– कोटा की बरखा ने नृत्य की बहार से तैयार की हजारों नृत्यांगनाएं
– हवेली संगीत के माध्यम से कृष्ण भक्ति की अद्वितीय कला का कर रही प्रचार
– नए कलाकार आगे आएंगे तभी बच पाएगी देवी देवताओं के समय की ये कला
कोटा 28 अप्रैल :
भारतीय संस्कृति, लोक कला के साथ ही भारत की प्राचीनतम नृत्य कलाओं में से एक हैं कथक, और इस कला के कलाकारों की अथाह मेहनत से आज ये जीवंत हैं, लेकिन फिर भी नए कलाकारों को आगे आकर हजरों साल पुरानी इस नृत्य कला को संजाए रखने की आवश्यकता है। राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के साथ कई अवार्ड और प्रतियोगिताओं में शीर्ष मुकाम हांसिल करने वाली कोटा की बरखा जोशी इस कला को बचाए रखने और इसे शीर्ष पर पहुंचाने के लिए दिन रात एक कर देती हैं और आए दिन किसी ना किसी रूप में बच्चों को शिक्षा के साथ नृत्य कला में भी पारंगत कर रही हैं. आज विश्व नृत्य दिवस हैं, ऐसे में कोटा की बरखा का लोगों के लिए कहना है कि यह ईश्वरीय वरदान है और हमें हमारी संस्कृति को बचाने की बेहद आवश्यकता है। 29 अप्रेल यानी अंतर्राष्टÑीय नृत्य दिवस को हमारे मनाए जाने के पीछे यदि उद्देश्य रहता है कि लोग इस प्राचीन कला से जुडेÞ और इसे आगे बढाने में अपनी भूमिका निभाएं।
– हजारों बच्चों को सिखाया नृत्य
बरखा जोशी वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय संगीत रामपुरा में कथक नृत्य गुरु के पद पर कार्य कर रही हैं। सन 1999 में राष्ट्रपति केआर नारायणन एवं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई द्वारा सम्मानित हो चुकी हैं, इसके साथ ही संगीत नाट्य अकैडमी द्वारा सम्मानित हो चुकी हैं। नेशनल एनसीसी कैडेट के रूप में राजस्थान का नेतृत्व कर नृत्य एवं गायन में प्रथम स्थान प्राप्त कर डबल गोल्ड मेडल प्राप्त किया। 2019 में राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया। जिला कलेक्टर द्वारा राजकीय कार्यों में सराहनीय कार्य करने को लेकर कई बार सम्मानित किया गया। साथ ही कालिदास समारोह उज्जैन, बूंदी उत्सव, खजुराहो महोत्सव, जयपुर कत्थक केंद्र, रविंद्र मंच, संगीत नाटक अकैडमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। राजकीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए राज्य स्तर पर सम्मानित बरखा जोशी वर्तमान में वल्लभम संस्थान की संयोजिका के रूप में कला एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्य कर रही हैं। प्रतिवर्ष हम कथक नृत्य समारोह के माध्यम से हवेली संगीत कथा लोगों तक पहुंचाने का कार्य प्रगति पर है। इनके द्वारा सिखाए गए कई छात्र-छात्राएं कथक नृत्य की शिक्षा से देश के कई हिस्सों में अपनी पहचान बना रहे हैं।
– वैदिक काल से नृत्य देवी तुल्य
बरखा जोशी ने बताया कि ये शास्त्रीय संगीत की ये कला ईश्वर से जोड़ने का माध्यम हैं, इसमे घुंघरू से लेकर हर वाद यंत्रों का पूजन होता है. वैदिक काल से ही इसे देवी तुल्य समझा जाता है, वर्तमान में 29 अप्रेल विश्व नृत्य दिवस के रूप में मनाया जा रहा है ताकी लोगों में इसके प्रति लगाव बढे और नए लोग आगे आ सकें। आज भी नृत्य दिवस पर कई कार्यकम आयोजित किए जाएंगे जिसमें बच्चों को इसका महत्व समझाया जाएगा वहीं कई मुद्राओं की जानकारी दी जाएगी।
2023-04-28