जयपुर, 27 मई: प्रदेश में बिजली वितरण कंपनियों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। हालात इतने विकट हो रहे हैं कि कर्मचारियों की सैलरी के लिए भी फंड एकत्र नहीं हो पा रहा है। हालांकि मार्च के बाद चलाए जा रहे बकाया वसूली अभियान के चलते हालत सुधरी है, लेकिन कई मदों पर लंबित चल रहे भुगतान में देरी हो रही है। वहीं इन कंपनियों पर कुल कर्ज का बोझ बढक़र 1.10 लाख करोड़ से अधिक हो गया है। इस कर्ज के पेटे किए जा रहे ब्याज के भुगतान के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है।
महंगी बिजली खरीद बनी परेशानी
बिजली कंपनियों के समक्ष महंगी बिजली की खरीद परेशानी बन रही है। ग्रिड से खरीदी जा रही बिजली का समय पर भुगतान करना जरूरी है, ऐसे में बिजली खरीद का भुगतान करने के लिए बकाया वसूली अभियान को तेज किया गया है और कई अन्य योजना के तहत की जा रही खरीद प्रक्रिया भी फिलहाल धीमी कर दी गई है। इसके अलावा नए कृषि कनेक्शन भी इन बिजली कंपनियों पर आर्थिक भार बढ़ा रहे हैं। राज्य सरकार की घोषणाओं को पूरा करने के लिए तेजी से कनेक्शन दिए जा रहे हैं। ऐसे में केंद्र सहित अन्य योजनाओं के मद का पैसा खर्च हो रहा है।
उदय योजना नहीं कर पाई भला
राजस्थान में डिस्कॉम्स की हालत सुधारने के लिए वर्ष 2016 में लागू की गई उदय योजना भी अब वितरण कंपनियों के लिए परेशानी बन गई है। इस योजना के तहत राज्य सरकार ने करीब 80 फीसदी कर्ज की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी, लेकिन अब इनके ब्याज का भुगतान भी बिजली कंपनियों पर डाल दिया गया है। इसके चलते हर वर्ष करीब 3200 करोड़ इन वितरण कंपनियों को ब्याज पेटे देने पड़ रहे हैं और यह ब्याज लेने के लिए भी ऋण उठाना पड़ रहा है।
सरकार से सब्सिडी में भी देरी
वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से उपभोक्ताओं के लिए की गई घोषणाओं के पेटे सब्सिडी का पैसा भी समय पर नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में बिजली वितरण कंपनियों की ओर से राज्य सरकार से लगातार पत्र व्यवहार किया जा रहा है, वहीं कई सरकारी विभागों में भी बिजली के पेटे सैकड़ों करोड़ रुपए बकाया चल रहे हंै।