एडवोकेट और पिटीशनर-इन-पर्सन एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने वकील को इस मामले में वादी के रूप में शामिल होने के लिए बुलाया। यह जनहित याचिका अतुल सुभाष नामक व्यक्ति द्वारा कथित रूप से वैवाहिक मामलों के माध्यम से अपनी पत्नी द्वारा उत्पीड़न के कारण आत्महत्या करने के मद्देनजर दायर की गई। उक्त मामले में पति और उसके परिवार को कथित रूप से परेशान करने के लिए इस्तेमाल किए गए दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों की समीक्षा की मांग की गई।जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इसने जनहित याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि कानून संसद द्वारा बनाए जाते हैं और न्यायालय विधायी विवेक में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
जिस समय जस्टिस नागरत्ना ने आदेश पारित करने के लिए फाइलों का अवलोकन किया, उन्हें एहसास हुआ कि याचिका वकील द्वारा स्वयं दायर की गई।
इसलिए उन्होंने टिप्पणी की कि वकीलों को ऐसी याचिकाएं दायर करने से बचना चाहिए।
उन्होंने कहा:
“देखिए, आप एक वकील हैं। कभी भी मुक़दमा करने वाले मत बनिए। एक वकील को मुक़दमा करने से बचना चाहिए और एक वकील को कभी भी ज़मानतदार नहीं बनना चाहिए। हम दो सलाह दे रहे हैं। आप खुद को उजागर कर रहे हैं। हम शास्त्र पारित कर सकते हैं, हम लागत लगा सकते हैं। आप प्रैक्टिसनर वकील हैं। आप खुद को एक पक्ष के रूप में क्यों उजागर करना चाहते हैं?”
तिवारी ने जवाब दिया कि इस तरह के झूठे मामले लॉ प्रैक्टिस को प्रभावित कर रहे हैं। जब जस्टिस शर्मा ने पूछा कि यह उनके अभ्यास को कैसे प्रभावित कर रहा है तो तिवारी ने कहा कि उनके अभ्यास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन फिर भी जब ऐसे मामले दायर किए जाते हैं तो यह न्यायपालिका पर “बोझ” होता है।
हालांकि, जस्टिस शर्मा को यह जवाब अच्छा नहीं लगा, जिन्होंने टिप्पणी की:
“हमारे ऊपर कोई बोझ नहीं है। हमने शपथ ली है, हमें कानून के अनुसार मामलों का फैसला करना है। यह सब मत कहिए।”
केस टाइटल: विशाल तिवारी बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सी) नंबर 25/2025