भाजपा ने एक्शन लिया तो कांग्रेस में जाएंगे कैलाश मेघवाल?

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विधानसभा अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर रहे 90 साल के भाजपा नेता कैलाश मेघवाल एक बार फिर सुर्खियों में हैं। केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को भ्रष्ट बताकर मंत्रिमंडल से बाहर निकालने का बयान देने पर भाजपा ने उन्हें अनुशासनहीनता का नोटिस भेज दिया है।

चर्चा है कि मेघवाल अगर आरोप साबित नहीं कर पाए या फिर अपने बयान का खंडन नहीं किया तो पार्टी उन्हें बाहर कर सकती है। कैलाश मेघवाल ने कहा है कि वे किसी से दबने या डरने वाले नहीं। नोटिस का जवाब देंगे। आरोपों के सबूत इकट्ठे कर खुलासा करेंगे।

मेघवाल अक्सर अपने बयानों के कारण चर्चा में बने रहते हैं। जब संवाददाता उनका पक्ष जानने के लिए सिविल लाइंस स्थित उनके सरकारी आवास पर पहुंचे तो वे एक लंबी चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिख रहे थे। इस चिठ्‌ठी में वे केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ लगाए आरोपों के बारे में जानकारी पीएम मोदी को देते दिखाई दे रहे थे।

उनकी मांग है कि अर्जुनराम को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से बाहर किया जाए। ठीक 90 साल की उम्र में वे अपनी टीम को निर्देश दे रहे थे कि केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल पर जो आरोप लगाए हैं, उनके दस्तावेज जुटाए जाएं। ज्यादातर दस्तावेज तब के हैं, जब अर्जुनराम मेघवाल वर्ष 2009 में बीकानेर से चुनाव लड़ने से पहले आईएएस अफसर थे।

कैलाश मेघवाल के मोबाइल पर लगातार उनके समर्थकों, पार्टी पदाधिकारियों, मित्रों आदि के फोन भी आ रहे थे, जवाब में वे सभी को एक ही बात कह रहे थे कि मेरे को जो कहना था मैंने कह दिया। मैं अपने दिल की बात सुनता हूं। नोटिस का जवाब भी दे दूंगा।

मैं किसी से डरने वाला नहीं हूं- कैलाश मेघवाल

इसी मुद्दे पर हमने मेघवाल से बातचीत का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि वे किसी से दबने या डरने वाले नहीं हैं। भाजपा ने जो नोटिस भेजा है, उसका जवाब वे 6-7 सितंबर को जयपुर में एक प्रेस वार्ता के माध्यम से ही देंगे।

प्रेस वार्ता में ही बताएंगे कि उन्होंने क्यों और कितने प्रमाणिक आरोप लगाए हैं। भास्कर ने कैलाश से और कई सवाल पूछने चाहे। लेकिन उनका जवाब था कि अब वे प्रमाण इकट्ठे करने के बाद ही कुछ बोलेंगे। साथ प्रेस वार्ता में सारे तथ्य पेश करेंगे।

जवाब आने दीजिए, जरूरी लगा तो कार्रवाई करेंगे : ओंकार सिंह लखावत

भाजपा की अनुशासन समिति के अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत ने भास्कर को बताया कि मेघवाल को उनका पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया गया है। हमने नोटिस देकर 10 दिनों में जवाब देने को कहा है। उनका जवाब आने पर प्रदेशाध्यक्ष सी. पी. जोशी को सौंपा जाएगा। जोशी और पार्टी के स्तर पर आगे निर्णय किया जाएगा। अगर पार्टी उनके जवाब से संतुष्ट हुई तो ठीक है, अन्यथा फिर जो कार्रवाई ऐसे मामलों में की जाती है, वो की ही जाएगी।

कार्रवाई करना और न करना दोनों मुश्किल

प्रदेश में विधानसभा के चुनाव महज ढाई-तीन महीने दूर हैं। ऐसे में चुनावों से ठीक पहले उठा यह मामला भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी करेगा। दोनों दिग्गजों के बीच भाजपा को स्टैंड लेना मुश्किल भरा होगा।

अगर पार्टी कैलाश मेघवाल पर कार्रवाई नहीं करेगी तो अर्जुनराम पर लगाए गए आरोपों पर पार्टी को जवाब देना होगा। अगर पार्टी कैलाश मेघवाल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करती है, तो उनके समर्थकों में पार्टी के प्रति रोष उत्पन्न होगा। कैलाश 1967 से जनसंघ और बाद में भाजपा से जुड़े हुए हैं। दोनों ही मेघवाल समाज से जुड़े हुए हैं।

इस समाज का प्रभाव प्रदेश की 200 में से 90 सीटों पर माना जाता है। वर्तमान में करीब 15-16 विधायक मेघवाल समाज से हैं। पार्टी प्रभावशाली दलित समुदाय को अपने साथ रखना चाहती है। ऐसे में इस मामले में फैसला करना पार्टी के लिए चुनौती भरा होगा।

क्या कांग्रेस में जा सकते हैं कैलाश मेघवाल?

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि कैलाश मेघवाल के खिलाफ अगर भाजपा ने कोई कड़ा कदम उठाया तो वे कांग्रेस में जाने या निर्दलीय चुनाव लड़ने का रास्ता भी अपना सकते हैं। वरिष्ठ पत्रकार सत्य पारीक बताते हैं कि यह चर्चाएं निराधार नहीं हैं।

करीब दो महीने पहले सीएम अशोक गहलोत ने सरकार को गिराने की कोशिश से बचाने वाले नेताओं में कैलाश मेघवाल का नाम भी लिया था।

हाल ही जब नए जिले बनाने की घोषणा सरकार ने की तो कैलाश मेघवाल के निर्वाचन क्षेत्र शाहपुरा को जिला घोषित कर दिया। कैलाश मेघवाल ने भी यह कह कर मुख्यमंत्री की तारीफ की थी कि उन्होंने सीएम से जो मांगा वो उन्होंने दिया।

शाहपुरा ऐसी सीट है, जहां पिछले चार चुनावों में कांग्रेस केवल एक बार ही जीती है। ऐसे में अगर कैलाश मेघवाल को भाजपा शाहपुरा से टिकट नहीं देती है, तो उनके पास सारे विकल्प खुले हैं। चूंकि मेघवाल लगातार दो बार शाहपुरा से चुनाव जीते हैं। जिला बनाने का श्रेय भी उनके खाते में दर्ज है, तो भाजपा से बाहर आने पर कांग्रेस उनका स्वागत कर सकती है।

वसुंधरा राजे पर लगाए थे आरोप, अगले चुनाव में टिकट गंवा बैठे थे मेघवाल

वर्ष 2003 से 2008 के बीच प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और 2007 में दिल्ली में राजस्थान के संदर्भ में तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह एक बैठक ले रहे थे। बैठक में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित कई वरिष्ठ नेता और कैलाश मेघवाल भी मौजूद थे।

मेघवाल ने मीटिंग में ही राजे को भ्रष्ट सीएम बता दिया था। मेघवाल ने चेतावनी दी थी कि अगर राजे ही सीएम रहती हैं, तो वर्ष 2008 में होने वाले विधानसभा चुनावों में सरकार रिपीट नहीं होगी। मेघवाल ने राजे पर आरोप तो लगाए, लेकिन वे कभी भी किसी अधिकृत स्तर पर उन्हें साबित नहीं कर पाए।

वसुंधरा सरकार में ही मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष बने

राजे पर आरोपों के चलते मेघवाल का टिकट काट दिया गया। लेकिन 2013 में जब राजे ने बतौर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष कांग्रेस सरकार के खिलाफ राजस्थान में सुराज संकल्प यात्रा निकाली तो उनकी टीम में विश्वस्त सहयोगी के रूप में कैलाश मेघवाल की वापसी हुई।

मेघवाल सभी 200 विधानसभा सीटों पर राजे के साथ यात्रा में गए। सभाओं में उन्हें वक्ता बनाया गया। दिसंबर-2013 में शाहपुरा (भीलवाड़ा) से टिकट दिया गया और वे चुनाव जीते।

चुनाव जीतने के बाद मेघवाल को राजे सरकार में खान मंत्री बनाया। करीब एक महीने मंत्री रहने के बाद उन्हें कैबिनेट से बाहर कर विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया।

इसके बाद उन्हें 2018 में फिर से शाहपुरा से ही टिकट दिया गया और वे तब लगातार दूसरी बार चुनाव जीते।

गुलाब चंद कटारिया के खिलाफ भी लिख दी थी चिट्ठी

भाजपा के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया के खिलाफ भी मेघवाल ने सितंबर-2021 में एक चिठ्‌ठी लिख दी थी।

तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को उन्होंने चिट्ठी लिखकर बताया था कि राज्य में गत दिनों हुए विधानसभा उप चुनावों में हार का कारण कटारिया द्वारा की गई अनुचित बयानबाजी है।

कटारिया ने भगवान श्रीराम और महाराणा प्रताप के बारे में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अमर्यादित टिप्पणी की है। उनकी इस बयानबाजी से लोगों में रोष व्याप्त है।

ऐसे में उनके खिलाफ पार्टी के स्तर पर निंदा प्रस्ताव लाया जाना चाहिए। हालांकि बाद में वे निंदा प्रस्ताव नहीं लाए, क्योंकि प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने उन्हें समझाकर शांत कर दिया था।

90 की आयु में टिकट की जिद कर रहे मेघवाल

भाजपा ने बीते कई वर्षों में किसी ऐसे उम्मीदवार को विधानसभा या लोकसभा का टिकट नहीं दिया है, जिसकी आयु 90 वर्ष हो। पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी (94) और पूर्व मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी (90) इसके उदाहरण हैं।

मेघवाल ने भाजपा के लिए कोठिया (शाहपुरा) में बयान दिया है कि मैं टिकट लेने नहीं आऊंगा मेरा टिकट मेरे पास भिजवा दो। मेघवाल की आयु 90 साल है, ऐसे में उन्हें अब टिकट मिलना भाजपा की रणनीति के हिसाब से संभव नजर नहीं आता।

क्या दिग्गज दलित नेता बनने की लड़ाई है?

कैलाश मेघवाल वकील थे, तब 1967 में भैरोंसिंह शेखावत उन्हें राजनीति में लेकर आए थे। शेखावत पहली बार 1977 में सीएम बने तो मेघवाल को भी टिकट दिया और जीते तो उन्हें मंत्री भी बनाया। बाद मेघवाल जालोर-सिरोही और टोंक की लोकसभा सीटों से सांसद भी रहे।

वे केन्द्र में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री (1999-2004) भी रहे। वे शेखावत की सरकार में (1993-1998) के बीच प्रदेश के गृह मंत्री भी रहे और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे।

भाजपा के पिछले 4-5 दशक की यात्रा में राजस्थान में कैलाश मेघवाल एक मात्र दिग्गज दलित नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे। लेकिन वर्ष 2009, 2014 और 2019 में लगातार बीकानेर से तीन चुनाव जीत कर केन्द्र में मंत्री बनने के बाद अर्जुनराम मेघवाल का कद भाजपा में तेजी से बढ़ा है। अर्जुनराम भाजपा की कई राज्य और राष्ट्र स्तरीय समितियों में सदस्य या पदाधिकारी भी हैं। ऐसे में दोनों के बीच लोकप्रियता और कद की लड़ाई सामने आ ही गई है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार भूपेन्द्र ओझा का कहना है कि कैलाश मेघवाल एक दबंग राजनेता हैं, जो अपने बयानों से अपनी जगह बनाते आए हैं। जब वसुंधरा पर आरोप लगाए थे, तो उसके बाद वे मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष तक बने। वे राजस्थान के अलग-अलग सात-आठ इलाकों से सांसद और विधायक रहे हैं।

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