शादी के सात साल के भीतर वैवाहिक घर में पत्नी की अप्राकृतिक मौत अपने आप में पति को दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी के सात साल के भीतर ससुराल में अप्राकृतिक परिस्थितियों में पत्नी की मौत पति को दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा, “शादी के सात साल के भीतर ससुराल में मृतक की अस्वाभाविक मौत होना ही आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304बी और 498ए के तहत दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।” जस्टिस एएस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने आईपीसी की धारा 304बी, 498ए और धारा 201 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया। हालांकि, इस सजा को ट्रायल कोर्ट और उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया था।
ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 304बी के तहत 10 साल, धारा 498ए के तहत 2 साल और धारा 201 के तहत 2 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि हाईकोर्ट ने धारा 304 के तहत सजा घटाकर सात साल कर दी थी। तथ्यात्मक पृष्ठभूमि 1993 से, जब अपीलकर्ता और मृतका का विवाह हुआ, वह अपने ससुराल में रह रही थी। 1995 में मृतका के पिता ने स्थानीय थाने में दहेज हत्या का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। उसने अपनी बेटी के ससुराल वालों द्वारा की जाने वाली दहेज की मांग के बारे में विस्तृत जानकारी दी। पिता ने आगे दावा किया कि उसकी बेटी को उसके पति (अपीलकर्ता), देवर और सास द्वारा पीटा गया और गला दबाकर मार डाला गया, साथ ही उन्होंने पिता को बताए बिना उसके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया। जांच के बाद तीनों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें आईपीसी की धारा 304बी, 498ए और 201 के तहत दोषी ठहराया। अपील में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देवर और सास की दोषसिद्धि और सजा को सभी आरोपों से बरी करते हुए रद्द कर दिया। वहीं आईपीसी की धारा 304बी के तहत अपीलकर्ता की सजा की अवधि दस से घटाकर सात साल कर दी गई।


सुप्रीम कोर्ट द्वारा विश्लेषण न्यायालय ने कहा कि आईपीसी की धारा 304बी और 498ए के तहत अपीलकर्ता की सजा शादी के सात साल के भीतर दहेज हत्या के बारे में अनुमान लगाती है। आईपीसी की धारा 304बी, 498ए के अवलोकन पर; भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी; और दहेज मृत्यु से संबंधित निर्णय को देखते हुए अदालत ने यह जांचना उचित समझा कि क्या वर्तमान मामले में अपीलकर्ता के खिलाफ अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रकार अपने मामले को साबित करने के लिए उस पर आरोप लगाया जा सकता है।
गौरतलब है कि दाह संस्कार के समय मृतका के माता-पिता मौजूद नहीं होने के बावजूद उसकी नानी और दो मामा मौजूद थे, लेकिन उन्होंने न तो कोई मुद्दा उठाया और न ही पुलिस को सूचित किया। दहेज मृत्यु के मामलों में क्रूरता और उत्पीड़न मृत्यु से ठीक पहले होना चाहिए। हालांकि, वर्तमान मामले में मृतका के पिता की गवाही ने उसकी मृत्यु से ठीक पहले दहेज की मांग के संबंध में कुछ भी प्रकट नहीं किया। मृतका के पिता द्वारा दहेज की मांग के जो भी मामले सामने रखे गए, वे काफी पुराने हैं।
अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों के अवलोकन के बाद अदालत ने कहा कि दहेज के कारण अपीलकर्ता या उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा मृतक की क्रूरता या उत्पीड़न के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया। मोटरसाइकिल और जमीन की केवल मांगें थींस जो मृत्यु से बहुत पहले की गईं। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला, “पीड़ित के नेतृत्व में पूर्वोक्त साक्ष्य भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 304 बी या आईपीसी की धारा 113 बी के तहत अनुमान लगाने के लिए पूर्व-आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं। यहां तक कि आईपीसी की धारा 498ए के तत्व भी उसी कारण से नहीं बनाए गए हैं, क्योंकि मृतक की मृत्यु से ठीक पहले उसके साथ क्रूरता और उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं है।”

केस टाइटल- चरण सिंह @ चरणजीत सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य| | सिविल अपील नंबर 447/2012 | 20 अप्रैल, 2023| जस्टिस एएस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल

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