INTERNATIONAL WOMEN’S DAY ईरान प्रोटेस्ट : चंद बाल स्कार्फ से बाहर और बदले में मौत

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हिजाब बंदिश या आजादी विषय पर क्या बोलीं भारतीय मुस्लिम महिलाएं
‘ये जिन बच्चियों का कत्ल किया गया, उन्हें ही इसके लिए दोषी नहीं कहा जा सकता। उन्हें कत्ल कर देते हैं, महसा अमीनी की तरह मार देते हैं, क्योंकि उनके चंद बाल स्कार्फ से बाहर निकल जाते हैं। कुछ लड़कियों को इसलिए मार देते हैं, क्योंकि उन्होंने प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया। कुछ लड़कियों को इसलिए मार दिया, क्योंकि वे अपनी कार में बैठकर सड़क पर हो रहे प्रोटेस्ट के वीडियो बना रही थीं। लड़कियों को उन्हीं के कत्ल के लिए जिम्मेदार ठहराना बेवकूफी है। ये सब जो हो रहा है, उसके लिए एक ही जिम्मेदार है- इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान।’

ईरानी एक्टिविस्ट शाहपारक जब ये कह रही थीं, तो घर से दूर होने का दर्द उनकी आंखों में नजर आ जाता है। उन्होंने एक वीडियो में अपनी बात मुझे भेजी है। शाहपारक ‘फेमे आजादी’ ग्रुप से जुड़ी हैं। ये ग्रुप ईरान में महसा अमीनी की मौत के बाद फ्रांस में रह रहीं 10 ईरानी महिलाओं ने बनाया था। शाहपारक अब वहीं से ईरानी महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। वे कहती हैं- ‘अगर मैं ईरान गई तो वे मुझे फांसी दे देंगे।’
भारत में बीते साल हिजाब का मुद्दा गरमाया रहा, कर्नाटक के स्कूल में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा। प्रदर्शन हुए, बाद में कुछ मुस्लिम लड़कियों ने हिजाब पहनने के लिए स्कूल और एग्जाम तक छोड़ दिए।

ये बहस इतनी सीधी भी नहीं, इसलिए मैंने इस मुद्दे पर भारत में मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की। आज वूमेंस डे भी है, तो पढ़िए कि हिजाब पर आप कुछ भी सोचते हों, लेकिन जिन्हें ये पहनना है, वो इस बारे में क्या सोचती हैं।

‘कोई मौलाना नहीं बताएगा कि लड़कियां कैसे जीएं’
‘अगर मैं बाहर जाकर विरोध नहीं करूंगी, तो और कौन करेगा?’ ये सवाल मरने से पहले मीनू मजीदी का था। 62 साल की मीनू को ईरान की सड़कों पर सुरक्षाबलों ने गोली मार दी थी। ऐसे मरने वाली औरतों की लिस्ट लंबी है। इस मसले पर सबसे पहले मेरी बातचीत मुसर्रत जावेद से हुई।

मुसर्रत कोलकाता के मटियाबुर्ज इलाके में रहती हैं। वे पीएचडी कर चुकी हैं, हिजाब भी पहनती हैं। मुसर्रत कहती हैं- ‘मेरा इस्लाम को देखने का नजरिया अलग है। मैं हिजाब समेत इस्लाम के हर कायदे को फॉलो करती हूं। मुझे तो लगता है इस्लाम में वीमेन एम्पावरमेंट को ज्यादा तवज्जो दी गई है।’ ये कहते हुए वे चुप हो जाती हैं।

फिर रुककर कहती हैं- ‘अफसोस, लोग उसे अपनी सहूलियत के हिसाब से फॉलो करते हैं। मैं भले ही हिजाब पहनती हूं, लेकिन गलत को गलत बोलने की भी हिम्मत रखती हूं। ईरान में जो हो रहा है, उस पर चुप नहीं रहा जा सकता। मैं किसी औरत को पिटता नहीं देख सकती। किसी मौलाना को कोई हक नहीं कि लड़कियों को जीने की नसीहत दे। भारत हो या ईरान ये नहीं चल सकता।’

कहते-कहते मुसर्रत फिर खामोश हो जाती हैं, मुझे उनकी आवाज में गुस्सा सुनाई देता है।
कुछ देर तक हम दोनों चुप रहते हैं। फिर मुसर्रत संभलते हुए कहती हैं- ‘चलिए ये भी मान लें कि ईरान में जो हो रहा है वो साजिश है। लेकिन औरतों को पीटना, उनका कत्ल कैसे जस्टिफाई किया जा सकता है। 100 से ज्यादा लड़कियां मारी जा चुकी हैं, उन्हें फांसी दी जा रही है, ये ज्यादती नहीं तो और क्या है?’

‘महसा अमीनी की मौत को दिल का दौरा बता दिया। ये मान भी लें, तो ये कैसे भुला दें कि ईरानी पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। उन्हें बताया था कि वो बीमार है, वे नहीं माने। महसा मर गई और उसके मां-बाप को उसे आखिरी बार देखने भी नहीं दिया। सबका हिसाब ऊपरवाला करता है। हम औरतों को यहां किसी को हिसाब देने की जरूरत नहीं।’

मुसर्रत एक बार फिर चुप हो जाती हैं। शायद वे रो देना चाहती हैं। मैं कोई सवाल नहीं करती, चुपचाप ही रहती हूं। बातचीत खत्म हो जाती है।

‘ईरान में तो लड़कियां आजाद हैं’
इस मामले पर मेरी अगली बातचीत भोपाल में रह रहीं इस्लामिक स्कॉलर शाजिया से हुई। शाजिया भी हिजाब पहनती हैं। वे कहती हैं- ‘मैं हिजाब पर जब इतना झगड़ा देखती हूं, तो समझ आता है कि ये आधी-अधूरी जानकारी की वजह से है। इंडिया में भी अब ये कपड़ा सियासत की वजह बन गया है। लोगों को पता ही नहीं है कि बुर्का, हिजाब, नकाब तीनों अलग-अलग चीज हैं।’
शाजिया आगे कहती हैं- ‘औरतों का सम्मान तो हर धर्म में है। परदा भी हर धर्म में है। क्या आपने सीता माता को किसी नाटक या फिल्म में बिना दुपट्टा देखा है? गुरुद्वारे में जाने के लिए औरत-मर्द दोनों को सिर ढंकना होता है। ऐसे में हिजाब को सिर्फ मुस्लिम समुदाय से जोड़ना गलत है।’

‘लोगों की जानकारी के लिए बता दूं कि इस्लाम में हिजाब-बुर्के का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है, न ही उसका रंग तय किया गया है। बस बालों को छुपाना हिजाब होता है। शरीर गैर मर्दों की नजर से बचने के लिए छुपाना होता है।’

ईरान में महिलाओं के साथ हिंसा के सवाल पर शाजिया कहती हैं- ‘जितना मैं ईरान को समझती हूं, उस लिहाज से ईरान में औरतें आजाद हैं।’

वे मुझसे ही कहने लगती हैं- ‘ईरान में हर फील्ड में लड़कियां आगे बढ़ रही हैं, उनकी आइडियल लेडी फातिमा और हजरत अली हैं। यह आपको तय करना है आप कहां रहकर, किसे फॉलो कर रहें हैं।’ मसर्रत से उलट शाजिया ईरान में जो हो रहा है, उसे सही मानती हैं और वहां से आ रही खबरों को पश्चिमी देशों का प्रोपेगैंडा बताती हैं।

‘मैं तो ईरान की सड़कों पर बेखौफ टहलती हूं’
मेरी अगली मुलाकात 25 साल की जहरा अलविया से हुई। जहरा तेहरान की अल मुस्तफा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं। वो कहती हैं- ‘मैं ईरान की सड़कों पर बेखौफ घूमती हूं। कई बार मेरा सामना ईरान की मॉरैलिटी पुलिस यानी ‘गश्त-ए-इरशाद’ से भी होता है। उनके पास कोई हथियार नहीं होता है, ईरानी कानून के हिसाब से उन्हें हथियार रखने की इजाजत नहीं है, वे हमें जुबानी तौर पर ही टोक सकते हैं। कोई कैसे कह सकता है कि ईरानी पुलिस औरतों पर ज़ुल्म कर रही है।’

जहरा की ये बात सुनकर मैं सोशल मीडिया पर मॉरैलिटी पुलिस के वायरल वीडियोज के बारे में सवाल करती हूं। वे कहती हैं- ‘आप सिर्फ तस्वीर देखकर फैसला नहीं कर सकते। हो सकता है ये आधी जानकारी हो। हो सकता है उन्होंने ही पुलिस को मजबूर किया हो। इस्लाम में सिर्फ पिता, सगे भाई और शौहर के अलावा हर शख्स को पर्देदारी का हुक्म है।’

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