गोरखपुर से प्रकाशक गीता प्रेस गांधी शांति पुरस्कार को तो स्वीकार करेगी, लेकिन एक करोड़ की सम्मान राशि नहीं लेगी। गीता प्रेस के बोर्ड ने इसका ऐलान सोमवार को किया। केंद्र सरकार ने 18 जून को गीता प्रेस को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की थी।
गीता प्रेस के प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने कहा, ‘गीता प्रेस ने 100 सालों में कभी कोई आर्थिक मदद या चंदा नहीं लिया। इनके अलावा सम्मान के साथ भी मिलने वाली किसी तरह की धनराशि को स्वीकार नहीं किया।’
उन्होंने इस सम्मान के लिए पीएम मोदी और सीएम योगी का आभार व्यक्त किया। कहा, ‘यह सम्मान हमारे लिए हर्ष की बात है। लेकिन, बोर्ड ने यह फैसला लिया है कि सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि को स्वीकार नहीं किया जाएगा।’
कांग्रेस ने कहा- यह फैसला उपहास भरा है
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट में पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा लिए गए फैसले को उपहास भरा बताया। उन्होंने कहा कि यह फैसला सावरकर और नाथूराम गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।
दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है गीता प्रेस
गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी। यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। इसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इनमें 16.21 करोड़ श्रीमद भगवद गीता हैं। गीता प्रेस सनातन-धर्म की अब तक 92 करोड़ किताबें छाप चुका है, जाे एक रिकॉर्ड है। अकेले इस साल 2 करोड़ 42 लाख किताबें छापी हैं। रामचरितमानस पर राजनीतिक विवाद के बाद से इसकी 50 हजार किताबें ज्यादा बिकी हैं। प्रेस की आय में भी इजाफा हुआ है।
गीता से प्रेरित होकर सेठ गोयंदका ने 1923 में खोला था प्रेस
श्रीमद्भगवद्गीता और रामचरितमानस को घर-घर में पहुंचाने का श्रेय भी गीता प्रेस को जाता है। गीता प्रेस के शुरू होने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। बात 1920 के दशक की है। कलकत्ता के एक मारवाड़ी सेठ जयदयाल गोयंदका रोज गीता पढ़ते थे। 18वें अध्याय में गीता सार के रूप में लिखी एक बात उनके दिल को छू गई। ये बात यह थी, ‘जो इस परम रहस्य युक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको प्राप्त होगा।’
इसी के बाद लोगों के कहने पर गोयंदका ने अपनी व्याख्या को एक प्रेस से छपवाया, लेकिन उसमें भयंकर गलतियां देखकर वे दुखी हो गए। उसी दिन उन्हें प्रेस का ख्याल आया। फिर गोरखपुर के अपने एक श्रद्धालु घनश्यामदास जालान के सुझाव पर इसी शहर में दस रुपए के किराए के मकान में 1923 में गीता प्रेस शुरू किया।
शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा
गीता प्रेस…इस वक्त शताब्दी वर्ष (100वीं वर्षगांठ) मना रहा है। समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। उनके कार्यक्रम की स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन तारीख अभी फाइनल नहीं हुई है।
कर्मचारी जूता-चप्पल उतारकर छपाई का काम करते हैं
पूरा गीता प्रेस एक मंदिर नुमा दफ्तर है, जहां रूटीन का कामकाज भी पूजा-पाठ से कम नहीं है। यहां की दीवारों पर चौपाइयों के साथ गुटका, पान-मसाला और धूम्रपान का इस्तेमाल नहीं करने की सख्त हिदायत दी गई है।
छपाई में लगे कर्मचारी किताब की फाइनल बाइंडिंग के वक्त जूता-चप्पल उतारकर काम करते हैं। ताकि पाठकों की श्रद्धा और विश्वास से धोखा न हो। अंदर कैंपस में प्रेस मशीनों के साथ भव्य आर्ट गैलरी भी है। जिसका अनावरण देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था।
गीता प्रेस में फिलहाल 15 भाषाओं में 1848 प्रकार की किताबें प्रकाशित हो रही हैं। देशभर में प्रेस की 20 ब्रांच हैं। रोजाना गीता प्रेस में 70 हजार किताबें प्रकाशित हो रही हैं, जबकि डिमांड करीब 1 लाख किताब की है।