कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता अलका लांबा ने पीएम नरेंद्र मोदी पर साधा निशाना, नौ साल नौ सवाल कैम्पेन के पोस्टर का विमोचन किया
जोधपुर। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय प्रवक्ता अलका लांबा ने भाजपा सरकार के नौ साल पूरे होने के उपलक्ष में नौ साल नौ सवाल कैम्पेन के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि देश में महंगाई और बेरोजगारी लगातार रिकॉर्ड तोड़ रही है। बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था के चलते गरीब और गरीब होता जा रहा है और मोदी के समर्थक उद्योगपति अमीर होते जा रहे हैं। उन्होंने मोदी पर आरोप लगाया कि ऐसी क्या परिस्थितियां आ गई कि उनको सार्वजनिक संपत्तियां अपने मित्रों को ही बेचनी पड़ रही हैं। वे यहां एक निजी होटल में मीडिया से रूबरू थी। इस दौरान उन्होंने नौ साल नौ सवाल कैम्पेन के पोस्टर का विमोचन भी किया।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 के बाद से सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है, जबकि इस अवधि में कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से 70 डॉलर प्रति बैरल गिर गई है। युवा बेरोजगारी 30-40 प्रतिशत तक बढ़ गई है, वहीं गरीबों के लिए वेतन वृद्धि निगेटिव रही है। यह एक विनाशकारी रिकॉर्ड है। नोटबंदी और जीएसटी ने काले धन को तो खत्म नहीं किया उल्टा छोटे व्यवसाय को नष्ट कर दिया। हाल ही में घोषित नोटबंदी 2.0 ने इस सरकार के बेरहम दृष्टिकोण की याद को ताजा कर दिया है। उन्होंने कहा कि काले कृषि कानूनों को रद्द करते समय किसान संगठनों के साथ हुए समझौतों को अभी तक लागू नहीं किया गया है। ना ही एमएसपी की गारंटी दी गई। उन्होंने आरोप लगाया है कि अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए एलआईसी और एसबीआई में जमा जनता के खून पसीने की कमाई को दांव पर लगा दिया गया। भाजपा शासित राज्यों में हुए भ्रष्टाचार पर भी प्रधानमंत्री चुप हैं।
नौ साल बाद भी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति नहीं
उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों है कि चीन को लाल आंख दिखाने की बात करने वाले प्रधानमंत्री ने उसे 2020 में क्लीन चिट दे दी, जबकि वह आज भी हमारी जमीन पर कब्जा करके बैठा है। चीन के साथ 18 बैठकें हुई हैं, फिर भी वह आक्रामक रवैया अपनाते हुए हमारी पवित्र भूमि से वापस नहीं जा है। यहां तक कि जब चीन अधिक आक्रामक हो रहा है और हमारी संप्रभुता को लेकर अनुचित मांग रखता है, तब भी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकार के सत्ता में आने के नौ साल बाद भी कोई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति नहीं है। रक्षा खर्च कई दशकों के निचले स्तर पर है। ये कारण अलोकप्रिय अग्निपथ योजना जैसे विनाशकारी कदमों की ओर ले जाते हैं, जो प्रशिक्षण मानकों को कम करके और यूनिट की एकता को ख़तरे में डालते हैं। साथ ही इससे हमारे सशस्त्र बलों को कमजोर होने का जोखिम रहता है।
चुनावी फायदे के लिए बंटवारे की राजनीति उन्होंने मोदी पर आरोप लगाया कि वे चुनावी फायदे के लिए जानबूझकर बंटवारे की राजनीति को हवा दे रहे हैं और समाज में डर का माहौल बना रहे हैं। वे चुनावी लाभ के लिए विभाजन को प्रोत्साहित करते हैं और हिंसा की उन घटनाओं पर अक्सर चुप रहते हैं, जो उग्र हो जाती है। दिल्ली, मणिपुर और अन्य स्थानों पर हिंसा के मामलों में उन्होंने ऐसा ही किया। महिलाओं, दलितों, एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर भी चुप है। जाति जनगणना की मांग को नजरअंदाज कर रहे हैं। पिछले 9 सालों में संवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया गया है। विपक्षी दलों और नेताओं के खिलाफ़ बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है। जनता द्वारा चुनी हुई विपक्षी दलों की कई सरकारें गिराई गई। जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। 2014 के बाद से सीबीआई और ईडी के 95 प्रतिशत मामले उन राजनेताओं के खिलाफ़ हैं, जो विपक्षी दलों के हैं। जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, संसद की बैठक के दिन लगातार कम हो रहे हैं। बजट में कटौती करके मनरेगा जैसी जन कल्याण की योजनाओं को कमजोर किया गया है। कोविड-19 महामारी के दौरान देश के गरीबों को राहत देने में मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद कभी भी यूपीए के समय की महत्वपूर्ण योजनाओं पर भरोसा नहीं जताया। कोरोना के कारण 40 लाख लोगों की मौत के बाद उनके परिवारों को मुआवजा देने से मना कर दिया गया। एकतरफ जहां मोदी सभी को साथ लेकर चलने की बात कहते हैं लेकिन संसद भवन के उद्घाटन में उन्होंने राष्ट्रपति को कार्यक्रम में सहभागी बनने का निमंत्रण देना भी उचित नहीं समझा। ऐसा ही वाकया उन्होंने संसद भवन के शिलान्यास समारोह में भी तात्कालिक राष्ट्रपति के साथ किया था। उन्होंने एक तरफ जहां प्रधानंमत्री मोदी दलितों को पक्ष में करने के लिए सर्वोच्च पद पर उन्हें बिठाते हैं लेकिन जहां उनकी जरूरत होती है, वहां उनको दरकिनार कर देते हैं।