केरल हाईकोर्ट : मजिस्ट्रेट डिफ़ॉल्ट जमानत देते समय कैश सिक्योरिटी जमा करने की शर्त नहीं लगा सकते

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केरल हाईकोर्ट ने कानून की इस स्थिति को दोहराया कि डिफ़ॉल्ट जमानत / वैधानिक जमानत देते समय मजिस्ट्रेट कैश सिक्योरिटी जमा करने की कोई अन्य शर्त नहीं लगा सकते। जस्टिस राजा विजयराघवन वी की एकल पीठ ने सरवनन बनाम राज्य, सब इंस्पेक्टर पुलिस द्वारा प्रतिनिधित्व मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत / वैधानिक जमानत देते समय नकद राशि जमा करने की शर्त नहीं लगाई जा सकती।
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने उक्त निर्णय में स्पष्ट किया था कि सीआरपीसी की धारा 167(2), के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत/वैधानिक जमानत प्राप्त करने की एकमात्र आवश्यकता यह है कि आरोपी 60 या 90 दिनों से अधिक समय से जेल में हो, जैसा भी मामला हो, और 60 या 90 दिनों के भीतर, जैसा भी मामला हो, जांच पूरी नहीं हुई हो और 60वें या 90वें दिन तक कोई चार्जशीट दायर नहीं की गई हो और आरोपी ने डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन किया हो।
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं पर आईपीसी की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात के लिए सजा) और 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना) सहपठित धारा 34 (सामान्य आशय) के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाया गया था। चूंकि फाइनल रिपोर्ट वैधानिक अवधि के भीतर नहीं दी गई थी, इसलिए याचिकाकर्ताओं द्वारा डिफ़ॉल्ट बेल के लिए आवेदन किया गया था, जिसे अनुमति दी गई। हालांकि, याचिकाकर्ताओं की शिकायत यह है कि मजिस्ट्रेट ने आरोपी को डिफ़ॉल्ट बेल की एक शर्त के तहत 50,000/ रुपये की राशि कैश सिक्योरिटी के रूप में जमा करवाने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट आनंद कल्याणकृष्णन और सी धीरज राजन ने तर्क दिया कि सुमित मेहता बनाम राज्य (2013) और लेखा बनाम राज्य (2019) नामक दो निर्णयों को मजिस्ट्रेट ने न्यायोचित ठहराया था। कैश सिक्योरिटी जमा करने की शर्त, केवल अग्रिम जमानत देते समय शर्तें लगाने से संबंधित है। इस प्रकार यह तर्क दिया गया था कि चूंकि याचिकाकर्ताओं को वर्तमान मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत दी गई, इसलिए उक्त शर्त को लागू करना मजिस्ट्रेट के लिए उचित नहीं था।
इस प्रकार न्यायालय ने सरवनन (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर कहा कि, “शामिल राशि जमा करने की कोई अन्य शर्त वैधानिक जमानत देते समय नहीं लगाई जा सकती क्योंकि यह सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के उद्देश्य को विफल कर देगी। विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा जिन निर्णयों पर भरोसा किया गया वे तथ्यों और परिस्थितियों पर लागू नहीं होते।” इस प्रकार याचिका की अनुमति दी गई और कैश सिक्योरिटी जमा करने की शर्त को रद्द कर दिया। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अन्य सभी शर्तें लागू रहेंगी। प्रतिवादी की ओर से लोक अभियोजक टीआर रंजीत पेश हुए। केस टाइटल: राजेश @ मलक्का राजेश और अन्य बनाम केरल राज्य

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