अपनी बेटी के बलात्कार में सहयोग करने की आरोपी महिला को जमानत दी
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने उस महिला को जमानत दे दी, जिस पर अपनी ही बेटी के साथ कथित बलात्कार के मामले में दर्ज प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 (POCSO Act) मामले में मुख्य संदिग्ध की मदद करने का आरोप है। जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि एक्ट की धारा 29 के तहत अपराध का अनुमान खंडन योग्य है और यदि अभियुक्त मुकदमे के दौरान अदालत में प्रदर्शित कर सकते हैं कि अपराध का अनुमान का खंडन करने वाले भौतिक साक्ष्य हैं, तो उन्हें जमानत दी जा सकती है।
यह मामला कुपवाड़ा पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर से संबंधित है, जिसमें पीड़िता नाबालिग लड़की ने आरोप लगाया कि शब्बीर अहमद वार ने कई बार उसका यौन उत्पीड़न किया, जिसके परिणामस्वरूप वह गर्भवती हो गई। पीड़िता की मां याचिकाकर्ता को अपराध में सहअपराधी के रूप में आरोपी बनाया गया। हालांकि, मुकदमे के दौरान, पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए अपने पिछले बयान को यह कहते हुए बदल दिया कि उसकी मां की अपराध में कोई संलिप्तता नहीं थी।
जस्टिस धर ने जमानत अर्जी पर निर्णय देते हुए पीड़िता के बयान और अभियोजन पक्ष के अन्य गवाहों के बयानों का विश्लेषण किया, जिससे यह देखा जा सके कि याचिकाकर्ता अपनी बेगुनाही के लिए प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में सक्षम था। अदालत ने मुख्य रूप से पूछताछ और क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान पीड़िता के बयानों की ओर इशारा किया, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता ने उसे बेहोश करने के लिए कभी कोई दवा नहीं दी। उसने यह भी कहा कि मां को फंसाने वाला उसका पिछला बयान पुलिस के प्रभाव में दिया गया गया था।
पीठ ने पीड़िता के भाइयों के उन बयानों पर भी प्रकाश डाला, जिन्होंने याचिकाकर्ता के पक्ष में गवाही दी, उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं दिया। अदालत ने कहा, “इसलिए याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जमानत देने के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनाने में सक्षम रही है। अन्यथा भी याचिकाकर्ता को मामले की सुनवाई के दौरान लंबी कैद का सामना करना पड़ा है और अभियोजन पक्ष द्वारा अधिकांश भौतिक गवाहों की जांच की गई।” इसने ट्रायल कोर्ट की इस बात पर ध्यान नहीं देने के लिए भी आलोचना की कि पीड़िता ने खुद याचिकाकर्ता को दोषमुक्त कर दिया।
केस टाइटल: नसीमा बेगम बनाम यूटी ऑफ जेएंडके।