उपभोक्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादी को वैधानिक समय-सीमा समाप्त होने के बाद उपभोक्ता शिकायत में लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी, क्योंकि शिकायत की कॉपी उसे नहीं दी गई थी।
यह ऐसा मामला था, जिसमें अपीलकर्ता को उपभोक्ता शिकायत के जवाब में लिखित बयान दाखिल करने के अधिकार से वंचित किया गया। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने अपीलकर्ता के लिखित बयान दाखिल करने के अधिकार को इस आधार पर समाप्त कर दिया कि वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर लिखित बयान दाखिल करने में विफल रहा।
अपीलकर्ता ने NCDRC के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तत्काल अपील की।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि NCDRC द्वारा लिखित बयान दाखिल करने के अधिकार को गलत तरीके से समाप्त किया गया। इसमें यह भी कहा गया कि चूंकि शिकायतकर्ता के वकील ने अपीलकर्ता के वकील को शिकायत की कोई प्रति नहीं दी, इसलिए लिखित बयान दर्ज करना संभव नहीं होगा।
अपीलकर्ता की दलील को स्वीकार करते हुए जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने NCDRC का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि प्रतिवादी के वकील द्वारा नोटिस की स्वीकृति और लिखित बयान दाखिल करने के लिए दिए गए समय को दर्ज करने के साथ ही आदेश में यह भी दर्ज किया जाना चाहिए कि शिकायतकर्ता के वकील ने शिकायत की कॉपी प्रतिवादी के वकील को दी।
चूंकि NCDRC के आदेश में अपीलकर्ता को शिकायत की कॉपी की आपूर्ति के संबंध में कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया गया, इसलिए अदालत ने अपीलकर्ता को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी।
न्यायालय ने कहा,
“अपीलकर्ता के वकील द्वारा उठाया गया तर्क यह है कि शिकायत की प्रति उन्हें नहीं दी गई। आयोग ने अपीलकर्ता पर यह आरोप लगाया कि उसने शिकायत की प्रति प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया। हालांकि, तथ्य यह है कि आयोग ने अपने दिनांक 06.02.2024 के आदेश में केवल यह दर्ज किया कि अपीलकर्ता के वकील द्वारा न्यायालय में नोटिस स्वीकार कर लिया गया। उन्हें वकालतनामा और लिखित बयान दाखिल करने के लिए समय दिया गया। आदेश में यह दर्ज नहीं है कि शिकायतकर्ताओं के वकील द्वारा प्रतिवादी नंबर 1/अपीलकर्ता के वकील को शिकायत की कॉपी दी गई। आयोग द्वारा अपने आदेश में इस तरह की कोई भी टिप्पणी इस मुद्दे को सुलझा सकती थी। यह ऐसा मामला नहीं है, जहां नोटिस के साथ शिकायत की कॉपी भी दी गई हो। इसलिए केवल अनुमान और अनुमान के आधार पर किसी के लिखित बयान दाखिल करने के अधिकार को रोकना बहुत कठोर हो सकता है।”
न्यायालय ने अपीलकर्ता/प्रतिवादी को प्रत्येक शिकायत के लिए 1,00,000/- रुपये की लागत के भुगतान की शर्त पर राहत प्रदान की।
अदालत ने आदेश दिया,
“अपीलकर्ता को प्रतिवादी नंबर 1 से 31/शिकायतकर्ताओं को ₹1,00,000/- प्रत्येक का जुर्माने का भुगतान करने की शर्त पर लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति है। जुर्माने का भुगतान रिकॉर्ड पर लिखित बयान को स्वीकार करने के लिए एक पूर्व शर्त होगी। उपरोक्त जुर्माना, प्रतिवादियों के संबंधित बैंक अकाउंट में स्थानांतरित किया जाएगा। यदि अपीलकर्ता के पास इसका विवरण उपलब्ध नहीं है तो इसे उनके प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के समन्वय में लिया जा सकता है।”
केस टाइटल: रिकार्डो कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम रवि कुकियन और अन्य, सिविल अपील संख्या 9958/2024