मांजी के मंदिर और घाट पर शुल्क लगेगा या नहीं, फैसला आज देवस्थान विभाग के अधीन मंदिर और घाट पर खुद विभाग ले रहा शुल्क

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उदयपुर। देवस्थान विभाग द्वारा पिछोला झील किनारे मांजी के मंदिर और घाट पर लगाए जा रहे शुल्क के विरोध में अदालत में पेश वाद को लेकर फैसला गुरुवार को आने की संभावना है।मिली जानकारी के अनुसार इस मामले में बुधवार को भी अदालत में सुनवाई हुई। जिसमें देवस्थान विभाग की ओर से आयुक्त, जिला कलक्टर तथा पुलिस अधीक्षक की ओर से अधिवक्ता अनुराग शर्मा, नगर निगम की ओर से राजेंद्र सिंह ओझा और महेंद्र ओझा तथा नगर विकास प्रन्यास की ओर से पैनल अधिवक्ता पूनम सिंह ने पैरवी की। वहीं अदालत में वाद प्रस्तुत करने वाले एडवोकेट भरत कुमावत, निर्मल चौबीसा, जय सोनी, रोहित चौबीसा की ओर अधिवक्ता डॉ. प्रवीण खंडेलवाल ने पैरवी की। प्रतिवादी अधिवक्ताओं का तर्क था कि प्रस्तुत वाद पत्र एवं अस्थाई निषेधाज्ञा में मांगा गया अनुतोष पूर्व में प्रस्तुत वाद पत्र नरेंद्र सिंह राजावत, माझी मंदिर पुजारी द्वारा पर प्रस्तुत वाद पत्र का अनुतोष एक ही होने के कारण उक्त प्रकरण चलने योग्य नहीं है। जिसके जवाब में वादी पक्ष के एडवोकेट खंडेलवाल ने कहा कि वादी के प्रार्थना पत्र एवं पूर्व में प्रस्तुत वाद पत्र का अनुतोष अलग-अलग हैं। पूर्व के बाद पत्रों में नगर निगम उदयपुर, नगर विकास प्रन्यास उदयपुर को पक्षकार नहीं बनाया गया, जबकि वादी के वाद पत्र में इन्हें पक्षकार बनाया है। वादी का अनुतोष अलग अलग होने के कारण वादी का दावा न्यायालय में सुनने योग्य है। अस्थाई निषेधाज्ञा पर बहस के दौरान राजकीय अधिवक्ता अनुराग द्वारा मंदिर की टेंडर की शर्तों का उल्लेख करते अस्थाई निषेधाज्ञा नहीं देने की बात कही। जबकि अधिवक्ता खंडेलवाल ने बहस में बताया कि मंदिर, घाट का निर्माण उदयपुर के तत्कालीन महाराणाओं ने सार्वजनिक उपयोग के लिए बनाया गया है। देवस्थान विभाग जन भावना के विपरीत मंदिर प्रवेश पर शुल्क, प्री-वेडिंग शुल्क ले रहा है, जिसके जरिए देवस्थान विभाग टेंडर की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2017 में पिछोला झील को नगर निगम उदयपुर को स्वामित्व हस्तांतरित कर दिया। उन्होंने कहा कि तबारियों का उपयोग और उपभोग प्री वेडिंग शूटिंग के लिए किया जा रहा है, जबकि उक्त तवारियों का निर्माण कर्मकांड के लिए कराया गया था। जबकि अब देवस्थान विभाग खुद तबारियों में कर्मकांड करने वालों को रोका जा रहा है। उन्होंने बताया कि घाट व आसपास की संपत्ति आराजी नम्बर 361 रकबा 22.200 हैक्टर भूमि है, जिसका राजस्व रिकार्ड में आबादी भूमि होकर नगर विकास प्रन्यास के नाम पर दर्ज है। वादी पक्ष के अन्य अधिवक्ता धर्मनारायण जोशी ने कहा कि हनुमान मंदिर पर ताला लगा रहने, मंदिर परिसर की गरिमा, पवित्रता को आघात पहुंचाने वाली पाश्चात्य संस्कृति वाली प्री वेडिंग सभ्यता को देवस्थान विभाग मान्यता दे रहा है। हिंदुओं की जन भावना को ध्यान में न रखकर मंदिर प्रवेश पर लगाया गया, उक्त शुल्क औरंगजेब के समय लिया जाने वाले जजिया कर के समान है। हिंदुओं से मंदिर प्रवेश के लिए लिए जाने वाला शुल्क कर एवं टैक्स है। अधिवक्ता भारत कुमावत द्वारा बहस में कहा कि अन्य आत्मनिर्भर श्रेणी मंदिरों के समान ही माँजी मंदिर, हनुमान मंदिर दर्शनार्थियों के लिए खुला रहना चाहिए। नगर निगम उदयपुर की ओर से अधिवक्ता राजेंद्र सिंह राठौड व महेंद्र ओझा ने पिछोला एवं पिछोला झील पर निर्मित घाटों का स्वामित्व निगम का होना बताया। आदेश के लिए आगामी पेशी 27 अप्रेल दी गई और इस मामले में गुरुवार को अदालत के फैसला सुनाए जाने की संभावना है।

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