सबसे पहले ये दो बयान पढ़िए-
‘बीजेपी सत्ता में आई तो राजस्थान के आठ आदिवासी जिलों में आरक्षण से वंचित 93 जातियों को आरक्षण देगी’- अरुण सिंह
‘मुख्यमंत्री बार-बार कह रहे हैं जातिगत जनगणना हो, ताकि हम जातियों को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दें’- गोविंद डोटासरा
राजस्थान की सियासत में ये दोनों बयान इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। इन बयानों के पीछे सीधा सा मकसद है उन 90 से ज्यादा जातियों को साधना, जो ओबीसी वर्ग से आती हैं।
आखिर ओबीसी वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दल इतना जोर क्यों लगा रहे हैं? क्यों ओबीसी वर्ग को साधने की दोनों पार्टियों में होड़ मची है? क्या कांग्रेस पार्टी OBC आरक्षण बढ़ाने की तैयारी कर रही है? या फिर बीजेपी सत्ता में आने पर 8 जिलों में आरक्षण से वंचितों को OBC आरक्षण दे देगी?
दैनिक भास्कर ने एक्सपर्ट्स से इस सियासी मुद्दे को समझने की कोशिश की। जातियों के आंकड़े खंगाले। सामने आया कि इस वर्ग में राजस्थान की 55 प्रतिशत से ज्यादा आबादी है, जो एक पक्ष में हो जाए तो विधानसभा की 135 से ज्यादा सीटें जिता सकती है। लोकसभा की 12 से ज्यादा सीटों पर दबदबा है। इतना ही नहीं एससी-एसटी के लिए रिजर्व ज्यादातर सीटों पर भी ओबीसी निर्णायक भूमिका में है।
चुनाव से पहले ओबीसी मुद्दा गर्माने के पीछे क्या कारण हैं? जानते हैं इस रिपोर्ट में…
आरक्षण का मुद्दा चर्चा में क्यों है?
कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन से हुई शुरुआत, गहलोत की PM को चिट्ठी से गर्माया मुद्दा
24 से 26 फरवरी को छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में जातिगत जनगणना का प्रस्ताव पारित हुआ था। इसके बाद कांग्रेस की ओर से जातिगत जनगणना की मांग तेज हो गई है। हाल ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर राजस्थान में जातिगत जनगणना कराने की मांग की है।
इससे पहले उदयपुर दौरे के दौरान भी सीएम गहलोत ने इशारा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में रिपीट करती है तो ओबीसी का आरक्षण बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि देश में पहले आरक्षण के मामले में 50 फीसदी का बैरियर था, लेकिन केन्द्र के ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने के बाद ये बैरियर भी हट गया है।
सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि जब वे 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब ओबीसी का आरक्षण 21 फीसदी था। जबकि अनुसूचित जाति का आरक्षण 8 से बढ़ाकर 16 फीसदी किया गया और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 6 से बढ़ाकर 12 फीसदी किया था। गहलोत ने कहा कि उनकी पार्टी की सरकार के वक्त यह बढ़ोतरी हुई थी और आगे भी उनके वक्त में ही बढ़ोतरी होगी।
ओबीसी आयोग के पूर्व सचिव और रिटायर्ड आईएएस सत्यनारायण सिंह सीएम गहलोत के बयानों के मायने निकालते हुए कहते हैं कि जातिगत जनगणना का मुद्दा छेड़कर कांग्रेस हर वर्ग में यह नैरेटिव सेट करना चाहती है कि वह सबको आरक्षण का ज्यादा से ज्यादा फायदा देना चाहती है।
उधर, कांग्रेस की अखिल भारतीय कमेटी के सदस्य और बाड़मेर के बायतू से विधायक हरीश चौधरी ओबीसी आरक्षण को लेकर लंबे समय तक आंदोलन कर चुके हैं। उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ जयपुर में धरना भी दिया था। वे विधानसभा में अपनी ही सरकार से राजस्थान में ओबीसी का आरक्षण 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग कर चुके हैं।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट से बवाल, एक्टिव हुई दोनों पार्टियां
हाल ही जारी हुई राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान में ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने में अनियमितता बरती जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान में ओबीसी वर्ग के सर्टिफिकेट नहीं बन रहे हैं। इस रिपोर्ट के आने के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने गहलोत सरकार पर निशाना साधा और ओबीसी वर्ग से भेदभाव के आरोप लगाए। बीजेपी के आरोपों के बाद कांग्रेस भी राजस्थान में हमलावर हो गई।
8 जिलों में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं, बीजेपी का दावा: सरकार आने पर यहां ओबीसी जातियों को आरक्षण देंगे
आदिवासी बहुल इलाके के 8 जिले डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, पाली और सिरोही ट्राइबल सब-प्लान (टीएसपी) में शामिल है। टीएसपी क्षेत्र की जनसंख्या करीब एक करोड़ के आसपास है। इन क्षेत्रों में सरकारी नौकरियों के लिए अलग से आरक्षण व्यवस्था लागू है। यहां एसटी को सबसे ज्यादा 45 प्रतिशत और एससी वर्ग को 5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। इन इलाकों में ओबीसी वर्ग के लोग भी रहते हैं लेकिन उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है।
टीएसपी एरिया में बीजेपी ने ओबीसी वर्ग के आरक्षण का मुद्दा उठाया है। मोदी सरकार में श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने टीएसपी एरिया में ओबीसी वर्ग को आरक्षण नहीं मिलने का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस की गहलोत सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा- डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, पाली, सिरोही जिले में ओबीसी वर्ग के लोग रहते हैं लेकिन गहलोत सरकार यहां राज्य और केंद्र सेवाओं के लिए ओबीसी नॉन क्रीमिलेयर सर्टिफिकेट जारी नहीं कर रही है।
केंद्रीय मंत्री यादव की ओर से यह मुद्दा उठाए जाने के दूसरे ही दिन बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री और राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस करके दावा किया कि राजस्थान में भाजपा सरकार आते ही इन आठ जिलों में ओबीसी को आरक्षण लागू किया जाएगा।
मेवाड़-मारवाड़ की 37 सीटों पर फोकस
असल में आदिवासी इलाकों पर चुनाव के लिहाज से बीजेपी का पहले से ही फोकस है। इन क्षेत्रों में पिछले छह माह में पीएम मोदी के तीन दौरे हो चुके हैं। इसकी वजह है मेवाड़ की 28 विधानसभा सीटें और मारवाड़ के पाली-सिरोही की 9 विधानसभा सीटें। ऐसा माना जाता है कि जो भी मेवाड़ में बढ़त बना लेता है, उसी की पार्टी सत्ता में आती है। इसिलिए बीजेपी इन इलाकों में रह रहे ओबीसी वर्ग को आरक्षण का मुद्दा बनाकर साधने में जुटी है, ताकि मेवाड़ का किला भेद सके साथ ही प्रदेशभर में ओबीसी वर्ग को अपने पक्ष में कर सके।
SC-ST रिजर्व सीटों पर OBC वोटर निर्णायक, यही फैक्टर महत्वपूर्ण
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजस्थान की 200 में से 59 सीटें रिजर्व हैं। लेकिन ज्यादातर सीटों पर चुनाव में ओबीसी वर्ग के वोटर ही निर्णायक स्थिति में हैं। ओबीसी वर्ग का वोट पार्टी को पड़ता है, जीत उसी की होती है। यही कारण है कि इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा गूंज ओबीसी आरक्षण की सुनाई दे रही है।
पिछले चुनाव की बात करें तो बीजेपी को 29 रिजर्व सीटों पर हार के कारण सत्ता से बाहर होना पड़ गया था। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एससी और एसटी के लिए रिजर्व 59 विधानसभा सीटों में से 50 सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 59 में से केवल 21 सीटों पर ही जीत मिली।
2018 के चुनाव में बीजेपी ने एससी रिजर्व सीटों में से सिर्फ 12 और एसटी रिजर्व सीटों में सिर्फ 9 सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि कांग्रेस ने एससी की 19 और एसटी की 12 सीटों पर जीत हासिल की। हनुमान बेनीवाल की आरएलपी ने एससी के लिए रिजर्व दो सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं एक सीट निर्दलीय के खाते में गई। दो एसटी सीटों पर निर्दलीयों ने और दो सीटों पर भारतीय ट्राइबल पार्टी ने चुनाव जीता।
कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान के जिलों में एससी और एसटी रिजर्व सीटों में से अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी अलवर, भरतपुर, दौसा, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर और टोंक जिले में एससी-एसटी की एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई।
विधानसभा की 135 और लोकसभा की 13 सीटों पर ओबीसी का दबदबा
राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से 135 से ज्यादा सीटों पर ओबीसी मतदाताओं का दबदबा है। इसी तरह लोकसभा की 25 सीटों में से आधी से ज्यादा सीटें ओबीसी वर्ग की बहुलता वाली सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में नागौर, अजमेर, टोंक-सवाईमाधोपुर, जालोर-सिरोही, जैसलमेर-बाड़मेर, सीकर, चूरू, अलवर, झुंझुनूं, पाली, बारां-झालावाड़ सीट पर ओबीसी वर्ग के सांसद चुने गए थे। इसके अलावा जयपुर ग्रामीण और भरतपुर सीट पर भी ओबीसी वर्ग का दबदबा माना जाता है।
पिछले चुनाव में राजस्थान की 25 में से 7 सीटों पर तो जाट समुदाय से आने वाले कैलाश चौधरी, सुमेधानंद सरस्वती, नरेंद्र कुमार, राहुल कस्वा, भागीरथ चौधरी, दुष्यंत सिंह और हनुमान बेनीवाल सांसद बने थे। इनके अलावा पीपी चौधरी, देवजी पटेल, महंत बालकनाथ और सुखबीर सिंह जौनापुरिया भी ओबीसी वर्ग से ही आते हैं।
एक्सपर्ट कहते हैं- जो पार्टी ओबीसी को जोड़ेगी, उसकी जीत पक्की
राजस्थान ओबीसी आयोग के पूर्व सचिव और रिटायर्ड आईएएस सत्यनारायण सिंह कहते हैं- 93 जातियों की लिस्ट के अनुसार ओबीसी की जनसंख्या 55 से 60 प्रतिशत हो चुकी है। जनरल सीटों के अलावा एससी-एसटी सीटें भी ओबीसी पर निर्भर करती है। कई रिजर्व सीटें ऐसी भी हैं जहां ओबीसी की जनसंख्या 27 हजार से 50 हजार तक है। ऐसे में जो पार्टी इन सीटों पर ओबीसी को अपने साथ जोड़ेगी, वो यहां अपनी जीत पक्की करेगी। यही कारण है कि चुनाव नजदीक आते ही ओबीसी आरक्षण काे लेकर राजनीतिक दल एक्टिव हो गए हैं।
…लेकिन आरक्षण 27 प्रतिशत किया तो सुप्रीम कोर्ट रद्द कर देगा
सत्यनारायण सिंह कहते हैं कि ट्राइबल सब प्लान (टीएसपी) एरिया में ओबीसी को आरक्षण नहीं मिल रहा है। वहां ओबीसी को आरक्षण मिलना चाहिए। इसका कोई पर्याप्त ऐसा कारण नहीं है जिसकी वजह से टीएसपी एरिया में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता हो। लेकिन टीएसपी एरिया को छोड़कर बाकी राजस्थान में ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की जो मांग उठ रही है, वह कानून के हिसाब से पूरी होने वाली नहीं है।
सिंह के अनुसार- अगर ओबीसी आरक्षण 21 से 27 प्रतिशत किया जाता है तो मैं समझता हूं कि इससे जनरल और मेरिट की सीटें कम हो जाएंगी। अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा तो रद्द हो जाएगा, क्योंकि महाराष्ट्र और तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि आरक्षण तय सीमा से ज्यादा नहीं दिया जा सकता।