Krishna Janmabhoomi Case Dispute : जानें कब और कैसे शुरू हुआ विवाद? क्या है श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह की कहानी

Share:-

Krishna Janmabhoomi Land Dispute: शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। आइए जानते हैं पूरी कहानी…

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में बड़ा फैसला आया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज शाही ईदगाह मस्जिद की याचिका को खारिज कर दिया जिसमें हिंदू पक्षों द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता को चुनौती दी गई थी। इस निर्णय के साथ, सभी 18 मुकदमों की योग्यता के आधार पर उनकी सुनवाई का रास्ता साफ हो गया। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की पीठ ने सभी 18 मुकदमों को विचारणीय पाया है।

पहले जानिए आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या-क्या कहा?

न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल न्यायाधीश ने 6 जून को शाही ईदगाह मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका में हिंदू पक्षों द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया गया था। गुरुवार को अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज कर दिया। गुरुवार को अदालत ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि हिंदू पक्षों के वादों पर सीमा अधिनियम या पूजा स्थल अधिनियम आदि के तहत रोक नहीं है।

इसके साथ ही न्यायालय ने प्रबंध ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह (मथुरा) समिति द्वारा दी गई प्राथमिक दलील को खारिज कर दिया। समिति की दलील थी कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मुकदमे उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और विशिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के तहत वर्जित हैं।

दोनों पक्षों ने अदालत में क्या दलीलें दीं?
एकल न्यायाधीश ने इस साल फरवरी में मस्जिद समिति की आपत्तियों पर सुनवाई शुरू की थी। न्यायालय के सामने, मुस्लिम पक्ष ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित अधिकांश मुकदमों में वादी भूमि के स्वामित्व का अधिकार मांग रहे हैं। यह मांग 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के बीच हुए समझौते का विषय था। दरअसल, 1968 के समझौते में विवादित जमीन को बांटा गया था और दोनों समूहों को 13.37 एकड़ के परिसर के भीतर एक-दूसरे के क्षेत्रों से दूर रहने के लिए कहा गया था। मुस्लिम पक्ष ने हालांकि तर्क दिया कि मुकदमों को कानून उपासना अधिनियम 1991 समेत कई नियमों द्वारा विशेष रूप से वर्जित किया गया है।

दूसरी ओर, हिंदू पक्षकारों ने दलील दी कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई भी संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है और उस पर अवैध रूप से कब्जा है। उन्होंने यह भी दलील दी कि अगर यह संपत्ति वक्फ की संपत्ति है, तो वक्फ बोर्ड को यह बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की है। उन्होंने यह भी दलील दी कि इस मामले में उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम और वक्फ अधिनियम लागू नहीं होते।
अदालत में दायर मूल वादों में अन्य बातों के साथ-साथ शाही ईदगाह को हटाने की मांग की गई। इन वादों की स्वीकार्यता को चुनौती देते हुए मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया था कि वादी ने वाद में 1968 के समझौते को स्वीकार किया है। वादी ने इस तथ्य को भी स्वीकारा है कि भूमि, जहां ईदगाह बनी है, का कब्जा मस्जिद प्रबंधन के नियंत्रण में है और इसलिए यह वाद सीमा अधिनियम के साथ-साथ उपासना स्थल अधिनियम द्वारा भी वर्जित होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वादों में इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया है कि संबंधित मस्जिद का निर्माण 1669-70 में हुआ था।

दूसरी ओर, हिन्दू पक्ष ने तर्क दिया कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करना, उसकी प्रकृति बदलना और बिना स्वामित्व के उसे वक्फ संपत्ति में बदलना वक्फ की प्रकृति है और इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इस मामले में वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे क्योंकि विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है।

यह भी तर्क दिया गया कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधान विवादित संपत्ति के पूरे हिस्से पर लागू होते हैं। इसकी अधिसूचना 26 फरवरी 1920 को जारी की गई थी और अब इस संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

कितना पुराना विवाद?
शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है।

पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।

इतिहास क्या कहता है?
ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठा जीते। जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *