केंद्रीय सिविल सर्विस नियम | अनुशासनात्मक कार्यवाही में सेवानिवृत्त कर्मचारी को जांच प्राधिकारी के रूप में नियुक्त किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि केंद्रीय सिविल सर्विस नियमों के तहत अनुशासनात्मक प्राधिकारी को सेवानिवृत्त कर्मचारी को जांच प्राधिकारी के रूप में नियुक्त करने का अधिकार है। यह आवश्यक नहीं है कि जांच अधिकारी लोक सेवक ही हो। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ओडिशा एचसी के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रवि मलिक बनाम राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम पर भरोसा करते हुए कहा गया कि सेवानिवृत्त लोक सेवक को जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने इसे अलग करते हुए कहा कि यह वर्तमान मामले में लागू नहीं होगा। उस मामले में एनएफडीसी के सेवा विनियम, 1982 का नियम 23(बी) लागू है, जिसमें विशेष रूप से कहा गया कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी किसी कर्मचारी के कदाचार की जांच के लिए “लोक सेवक” नियुक्त कर सकता है। जबकि इस मामले में केंद्रीय सिविल सेवा, 1965 का नियम 14 लागू होगा, जहां अनुशासनात्मक प्राधिकारी किसी सरकारी कर्मचारी के कदाचार की जांच के लिए एक “प्राधिकरण” नियुक्त कर सकता है।

अदालत ने इस प्रकार कहा, “इसलिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी को सेवानिवृत्त कर्मचारी को जांच प्राधिकारी के रूप में नियुक्त करने का अधिकार है। यह आवश्यक नहीं है कि जांच अधिकारी लोक सेवक ही हो। इसलिए कोई दोष नहीं पाया जा सकता, क्योंकि जांच अधिकारी कोई लोक सेवक नहीं, बल्कि सेवानिवृत्त अधिकारी है। न्यायालय ने भारत संघ बनाम पीसी रामकृष्णन्या का भी उल्लेख किया, जिसने आलोक कुमार मामले में मिसाल कायम की। अदालत ने कहा कि आलोक कुमार मामले ने यह स्पष्ट कर दिया कि नियम 9(3) में “अन्य प्राधिकारी” शब्द का इस्तेमाल किया गया, न कि “लोक सेवक” का, जो जांच कर सकता है।

इसमें कहा गया, “सेवानिवृत्त अधिकारी को भी जांच करने के लिए अनुशासनात्मक प्राधिकार का प्रत्यायोजित अधिकार सौंपा जा सकता है।” इसलिए न्यायालय ने अपील की अनुमति दी और एचसी के फैसले को रद्द कर दिया, जिसने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, कटक पीठ द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा था।

मामले की पृष्ठभूमि
प्रतिवादी जगदीश चंद्र सेठी ने कटक में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष अनुशासनात्मक प्राधिकार के आदेश की आलोचना की। उन्होंने तर्क दिया कि प्राधिकरण ने विशिष्ट कारण दर्ज नहीं किए कि सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को जांच अधिकारी के रूप में क्यों नियुक्त किया गया। ट्रिब्यूनल सहमत हो गया और उसके पक्ष में आदेश पारित कर दिया। इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने फिर से ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखा।

इस प्रकार, अपीलकर्ताओं ने एचसी के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। केस टाइटल: भारत संघ बनाम जगदीश चंद्र सेठी

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