नई सरकार का काउंटडाउन शुरू, पर्यवेक्षक नियुक्त, 10 को हो सकती है विधायक दल की बैठक

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-16 दिसंबर से मलमास शुरू हो रहे इसके चलते 15 तक शपथ समारोह कराने की रणनीति
-बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने सीएम व 2 डिप्टी सीएम के नाम पर लगाई मुहर, विधायक दल की बैठक में होगा ऐलान
-बीजेपी के संकटमोचक राजनाथ के जिम्मे मरुधरा का विवाद हल कराने की जिम्मेदारी
जयपुर, 8 दिसंबर (विशेष संवाददाता) : मरुधरा में नई सरकार का काउंटडाउन शुरू हो गया है। बीजेपी ने तीन सदस्यीय पर्यवेक्षकों के नाम पर मुहर लगा दी है। जयपुर में 10 दिसंबर को विधायक दल की बैठक हो सकती है। इसमें पर्यवेक्षक विधायकों का मन टटोलने के बाद सीएम व 2 डिप्टी सीएम के नाम का ऐलान करेंगे। 16 दिसंबर से मलमास शुरू हो रहे हैं और इसके चलते बीजेपी हर हाल में 15 दिसंबर तक नई सरकार का शपथ समारोह आहूत कराने की रणनीति पर काम कर रही है। हालांकि सीएम व डिप्टी सीएम के नाम को लेकर सस्पेंस का माहौल है और सिर्फ नाम को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। दूसरी ओर विधायकों ने मंत्री पद के लिए लामबंदी शुरू कर दी है। इसके लिए विधायक जयपुर से लेकर दिल्ली तक हाथ-पैर मारने में जुट गए हैं। सूत्रों की माने तो प्रदेश में शायद नई सरकार का शपथ समारोह तीसरी बार 13 दिसंबर को हो सकता है।
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने शुक्रवार दोपहर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय एवं राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को राजस्थान का पर्यवेक्षक नियुक्त किया। इसके बाद राजनाथ सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर मरुधरा को लेकर विस्तार से चर्चा की। बताया जा रहा है कि राजनाथ सिंह ने विधायक दल की बैठक एवं सीएम-डिप्टी सीएम फेस को लेकर डिस्कसन किया। माना जा रहा है कि संभवत : 10 दिसंबर को जयपुर में विधायक दल की बैठक हो सकती है। इसमें पर्यवेक्षक विधायकों से रायमुशायरी कर सीएम व डिप्टी सीएम के नाम पर आपसी सहमति बनाएंगे और इसके बाद इनके नाम का ऐलान करेंगे। इसके बाद शायद 13 दिसंबर को सरकार का शपथ ग्रहण समारोह आहूत किया जा सकता है। इसके पहले वसुंधरा राजे वर्ष 2003 व 2013 में 13 दिसंबर की तारीख को ही सीएम की शपथ ले चुकीं हैं। 2023 में एक बार फिर तीसरी बार 13 दिसंबर को नए सीएम की ताजपोशी की उम्मीद बीजेपी सूत्र जता रहे हैं। बीजेपी ने राजनाथ को पर्यवेक्षक बनाने के लिए इसलिए चुना कि वह जितने भी सीएम के दावेदार हैं उनसे वरिष्ठ हैं। वहीं उनका संघ, संगठन व सरकार तीनों में मजबूत पकड़ है। राजनाथ पार्टी के मजबूत स्तंभ हैं और जब भी पार्टी मुसीबत में नजर आती है, तो वह संकटमोचक बनकर सामने आए हैं। वह 2005 से 2009 और 2013 से 2014 तक दो बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। राजनाथ जब पहली बार अध्यक्ष थे तब राजे राजस्थान की सीएम थीं। राजे को उनके अलावा ना तो कोई समझा सकता है, वह सम्मान के साथ राजे को हैंडिल कर सकते हैं। इसी के चलते शीर्ष नेतृत्व ने पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाली है।
गुटबाजी व विरोध रोकने की कवायद
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को भलीभांति मालूम है कि मरुधरा में यदि राजे के अलावा किसी दूसरे को सीएम बनाया तो फिर विरोध हो सकता है। हालांकि बीजेपी में इस प्रकार की परंपरा नहीं रही है बावजूद शीर्ष नेतृत्व फूंक-फूंककर अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। गुटबाजी रोकने एवं आपसी सहमति बनाने के लिए ही पार्टी ने वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री राजनाथ को आगे किया है।
राजे व जोशी दिल्ली में सक्रिय
वसुंधरा राजे तीन दिन से तो प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी दो दिन से दिल्ली में सक्रिय हैं। दोनों की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात हुई। राजे ने नड्डा व अमित शाह से मुलाकात की। बताते हैं कि वह अपनी सीएम की दावेदारी के साथ ही अपने बेटे दुष्यंत के लिए केंद में जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं। वहीं पार्टी सीएम फेस के नए चेहरे के लिए उनको मनाने की कोशिश कर रहा है। संभवत : उन्हें विधानसभा अध्यक्ष और दुष्यंत को केंद्रीय मंत्री बनाकर फंसे पेंच को दूर किया जा सकता है।
प्रदेश के बाहर वाले पर सीएम का दांव!
सूत्रों की माने तो राजे मरुधरा के नेताओं को सीएम बनाने पर बगावत कर सकती हैं। इसी के चलते शीर्ष नेतृत्व दिल्ली से अपने विश्वासपात्र को यह जिम्मेदारी दे सकता है। दिया कुमारी, गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम सामने आने पर राजे की नाराजगी सार्वजनिक हो सकती है। यदि केंद्रीय मंत्री भुपेंद्र यादव, ओम माथुर, ओम बिड़ला, सुनील बंसल, अर्जुनराम मेघवाल के नाम सामने आए तो शायद ही राजे इनका विरोध करे। हालांकि प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी की अगुवाई में पार्टी सत्ता में पहुंची है, तो उन्हें भी सीएम की जिम्मेदारी देने पर विचार किया गया है। हालांकि वह राजे सहित वरिष्ठ नेताओं को कैसे हैंडिल करेेंगे यह बड़ा प्रश्न है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव भी सीएम रेस में हैं लेकिन राजस्थान का नॉलेज व यहां राजनीतिक पकड़ मामले में वह खरे नहीं उतर पा रहे हैं। हालांकि संघ, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता के अलावा दिल्ली के कुछ ब्यूरोक्रेट्स दिया कुमारी को सीएम बनाने की पैरवी कर रहे हैं।

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