मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुई। पापा प्राइवेट नौकरी करते थे। कभी बिजनेस का कल्चर नहीं रहा। 2018 का साल बीत रहा था। करीब 2 साल होम डेकोर डिजाइनिंग की एक कंपनी में जॉब करते हुए हो चुका था।
हर रोज एक ही रूटीन, सुबह के 9 बजे ऑफिस पहुंचती और देर रात घर लौटती। घरवाले भी परेशान रहते कि अकेले गुरुग्राम से गाजियाबाद इतनी रात को कैसे आऊंगी।
ऑफिस में 14-14 घंटे काम करना पड़ता। जब चलने की बारी होती, तो बॉस की मीटिंग शुरू होती। मैं शॉक्ड रहती कि यदि कोई मीटिंग रात के 9 बजे शुरू हो रही है, तो वो खत्म कितने बजे होगी। सप्ताह के सातों दिन काम करना पड़ता। लाइफ में बस घर से ऑफिस और ऑफिस से घर चल रहा था।
तब मैंने सोचा कि जब दूसरी कंपनी के लिए इतना खून-पसीना बहा सकती हूं, तो फिर खुद की कंपनी के लिए क्यों नहीं। एक लाख रुपए से ‘चौखट’ नाम से होम डेकोर कंपनी शुरू की। आज मेरी कंपनी का सालाना टर्नओवर 35 लाख है। नेक्स्ट ईयर 50 लाख के टर्नओवर का प्रोजेक्शन है।’
दिल्ली से सटे गाजियाबाद का वैशाली इलाका। दोपहर के एक बज रहे हैं। 29 साल की प्राची भाटिया के टेबल पर गोल्ड, पीतल जैसा दिख रहे कुछ होम डेकोर प्रोडक्ट्स रखे हुए हैं।
प्राची जालीदार फूड बास्केट को डिब्बों में पैक कर रही हैं। आशीष नाम के एक स्टाफ हेल्प कर रहे हैं। प्राची मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘कुछ समय पहले तक तो मैं ही सब कुछ अकेले करती थी।
आप ही बताइए! अब मैं खुद ये सब नहीं करती तो कौन करता? शुरुआत में मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं थे कि दो-चार लोगों को हेल्प करने के लिए रख लेती। यहां तक कि ऑफिस में झाड़ू भी खुद से ही लगाती थी।
घरवाले भी कहते थे- लड़की होकर ये सब अकेले कैसे कर पाओगी।’
कुछ साल पहले ही प्राची ने अपना वेयर हाउस वैशाली में शिफ्ट किया है। इससे पहले वो अपने घर से ही बिजनेस कर रही थीं।
प्राची बताती हैं, ‘मिडिल क्लास फैमिली के बच्चों के लिए बिजनेस का सपना देखना, चांद को देखने के बराबर है। हम तीन बहनें हैं। मेरा बचपन से डिजाइनिंग, स्केचिंग में इंटरेस्ट रहा है।
12वीं करने के बाद डिजाइनिंग से ग्रेजुएशन किया। यह कोर्स दूसरे कोर्स के मुकाबले थोड़ा महंगा है। हमारे पास कॉलेज फीस देने के लिए भी पैसे नहीं थे। मैंने एजुकेशन लोन लेकर पूरी पढ़ाई कम्प्लीट की। फिर 2 साल जॉब किया। इसी दौरान होम डेकोर प्रोडक्ट्स बनाने के बारे में पता चला।
जिस कंपनी में मैं काम करती थी, वहां सिर्फ प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग होती थी। ये सारे प्रोडक्ट्स विदेशों में एक्सपोर्ट होते थे। इंडिया में नहीं बिकते थे।
तब मुझे लगा कि क्यों न इस तरह के प्रोडक्ट्स का इंडियन मार्केट डेवलप किया जाए। सारी चीजें इंडिया में हो रही हैं, लेकिन प्रोडक्ट विदेशों में सप्लाई हो रहा है।’
प्राची अभी जल्दी-जल्दी प्रोडक्ट्स की पैकेजिंग कर रही हैं। वो कहती हैं- 10 मिनट में लॉजिस्टिक कंपनी प्रोडक्ट रिसीव करने के लिए आ रही है। प्राची उन दिनों को दोहराती हैं, जब उन्हें बिजनेस की बिल्कुल भी समझ नहीं थी।
वो कहती हैं, ‘डिजाइनिंग में स्टडी करने की वजह से एकेडमिक नॉलेज तो थी। मैं प्रोडक्ट को डिजाइन कर सकती थी, लेकिन ये प्रोडक्ट कैसे फिजिकल प्रोडक्ट में कन्वर्ट होंगे, इसके बारे में तो बिल्कुल पता नहीं था।
मैं प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग करने वाले लोगों के यहां जाने लगी, घूमने लगी। सबसे बड़ी दिक्कत तो मेरी उम्र को लेकर थी। जिसके पास भी जाती और कहती कि मैंने अपनी एक कंपनी खोली है, मुझे होम डेकोर से रिलेटेड कुछ प्रोडक्ट्स डिजाइन के मुताबिक चाहिए।
लोग सोचते कि ये 23-24 साल की लड़की बिजनेस करने चली है। वे मुझ पर विश्वास ही नहीं करते। उन्हें लगता ही नहीं था कि मैं उनसे प्रोडक्ट खरीदना चाहती हूं। वे मजाक समझकर इसे टाल देते। धीरे-धीरे जब वेंडर्स को लगने लगा कि वाकई में मैं बिजनेस कर रही हूं, तो वे लोग कस्टमाइज प्रोडक्ट डेवलप करने लगे।’
मेरी बातचीत के बीच ही प्राची का फोन बजता है। ये फोन उनकी मम्मी का है। प्राची कहती हैं, ‘जानते हैं, मिडिल क्लास फैमिली की सबसे बड़ी दिक्कत होती है कि यदि एक महीने की सैलरी भी लेट हो जाए या न आए, तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। मेरे लिए जॉब छोड़ना आसान नहीं था।
मेरी बड़ी बहन ने कहा कि प्राची तुम बिजनेस शुरू करो, मैं फाइनेंशियल सपोर्ट करूंगी।
जब मैंने बिजनेस स्टार्ट किया तो सबसे बड़ी दिक्कत फंड को लेकर ही थी। कोई दो रुपए भी ऐसे इन्वेस्ट नहीं करना चाहता है।
मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि बल्क में वेंडर्स को ऑर्डर दे पाऊं या खुद से सभी होम डेकोर प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग कर पाऊं। मैंने अपने घर से ही प्रोडक्ट को ऑनलाइन सेल करना शुरू किया।’
प्जब उन्होंने ‘चौखट’ की शुरुआत की, तो दिक्कत ऑर्डर को लेकर भी थी। वो बताती हैं, ‘वेंडर्स का अपना MOQ (मिनिमम ऑर्डर क्वांटिटी) होता है, लेकिन जब मेरे पास ऑर्डर ही नहीं हैं, तो मैं बल्क में प्रोडक्ट कैसे बनवा सकती हूं। पैसे भी उतने नहीं थे। जहां MOQ 200 है, वहां मैं 10 ऑर्डर देती थी। कई वेंडर्स ऑर्डर लेने से ही इनकार कर देते थे।’
धीरे-धीरे कन्विंस करने के बाद वेंडर्स मेरी डिमांड के मुताबिक ऑर्डर बनाने लगे। ये जितने ऑर्डर्स देख रहे हैं, सारे कस्टमाइज हैं। सभी की डिजाइन मैंने की है।’
बातचीत के बीच लॉजिस्टिक पार्टनर प्राची के यहां पैकेट्स रिसीव करने के लिए आ जाते हैं। प्राची ऑर्डर के मुताबिक प्रोडक्ट दे रही हैं। वो कहती हैं, ‘आज हर महीने 200 यूनिट से ज्यादा के ऑर्डर मेरे पास रहते हैं।
एक वो भी वक्त था, जब सप्ताह में एक-दो ऑर्डर ही आ पाते थे। कंपनी स्टार्ट किए हुए, एक साल हुए थे। बमुश्किल महीने के 10-20 ऑर्डर ही सेल हो पाते थे। तब मैंने मार्केटिंग पर फोकस करना शुरू किया।
ये ऐसा प्रोडक्ट है, जो दिखेगा तभी बिकेगा। मुझे याद है, मैं 40 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से फेसबुक पर ऐड रन करती थी। धीरे-धीरे मार्केट ग्रोथ करने लगा। ऑर्डर आने लगे, तभी कोविड आ गया।’
कोविड में आपका बिजनेस कैसा रहा? मैंने सवाल किया …
प्राची जवाब देती हैं, ‘कोरोना मेरे लिए वरदान साबित हुआ। दरअसल, लोग अपने घरों में बंद थे। किसी के पास कोई काम नहीं था। मैंने ऐड पर दोगुना खर्च करना शुरू किया। वीडियो ऐड, रील बनाकर प्रमोट करने लगी।
मुझे पता था कि लोग जब प्रोडक्ट को देखेंगे, तो वो इसे खरीदेंगे। शुरुआत में सिर्फ 5 प्रोडक्ट ही सेल करती थी। आज फूड बास्केट, ट्रे, कटलरी होल्डर, सर्विंग बाउल, टी कप्स, कटलरी सेट, जार, कैंडल होल्डर, वॉल हुक, केक स्टैंड, ट्रिवेट, टिश्यू होल्डर जैसे 55 से ज्यादा प्रोडक्ट सेल करती हूं।
सबसे ज्यादा कटलरी होल्डर और फूड बास्केट की डिमांड है। ज्यादातर ऑर्डर साउथ से आते हैं। अभी जो आप ऑर्डर्स की पैकेजिंग देख रहे थे, इसमें से भी अधिकांश ऑर्डर साउथ के ही थे।’
प्राची कहती हैं, ‘लोग पीस फील करने के लिए सबसे ज्यादा नेचर के पास जाना पसंद करते हैं। मैंने अपने प्रोडक्ट में यही टच दिया, जो लोगों को पसंद आ रहा है।
इस साल मेरी कंपनी का सालाना टर्नओवर 35 लाख का था। अब अगले साल 50 लाख के टर्नओवर का प्रोजेक्शन है।