जातीय सम्मेलनों से सियासी ताकत दिखाने की कवायद – चुनावी वर्ष में बढ़ रहे हैं आयोजन

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जयपुर, 3 मई: प्रदेश में चुनावी वर्ष के साथ ही जातीय सम्मेलनों की बाढ़ सी आ गई है। चुनावी साल में विभिन्न समाजों की ओर से पुरानी मांगों औैर राजनैतिक नेतृत्व बढ़ाने के लिए ऐसे सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है। इन आयोजनों के पीछे असली मंशा समाज का संख्या बल दिखाकर राजनैतिक पार्टियों में वर्चस्व स्थापित करना है। राजधानी में पिछले दो माह के भीतर ही आधा दर्जन से अधिक जातीय सम्मेलनों का आयोजन किया जा चुका है और अब भी कई समाज आयोजनों की कतार में हैं।

मुख्यमंत्री पद पर निगाहें
राजधानी में अब तक आयोजित किए गए जातीय सम्मेलनों में सभी समाजों की ओर से मुख्यमंत्री का पद मांगा गया है। इसके अलावा दूसरी मांग आरक्षण या आरक्षण का कोटा बढ़ाने की होती है। वहीं तीसरी मुख्य मांग राजनैतिक दलों की आरे से किए जाने वाले टिकट वितरण के दौरान समाज को ज्यादा टिकट देने की होती है। हालांकि सभी जानते हैं कि यह मांग पूरी करना या इसके लिए स्पष्ट आश्वासन देना किसी भी राजनैतिक दल के लिए संभव नहीं है। इसके अलावा सभी समाज राजस्थान में अपनी जाति की संख्या के आंकड़े भी इन आयोजन के माध्यम से सरकार के सामने रख रहे हैं। राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार यह दबाव की राजनीति का दौर है। जिसमें विभिन्न समाज संख्या बल दिखाकर पार्टी में ज्यादा भागीदारी की मांग कर रहे हैं।

राजनीति चमकाने की कोशिश
इसके साथ ही इन जातीय सम्मेलनों के माध्यम से कई नवोदित नेता अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश भी कर रहे हैं। ऐसे सम्मेलनों में भीड़ दिखाकर राजनैतिक दलों के समक्ष ताकत का प्रदर्शन किया जाता है। इसमें ज्यादा उसी दल को तवज्जो दी जाती है जिस दल की ओर आयोजक का रुझान होता है। माना जा रहा है कि इन सम्मेलनों के माध्यम से ही चुनावों में टिकट की व्यवस्था भी की जा रही है।

ये समाज दिखा चुके ताकत
राजधानी में अब तक आधा दर्जन समाजों के सम्मेलनों का आयोजन हो चुका है। इसकी शुरुआत जाट महाकुंभ से हुई थी। इसके बाद ब्राह्मण महापंचायत, राजपूत समाज की केसरिया महापंचायत, अनुसूचित जाति व जनजाति सम्मेलन व यादव समाज का सम्मेलन हो चुका है। इससे पहले सैनी समाज ने भी यहां ताकत का प्रदर्शन किया था और हाल ही आरक्षण की मांग का लेकर भरतपुर में हाइवे जाम कर दिया था।

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