राजपूत सरदारों को साधकर 89 सीटों पर भाजपा ने साधा निशाना

Share:-

-2018 में राजपूतों की नाराजगी से सत्ता से बाहर हुई थी राजे सरकार
-मेवाड़-मारवाड़ साधने के लिए भवानी सिंह कालवी व विश्वराज सिंह मेवाड़ को किया अपने पाले में
– पूर्व राजघराने की एंट्री से मेवाड़ में मजबूती बनाए रखने की कवायद

जयपुर, 17 अक्टूबर : राजपूतों की नाराजगी के चलते 2018 में सत्ता से बाहर हुई भाजपा ने राजस्थान के राजपूत सरदारों को साधने के लिए आखिरकार अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। बीजेपी ने मंगलवार को प्रदेश में मजबूत पकड़ रखने वाले करणी सेना संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी के पुत्र भवानी सिंह एवं महाराणा प्रताप के वंशज पूर्व राजघराने के विश्वराज सिंह मेवाड़ को अपने पाले में कर प्रदेश के 9-10 परसेंट राजपूत वोटरों के माध्यम से करीब 89 सीटों पर निशाना साधा है। वहीं मेवाड़ में गुलाबंचद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद वहां पर अब अपनी मजबूत पकड़ बनाने में बीजेपी का मददगार बनेगा पूर्व राजघराना।
प्रदेश के राजपूत सरदार पूर्व की वसुंधरा राजे सरकार से कई कारणों से नाराज थे। इसी के चलते राजपूत समाज ने बीजेपी के खिलाफ वोटिंग कर उसे 2018 में सत्ता से बाहर कर दिया था। राजपूत समाज राजे से खासा नाराज था और बीजेपी शीर्ष नेतृत्व लगातार इस पर काम कर रहा था। इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत व प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर को सौंपी गई थी। दोनों के प्रयास आज उस समय रंग लाते नजर आए जब अंतराष्ट्रीय पोलो खिलाड़ी भवानी सिंह एवं मेवाड़ के पूर्व राजघराने के विश्वराज सिंह मेवाड़ ने बीजेपी का दामन थाम लिया। इन दोनों के माध्यम से बीजेपी अब प्रदेश में राजपूत सरदारों को अपने पाले में करने को लेकर युद्धस्तर पर काम करेगी। विश्वराज सिंह के बीजेपी में आने से मेवाड़ में कटारिया की खाली हुई जगह वह मजबूती से भरने में सफल होंगे। अब बीजेपी इन दो बड़े चेहरों की मदद से प्रदेशभर के नाराज राजपूत समाज को अपने साथ कर 2023 के चुनावी संग्राम में जीतने की ओर अपने कदम आगे बढ़ाएगी।

दादा के नक्शे कदमों पर चलेंगे भवानी सिंह
लोकेंद्र सिंह कालवी को राजनीति विरासत में मिली थी। उनके पिता कल्याण सिंह केंद्रीय मंत्री मंत्री रहे थे, लेकिन वह राजनीति के बजाय समाज सेवा को अधिक महत्व देते थे। बावजूद इसके 1993 में नागौर तो 1998 में बाड़मेर-जैसलमेर से वह बीजेपी के टिकट से चुनावी मैदान में कूदे, लेकिन सफलता नहीं मिली। हालांकि उस समय वह राजपूत समाज की राजनीति नहीं कर रहे थे ना ही करणी सेना का गठन हुआ था। उनके पुत्र भवानी सिंह अपने दादा के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश अब बीजेपी के साथ कर रहे हैं।

कालवी व राजे के बीच 36 का आंकड़ा
कालवी एवं पूर्व सीएम राजे के बीच 36 का आंकड़ा था। कालवी ने कई बार आरक्षण की मांग कर रैलियां और जयपुर में बड़ी सभा भी की। इसके बाद आनंदपाल की कथित मुठभेड़ को लेकर भी कालवी राजे से खासे नाराज थे। राजपूतों को एकजुट कर आनंदपाल के पैतृक गांव सांवरदा में विशाल जनसभा कर राजे को चुनाव में सबक सिखाने की चेतावनी भी दी थी।
इन तीन कारणों से नाराज थे राजपूत
1. 2014 में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का लोकसभा टिकट काटना।
2. 2018 में गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाने की पहल, लेकिन केंद्र व राज्य के बीच रस्साकसी के चलते पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाना।
3. जून 2017 में आनंदपाल सिंह के कथित एनकाउंटर को समाज ने फेक बताया, जमकर प्रदर्शन किया, राजे सहित बीजेपी का विरोध।

जन्मशताब्दी के जरिए एकजुटता का संदेश
बीजेपी भलीभांति जानती है कि राजस्थान में सत्ता तक पहुंचने के लिए राजपूत समाज की अनदेखी भारी पड़ सकती है। इसी के चलते प्रदेश को पूर्व सीएम एवं देश के पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत की जन्मशताब्दी पर पार्टी बड़ा प्रोग्राम कर प्रदेशभर में समाज को साधने की कोशिश कर रही है। हालांकि शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी का टिकट कटने पर अलग विवाद भी शुरू हो गया है। बीजेपी इस प्रोग्राम के माध्यम से पूरी पार्टी के एकजुट होने का संदेश देना चाहती है।

इन सीटों पर राजपूतों का प्रभाव
प्रदेश में 9 से 10 परसेंट राजपूत सरदारों का करीब 89 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। दो दर्जन सीट पर तो अधिकतर राजपूत ही चुनाव में फतह पाते हैं। वहीं प्रदेश के जयपुर, हाड़ौती, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर, जालौर, झुंझुनूं, सीकर, जालोर,जोधपुर, चूरू, अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौडग़ढ़, राजसमंद, पाली में राजपूत वोटर काफी कुछ सत्ता तक का सफर तय करने में अहम साबित होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *