-नर्तक होते हैं एक्रोबेट में माहिर
– इस लोकनृत्य की ट्रेनिंग है हार्ड
– ओडिशी क्लासिकल डांस का यह है बेस
उदयपुर, 18 दिसम्बर(ब्यूरो): पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर की ओर से 21 दिसंबर से वृहद स्तर पर आयोजित हो रहे ‘शिल्पग्राम उत्सव’ में देशभर से आ रहे विभिन्न लोकनृत्यों में ओडिशा का गोटीपुआ डांस अपनी धमक और भक्ति को लेकर अहम स्थान रखता है। इसके नर्तक खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें भगवान की सेवा के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। पुरी में विराजे भगवान जगन्नाथ की सेवा का अवसर तमाम भक्त पाना चाहते हैं, लेकिन मिलता विरलों को ही है। ऐसे ही विरलों में शुमार हैं गोेटीपुआ के नर्तक। दरअसल, गोटीपुआ लोक नृत्य पूर्ण रूप से भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। भगवान का मनोरंजन कर उन्हें रिझाने के लिए यह नृत्य किया जाता है।
डांस ग्रुप के लीडर कृष्ण बताते हैं कि यही डांस ओडिशी क्लासिकल डांस का बेस भी है। वे बताते हैं, कभी देवदासियां, उनके बाद अन्य स्त्रियां भगवान जगन्नाथ की सेवा में रहती थीं। 1509 ईस्वी से भगवान की सेवा में लड़के लगाए गए। तब यह भी निर्णय लिया गया कि लड़कों को भगवान के वे सभी कार्य करने होंगे, जो पूर्व में स्त्रियां करती थीं, इसमें नृत्य भी शामिल था। वहीं मंदिर की सफाई इत्यादि के कार्य होते थे। ऐसे में लड़कों को स्त्री के रूप में ही मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी गई। तभी से युवक नारी भेष में भगवान जगन्नाथ की सेवा में रहते हैं। इनका श्रृंगार और अदाकारी ऐसी होती है कि ये वाकई स्त्री ही लगते हैं।
ऐसे पड़ा इस डांस फॉर्म का नाम
कालान्तर में गोटीपुआ डांस में एक्रोबेट भी शामिल हुआ, फिर भी इन लोक नर्तकों ने निरंतर अभ्यास और कुशल प्रशिक्षण के कारण अपनी अदाकारी में लावण्यता बरकरार रखी। यद्यपि आज नृत्य के दौरान इनके कई करतब देख दर्शकों की सांस थम जाती है।
गोटीपुआ नर्तक ग्रुप का नेतृत्व कर रहे कृष्ण कुमार बताते हैं कि ‘गोटी’ का मतलब होता है ‘एक’ तथा ‘पुआ’ का अर्थ है लड़का, यानी ‘गोटीपुआ’ का मतलब हुआ एक लड़का। इस डांस को करने वाले हर नर्तक को ’गोटीपुआ’ कहा जाता है। इसी कारण से इस लोक नृत्य का नाम गोटीपुआ पड़ा। कृष्ण बताते हैं कि दरअसल, गोटीपुआ भगवान जगन्नाथ, शिव सहित सभी भगवानों की सेवा कर सकते हैं। इनके लिए किसी भी मंदिर में प्रवेश निषिद्ध नहीं होता।
2023-12-18