केस टाइटल- ठाकुर केशव देव जी, महाराज विराजमान मंदिर कटरा केशवदेव और 2 अन्य बनाम भारत संघ और 3 अन्य : ‘औरंगजेब ने मस्जिद की सीढ़ियों पर हिंदू मूर्तियां उकेरी थीं’ दावे वाले सूट में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा इदगाह मस्जिद को प्रतिवादी बनाने की अनुमति दी

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह शाही मस्जिद ईदगाह, मथुरा द्वारा दायर आवेदन स्वीकार किया, जिसमें ठाकुर केशव देव जी, महाराज विराजमान मंदिर कटरा केशवदेव (कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में मुकदमा नंबर 3) द्वारा दायर मुकदमे में पक्षकार बनने की मांग की गई।

इस मुकदमे में वादी दावा करते हैं कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1670 में कटरा केशदेव मंदिर को ध्वस्त कर दिया, बहुमूल्य सोने और हीरे के आभूषण लूट लिए और मुगल साम्राज्य की तत्कालीन राजधानी आगरा में जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर पवित्र देव विग्रह रख दिया। मुकदमे में शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई। न्यायालय के समक्ष आवेदक (सचिव तनवीर अहमद के माध्यम से शाही मस्जिद ईदगाह मथुरा मस्जिद) ने तर्क दिया कि वह मुकदमे में आवश्यक और उचित पक्ष है, क्योंकि वादी के दावों का कोई आधार नहीं है। मस्जिद के नीचे या उसके मंच या सीढ़ियों पर इस प्रकार की कोई मूल्यवान मूर्ति या प्रतिमा नहीं रखी हुई।

इस कारण से, यह तर्क दिया गया कि आवेदक को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने की अनुमति दी जानी चाहिए, जिससे मामले का उचित और प्रभावी निर्णय हो सके। अन्यथा, आवेदक के हित खतरे में पड़ जाएंगे और गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।

दूसरी ओर, इस आवेदन का विरोध करते हुए वादी ने तर्क दिया कि चूंकि औरंगजेब हिंदू धर्म का विरोधी था। देव विग्रह के उक्त मूल्यवान आभूषण आगरा में बेगम साहिबा मस्जिद की सीढ़ियों में दफनाए गए। इसलिए शाही मस्जिद ईदगाह, मथुरा को मुकदमे में पक्षकार बनाने का अधिकार नहीं होना चाहिए।

इन दलीलों की पृष्ठभूमि में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि चूंकि आवेदक अधिकांश मुकदमों में प्रतिवादी है। वह अधिकांश मुकदमों में खुद को प्रभावी ढंग से लड़ रहा है। इसलिए उसे वाद संख्या 3 में भी प्रतिवादी के रूप में पक्षकार बनाया जाना चाहिए।

एकल जज ने आवेदन स्वीकार करते हुए टिप्पणी की,

“आवेदक हालांकि आवश्यक पक्ष नहीं है, लेकिन वह ऐसा व्यक्ति है, जिसकी उपस्थिति न्यायालय को मुकदमों में विवादित सभी मामलों पर पूरी तरह से प्रभावी और पर्याप्त रूप से निर्णय लेने में सक्षम बनाएगी। इसलिए आवेदक वाद में एक “उचित पक्ष” है। उसे वाद में पक्षकार के रूप में पक्षकार बनाया जाना चाहिए।”

इसके अलावा, न्यायालय ने वादी को एक सप्ताह के भीतर वाद में प्रतिवादी के रूप में आवेदक को पक्षकार बनाने के लिए वाद में आवश्यक संशोधन पेश करने का भी निर्देश दिया।

शाही मस्जिद ईदगाह मथुरा की ओर से एडवोकेट तस्नीम अहमदी और नसीरुज्जमां पेश हुए। ASI की ओर से अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह पेश हुए।

केस टाइटल- ठाकुर केशव देव जी, महाराज विराजमान मंदिर कटरा केशवदेव और 2 अन्य बनाम भारत संघ और 3 अन्य

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