-जेजेपी की मंशा 25-28 सीट पर प्रत्याशी उतारने की लेकिन भाजपा की सहमति मिलने पर संशय
जयपुर, 3 मई : सब कुछ यदि जेजेपी यानि जननायक जनता पार्टी की रणनीति के तहत हुआ तो आगामी विधानसभा चुनाव में राजस्थान की सियासत में हरियाणवी रंग घुलने की प्रबल संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं। जेजेपी अपनी पुरानी सियासी जड़ों को राजस्थान में पुर्नजीवित करने की कोशिश कर रही है और इसके लिए उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सहमति भी बन गई है। जेजेपी उन सीटों पर प्रत्याशी उतारने की कवायद कर रही है जहां भाजपा कमजोर है। इसके लिए वह 25 से 28 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारकर हरियाणा के समान राजस्थान में भी भाजपा के साथ गठबंधन का सपना देख रही है। हालांकि भाजपा ने प्रदेश की राजनीति में अभी तक करीब चार-पांच परसेंट सीट देकर ही गठबंधन किया है। इस स्थिति में जेजेपी करीब 12 से 15 परसेंट सीट मांगकर भाजपा के साथ गठबंधन की कोशिश कर रही है, लेकिन भाजपा इसके लिए तैयार होगी या नहीं यह एक बड़ा सवाल है। सीट बंटवारे को लेकर जेजेपी-भाजपा के बीच पेच फंस सकता है।
राजस्थान का राजनैतिक इतिहास खंगाले तो पता चलता है कि वर्ष 1993 से पहले के चुनावों में भाजपा का जनता दल के साथ गठबंधन था लेकिन अयोध्या प्रकरण के बाद यह टूट गया था। वर्ष 1998 के चुनाव से पहले केंद्र स्तर पर एनडीए का गठन हो गया। इसके बाद भाजपा एनडीए में शामिल जदयू और इनेलो के साथ गठबंधन कर प्रदेश के चुनावी मैदान में उतर चुकी है, लेकिन इसके सकारात्मक परिणाम नहीं मिले। वर्ष 2008 में भी भाजपा ने गठबंधन कर चार-पांच परसेंट सीट दी, लेकिन सहयोगी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। वर्ष 2018 में इनेलो से अलग होकर अस्तित्व में आई जेजेपी ने हरियाणा की विधानसभा के अपने पहले ही चुनाव में दस सीट जीतकर भाजपा के साथ गठजाोड़ कर सत्ता में भागीदारी की। अब जेजेपी अपना विस्तार कर राजस्थान का रुख करने की योजना पर काम कर रही है। जेजेपी अपनी पुरानी सियासी जड़ों को पुर्नजीवित करने के लिए पूरी तरह सक्रिय है। हालांकि इसकी शुरुआत उन्होंने अगस्त 2022 से ही शुरू कर दी थी जब उसने यहां पर युवा सम्मेलन का आयोजन कराकर इनसो (स्टूडेंट विंग इंडियन नेशनल स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन) को छात्रसंघ चुनाव में उतारने का मन बनाया था। अब जब प्रदेश में करीब छह माह बाद विधानसभा चुनाव होना है, तो एक बार फिर से जेजेपी ने राजस्थान का रुख किया है।
हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला एवं उनके भाई यहां लगातार सक्रिय हैं। बताते हैं जेजेपी ने सर्वे भी कराया है और उसका फोकस उन सीटों पर है जहां भाजपा का वजूद नहीं है या फिर उनके प्रत्याशी परास्त होते हैं। इसके लिए वह भाजपा से 25-28 सीट मांगेगी। हालांकि इसमें सीट बंटवारे को लेकर पेच फंस सकता है। अभी गठबंधन को लेकर भाजपा पूरी तरह मौन है और इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही। सूत्रों की माने तो यदि गठबंधन नहीं हुआ तो भी जेजेपी चुनाव मैदान में उतरकर परिणाम पश्चात भाजपा का सहयोग कर उसे सत्ता तक पहुंचाने का रास्ता तैयार करेगी।
ऐसे समझें जेजेपी की रणनीति
-हरियाणा-राजस्थान दोनों पड़ोसी राज्य हैं, सीमावृति क्षेत्र में खान-पान व संस्कृति भी मिलती-जुलती है।
-सीमावृति क्षेत्र होने के चलते दोनों प्रदेश के लोगों के बीच पारिवारिक संबंध और काफी रिश्तेदारी भी हैं।
-डिप्टी सीएम दुष्यंत के परदादा व पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल का राजस्थान में काफी प्रभाव था।
-पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल सीकर से चुनाव लड़ चुके हैं।
-डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला दो बार राजस्थान से चुनाव लड़े थे।
-हरियाणा के पूर्व सीएम एवं इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला राजस्थान में वर्ष 2003 में अपनी पार्टी के छह प्रत्याशी राजस्थान विधानसभा चुनाव में उतार चुके हैं।
-वर्ष 2008 में इनेलो ने भाजपा के साथ गठबंधन कर चार प्रत्याशी चुनाव में उतारे थे।
जेजेपी की नजर इन इलाकों पर
शेखावाटी इलाका जाट बाहुल्य माना जाता है। यहां पर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का प्रभाव है। जाट वोटर करीब पांच दर्जन सीटों पर प्रभाव रखते हैं। हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनूं, नागौर, जयपुर, चित्तोडग़ढ़, अजमेर, बाड़मेर, टोंक, सीकर, जोधपुर, भरतपुर जाट बाहुल्य जिले हैं। जेजेपी की सोच है कि वह इन एरिया में अपने प्रत्याशी उतारकर कुछ सीटों पर विजय हासिल कर सकते हैं। साथ ही जेजेपी की हरियाणा से सटे अलवर, कोटपुतली, भिवाड़ी, नीम का थाना क्षेत्र पर भी नजर बनाए हुए है।
जनता दल के दौर में चली थी देवीलाल की आंधी
जनता दल के दौर में देवीलाल की आंधी चली थी, लेकिन पार्टी जब विभाजित हुई तो चौटाला खानदान सिमट गया। जनता परिवार के विघटन के बाद चौधरी देवीलाल ने अपने आखरी दिनों में इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) बनाया। हरियाणा में उनकी पार्टी सत्ता में भी आई और ओमप्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के सीएम भी रहे। इनेलो ने 2003 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में चार सीटें भी जीतीं, लेकिन चारों विधायक बाद में बीजेपी में चले गए। उसके बाद चौटाला परिवार कभी चुनाव लडऩे राजस्थान नहीं आया। वहीं 2018 में इनेलो जब दरार पड़ी तो उससे जेजेपी अस्तित्व में आई।
राष्ट्रीय पार्टी का तमगा हासिल करने की जुगत
जेजेपी की कोशिश है कि हरियाणा के समान यदि राजस्थान में सत्ता में आए तो पार्टी को ओर अधिक मजबूती मिलेगी। साथ ही जेजेपी राष्ट्रीय पार्टी बनने का तमगा हासिल करने की प्लानिंग कर रही है। इसी के चलते उसकी नजर हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली पर है। हरियाणा में आगाज हो चुका है, राजस्थान में तैयारी कर रही है और उसके बाद वह दिल्ली में दस्तक देगी।