत्सुकता बढ़ गई।’

आप उस फ्रेंड के घर गईं?

पल्लबी बताती हैं, ‘बिल्कुल। मैं तो उन महिलाओं से मिलने के लिए बैचेन हो गई। जब वहां गई, उन महिलाओं से बात की, तब पता चला कि उन महिलाओं को दलालों के हाथों कम उम्र में ही लाया गया था। किसी-किसी के तो मां-बाप ने पैसों की लालच में इन परिवारों के हाथों बेच दिया था। अब वो महिलाएं बहू की तरह वहां रहती हैं।

इनकी उम्र 15-20 साल और पति की उम्र 45-50 साल। समझ सकते हैं कि कोई लड़की अधेड़ उम्र के मर्द के साथ किस मजबूरी में रह रही होगी।’

पल्लबी ने कॉलेज पास आउट होते ही एक NGO के साथ काम करना शुरू कर दिया था। फिर उन्होंने 2020 में ‘इम्पैक्ट एंड डायलॉग फाउंडेशन’ नाम से मानव तस्करी के खिलाफ काम करने वाले NGO की शुरुआत की।

बताती हैं, ‘जब मैंने अपनी संस्था की शुरुआत की, तो बड़े पैमाने पर रेस्क्यू करना शुरू किया। पुलिस की मदद से मैंने अब तक 10 हजार जिंदगियां बचाई हैं। इनमें ज्यादातर वो लड़कियां हैं जो देह-व्यापार में, सेक्स स्लेव बनकर, कई सारी फैक्ट्रियों में फंसी हुईं थीं।’

मैं दोहाराता हूं- 10 हजार …

पल्लबी मेरे सवाल भरे अंदाज को सुनकर कहती हैं, ‘हर रोज देश में 2 हजार से अधिक लोग गायब होते हैं। उनकी तस्करी होती है। सैकड़ों मामले तो दर्ज ही नहीं होते हैं। बंगाल, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों से सबसे ज्यादा लड़कियों, छोटे बच्चों की तस्करी होती है।

मैंने एक साथ 100-150 लोगों का रेस्क्यू किया है। 70-70 लड़कियां एक कमरे में बंद होती थीं, इनकी रेस्क्यू हुई है। दिल्ली के जी बी रोड से दर्जनों लड़कियों का रेस्क्यू… जहां नाबालिग लड़कियों से जबरदस्ती गलत काम करवाया जाता था, कार्रवाई के बाद ऐसे दो-तीन कोठे भी बंद हुए हैं।’

पल्लबी बताती हैं कि सिर्फ लड़कियों, महिलाओं की ही नहीं… छोटे बच्चों की भी बड़े पैमाने पर तस्करी होती है। इन्हें फैक्ट्रियों में रखा जाता है। इनके साथ भी गलत किया जाता है। बोरी में रखे आलू की तरह एक कमरे में 25-25 बच्चों को ठूंस कर रखा जाता है।’

वो भावुक होते हुए कहती हैं, ‘आप ही बताइए, ऐसे-ऐसे कुकृत देखकर किसका कलेजा नहीं कांपेगा। आपको लग रहा होगा कि मैं स्वस्थ हूं, लेकिन ऐसे-ऐसे मामले सामने आते हैं, जिसकी वजह से मैं डिस्टर्ब हो जाती हूं। मेंटल स्ट्रेस होता है। ये इतनी बड़ी इंडस्ट्री हो चुकी है, मिलियन-बिलियन डॉलर का खेल चल रहा है, पैसे के आगे सब कुछ फीका पड़ चुका है।’

…तो आप चाह रही थीं एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग एक्टिविस्ट बनना?

पल्लबी बताती हैं, ‘जब मैं पढ़ रही थी, तो सोचती थी कि लॉ की पढ़ाई करूंगी। बिना किसी एकेडमिक बैकग्राउंड के भी इस फील्ड में मुझे अच्छी-खासी नॉलेज है। पुलिस ऑफिसर्स भी पूछ बैठते हैं कि आपने क्या लॉ की पढ़ाई की है, लेकिन फैमिली में कुछ इश्यू की वजह से एडमिशन लेने के बावजूद भी नहीं पढ़ पाई।

बाद में UPSC की तैयारी करने का भी सोचा, लेकिन वो भी नहीं हो पाया। आज जब सैकड़ों लड़कियों, पीड़िताओं की आवाज बनती हूं, उन्हें नई जिंदगी मिलती है, तो अच्छा लगता है। सोचती हूं कि कुछ तो अच्छा कर रही हूं।’

चलते-चलते पूछता हूं कि इस काम में आपके जान को कितना रिस्क है?

कहती हैं, ‘ऐसा तो कई बार हुआ है, जब बात जान पर बन आई। कोर्ट रूम में चाकू दिखाया गया। कई बार रास्ते में अटैक करने की कोशिश हुई। कपड़े तक फाड़ दिए गए। शुरुआत में डर भी लगता था, लेकिन अब नहीं। मैं रुकने वाली नहीं हूं।’

‘मेरी शादी पश्चिम बंगाल की रहने वाली एक अनाथ लड़की से हुई। मेरी पत्नी ने कभी मां-बाप का मुंह नहीं देखा। बनारस के एक अनाथ आश्रम में रहकर पली बढ़ी। ऐसा कर मैंने उस पर कोई अहसान नहीं किया। मैं बस उसे एक परिवार देना चाहता था।

एक और कहानी सुनाता हूं। मैं आजमगढ़ एक शादी में गया था। वहां देखा कि आधे दर्जन के करीब लड़कियां हजारों मर्दों की भीड़ में डांस कर रही है। मर्द उन्हें गंदे इशारे कर रहे हैं। ये सब देख मेरा मन बैठ गया। अगले दिन सुबह मैं उन महिलाओं से मिला। उनसे पूछा कि मैं उनके बच्चों को गोद लेना चाहता हूं। पढ़ाना चाहता हूं।’

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