2 महीने 10 दिन, मणिपुर में हिंसा शुरू हुए इतना वक्त बीत चुका। जल चुके 120 से ज्यादा गांव, 3,500 घर, 220 चर्च और 15 मंदिर हिंसा की निशानी के तौर पर खड़े हैं। इस तबाही में खाली स्कूल और खेत भी जुड़ चुके हैं। अब स्कूलों के खुलने का वक्त है और खेतों में बुआई का।
हिंसा शुरू होने के 2 महीने बाद 4 जुलाई को मणिपुर में स्कूल खोल दिए गए हैं। इंफाल में तो कुछ बच्चे स्कूल पहुंचे, लेकिन कुकी इलाकों में स्कूल खाली ही रहे। इन स्कूलों में वैसे भी फिलहाल शरणार्थी कैंप बने हुए हैं।
इसी तरह खेतों में इक्का-दुक्का किसान हैं। धान की रोपाई चल रही है। किसानों की सुरक्षा में मणिपुर राइफल्स के 2267 जवान तैनात हैं। 9 जुलाई को इंफाल में मणिपुर पुलिस के IG आइके मुइवाह ने प्रेस कॉन्फ्रेस की। उन्होंने बताया कि किसानों की सुरक्षा में जवानों को लगाने का फैसला CM बीरेन सिंह के निर्देश पर लिया गया है।
अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर जरूर ऐसा होता है, लेकिन किसी स्टेट के भीतरी इलाकों में ये ऐसा पहला ही मामला है। इसकी वजह भी है।
10 जुलाई को इंफाल वेस्ट में मैतेई और कुकी के बीच गनफाइट हुई। कथित तौर पर 4 कुकी मिलिटेंट और एक मैतेई मारा गया। इसी दिन सुबह सागोलतोंगबा इलाके में एक टाटा-407 मिनी ट्रक को भीड़ ने घेर लिया और जला दिया। लोगों को शक था कि इससे मैतेई सामान कुकी इलाके में ले जाया जा रहा था। 9 जुलाई को भी बिशनपुर में कुकी-मैतेई के बीच गनफाइट हुई। 2 सिविलियन और मणिपुर राइफल्स का एक जवान इसमें घायल हो गया।
पूरा मणिपुर दो हिस्सों में बंट गया है, रोज ऐसी गनफाइट हो रही हैं। कुकी हों या मैतेई, आम लोग बंदूकें लेकर बंकरों में तैनात हैं। मैतेई मारा जाए, तो कुकी उसे मिलिटेंट बताते हैं, कुकी मारा जाए, तो मैतेई उसे मिलिटेंट बता देते हैं।
मणिपुर के पूर्व कमिश्नर राज कुमार निमाई कहते हैं, ‘फॉरेस्ट लैंड का मुद्दा मणिपुर संकट के केंद्र में रहा है। मैतेई का आरोप रहा है कि कुकी लोगों ने पहाड़ी इलाकों में कई सारे नए गांव बसाए हैं। इस वजह से वहां की डेमोग्राफी पिछले कुछ साल में तेजी से बदली है।’
‘कुकी का अपना सिस्टम है, हर गांव का एक राजा होता है, जिसे ग्राम बोरा कहा जाता है। पूरा गांव इसी के कहने पर चलता है, सारे बड़े फैसले ये लोग ही लेते हैं। ये पद आमतौर पर एक ही परिवार के पास रहता है।’
जब कोई ग्राम बोरा से नाराज हो जाता है या उससे ज्यादा पैसे वाला हो जाता है, तो वो उसकी बात मानना छोड़ देता है। वो उस गांव में तो ग्राम बोरा नहीं बन सकता, इसलिए पास के दूसरे इलाके में जाकर अपना अलग गांव बसाना शुरू करता है। इसकी वजह से एक तरफ तो गांव की संख्या बढ़ती है और लगता है कि कुकी जनसंख्या भी बढ़ती जा रही है।
एक आरोप ये भी है कि स्थानीय कुकी लोग म्यांमार से अपने समुदाय के लोगों को लाकर भारत में बसा रहे हैं। इससे पहाड़ों की डेमोग्राफी भी बदल रही है। कुकी लोगों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है, इससे भी मैतेई घबरा रहे हैं।
ल खोलने के आदेश, लेकिन हिंसा के बीच बच्चों को भेजें कैसे
हिंसा शुरू होने के 2 महीने बाद मणिपुर में 4 जुलाई को स्कूल खोल दिए गए हैं। इंफाल में फिर भी कुछ बच्चे स्कूल पहुंचे, लेकिन कुकी इलाकों में स्कूल खाली ही रहे। इन स्कूलों में वैसे भी फिलहाल शरणार्थी कैंप बने हुए हैं। इंटरनेट पर बैन अब भी जारी है। घाटी के मैतेई, कुकी के पहाड़ी इलाकों में नहीं जा सकते। कुकी अब घाटी नहीं आ सकते, वे पड़ोसी राज्य जाते हैं और वहां से आते-जाते हैं।
मणिपुर सरकार ने आदेश जारी किया था कि 4 जुलाई से मणिपुर में 1 से 8वीं तक की क्लास वाले स्कूल खोले जाएं। सरकार के फैसले के मुताबिक, इंफाल घाटी में स्कूल खुले भी, लेकिन पहाड़ी इलाकों में अभी भी स्कूल बंद हैं।
हिंसा की शुरुआत से ही मणिपुर की बीरेन सिंह सरकार पर कुकी लोगों के साथ पक्षपाती होने का आरोप लगना शुरू हो गया। हालत ये हैं कि कुकी बहुल पहाड़ी इलाकों में कोई भी मैतेई सरकारी अफसर नहीं जा रहा।
हम कांगपोकपी के साइकुल इलाके पहुंचे थे। यहां के थानों में मुस्लिम थानेदार और कुकी-नगा सिपाही ही तैनात हैं। हिंसा के बाद मैतेई अफसर इंफाल भेज दिए गए हैं। इंफाल में तैनात रहे कुकी अफसर या तो छुट्टी पर हैं या फिर उनका ट्रांसफर हो गया है।
हथियार लूटे गए, हिंसा होती रही तो सेना-सेंट्रल फोर्स कहां थे…
इस सवाल का जवाब ये है कि मणिपुर बेहद जटिल राज्य है। यहां तीन बड़े स्टेकहोल्डर हैं। पहले मैतेई, ये लोग जनजाति का दर्जा चाहते हैं, जिससे पूरे राज्य में बसने और जमीन खरीदने का अधिकार मिले। दूसरे हैं कुकी, ये सेपरेट एडमिनिस्ट्रेशन चाहते हैं। इनका आरोप है कि सरकार में मैतेई का वर्चस्व है और वे उनके अधीन नहीं रह सकते।
तीसरे हैं नगा, मणिपुर से तो अलग होना चाहते हैं, लेकिन अब भारत से अलग नहीं होना चाहते। वे ग्रेटर नगालैंड या नगालिम की मांग कर रहे हैं। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड यानी NSCN और केंद्र के बीच इसी पर बातचीत चल रही है।
अब ये तीनों ऑटोमेटिक हथियारों से लैस हैं। सुरक्षाबल कुछ हथियारों को जब्त तो कर सकते हैं, लेकिन हथियारों की सप्लाई नहीं रुक रही। कुकी के पास अपने मिलिटेंट ग्रुप हैं, जिनका कनेक्शन म्यांमार में बैठे मिलिटेंट ग्रुप्स से है।
सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि इनमें से किसी भी ग्रुप ने भारत के खिलाफ विद्रोह नहीं किया है। ऐसे में ये देश के दुश्मन नहीं हैं। दीमापुर में तैनात सेना की ‘स्पियर कोर’ को मणिपुर में भेजा गया है। सेना की मदद के लिए CRPF, BSF और असम राइफल्स की कई बटालियन भी भेजी गई हैं, लेकिन इनके पास गोली चलाने या कार्रवाई करने के अधिकार नहीं हैं।
मणिपुर में कोई दुश्मन ही नहीं, इसलिए सेना और सुरक्षाबालों का रोल संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना जैसा है। ये संघर्ष के इलाके में शांति के प्रयास करते हैं, लड़ाई से बचते हैं और आम लोगों के लिए माल और सप्लाई जारी रहे, इसके लिए रास्ते सुरक्षित करते हैं। बिना आदेश के न तो ये किसी के हथियार जब्त कर सकते हैं, न ही फायरिंग कर सकते हैं। जब हिंसा हुई, बंकर बने और मणिपुर बंटा तब सेंट्रल फोर्स शांति और बचाव के प्रयासों में थीं, आज भी हैं।
वीरान पड़ी लोकटक झील, टूरिज्म का पूरा कारोबार ठप
मणिपुर में पर्यटकों के लिए घूमने की सबसे पसंदीदा जगह है- लोकटक की फ्लोटिंग लेक। हमने चुराचांदपुर की तरफ जाने वाले रास्ते पर पड़ने वाली इस लोकटक झील का भी दौरा किया। मणिपुर में हिंसा के हालात के बीच इस लेक को बंद कर दिया गया है। बोटिंग से लेकर सारी दूसरी एक्टिविटीज पर ताला लगा हुआ है।
मणिपुर गेस्ट हाउस होटल चलाने वाले मानसिंह बताते हैं, ‘पिछले 2 महीने से उनका होम स्टे लगभग खाली पड़ा है। मणिपुर में ज्यादातर लोग घूमने के लिए ही आते हैं, लेकिन अब हिंसा की वजह से कोई टूरिस्ट मणिपुर नहीं आ रहा है।’
150 लोगों की मौत, 60 हजार विस्थापित, कहां है सरकार?
हिंसा के बाद मणिपुर राज्य एक तरह से बंट गया है। हिंसा का सबसे ज्यादा शिकार वे लोग हुए, जो अपने इलाके में अल्पसंख्यक थे। घाटी वाले मैतेई बहुल इलाकों में रहने वाले कुकी, दूसरी तरफ पहाड़ी इलाकों में रहने वाले मैतेई।
करीब 60 हजार लोग अपना घर छोड़ राहत शिविरों में विस्थापित हो चुके हैं। उनके लिए बने रिफ्यूजी कैंप भी उसी तरह बने हुए हैं। पूरी इंफाल घाटी में एक भी कुकी राहत कैंप नहीं है, वहीं पहाड़ी इलाकों में एक भी मैतेई कैंप नहीं है।
हमने घाटी और पहाड़ी दोनों इलाकों में कई राहत शिविरों का दौरा किया। दोनों ही तरफ के राहत शिविरों में सरकार ने कोई मदद नहीं की है, सारे राहत शिविर कम्युनिटी हेल्प से ही चल रहे हैं। फिलहाल मणिपुर में करीब 350 रिफ्यूजी कैंप हैं, जिसमें करीब 60 हजार विस्थापित लोग रह रहे हैं।
शांति के लिए अब तक केंद्र ने क्या किया
केंद्र सरकार ने मणिपुर हिंसा की जांच के लिए 4 जून को एक आयोग बनाया था। आयोग की अध्यक्षता गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस अजय लांबा कर रहे हैं। इसके अलावा 10 जून को केंद्र सरकार ने मणिपुर में अलग-अलग जातीय समूहों के बीच शांति बनाने और बातचीत शुरू करने के लिए राज्यपाल अनुसूइया उइके की अध्यक्षा में एक शांति समिति बनाई है।
चाहे जांच आयोग हो या शांति समिति, कुकी के कई बड़े संगठनों और सिविल सोसाइटी ग्रुप ने इस बातचीत में शामिल होने से इनकार कर दिया है। गृहमंत्री अमित शाह ने भी मणिपुर का दौरा किया था और विस्थापित लोगों के लिए 101.75 करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की थी। हालांकि उनकी अपील का भी कोई असर नहीं हुआ।
सच तो ये है कि CM बीरेन सिंह को शांति समिति का हिस्सा बनाने से ही कुकी नाराज हैं। CM इस हिंसा को लगातार म्यांमार से आए कुकी घुसपैठियों की साजिश बता रहे हैं। कुकी का आरोप है कि CM ने ही आरामबाई टेंगोल और मैतेई लिपुन जैसे संगठनों को सपोर्ट किया। इन संगठनों ने इंफाल में कुकी के खिलाफ हिंसा की। उधर, CM का दावा है कि राज्य सरकार शांति बहाल करने के लिए सभी प्रयास कर रही है।
CM बीरेन सिंह का दावा- मैंने कुकी भाई-बहनों से बात की
2 जुलाई को CM ने दावा किया कि उन्होंने अपने ‘कुकी भाइयों और बहनों’ से टेलीफोन पर बात की और कहा, ‘आइए एक-दूसरे को माफ करें और पुरानी बात भूल जाएं।’
CM ने कहा, ‘हम शांति बहाल करने के लिए हर स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। कुछ घंटे पहले, मैंने अपने कुकी भाइयों और बहनों से टेलीफोन पर बात की थी और उनसे सुलह करने का और हमेशा की तरह एक साथ रहने का आग्रह किया। हमने केवल म्यांमार की अशांति के मद्देनजर बाहर से आने वाले लोगों की जांच करने और स्थिति में सुधार होने पर उन्हें वापस भेजने की कोशिश की है। हमारी प्राथमिकता मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करना है।’
CM ने आगे कहा, ‘हम एक हैं। सभी 34 जनजातियों को एक साथ रहना होगा। हमें बस यह सावधान रहना होगा कि बाहर से बहुत से लोग यहां आकर न बस जाएं।’