सह-आरोपी के आत्मसमर्पण नहीं करने के आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक अभियुक्त को केवल इस आधार पर जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता है कि सह-आरोपी ने आत्मसमर्पण नहीं किया है। न्यायालय एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार कर रहा था, जो नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के आरोपों के तहत हिरासत में था। सुप्रीम कोर्ट यह नोट किया कि जमानत से इनकार करने के लिए हाईकोर्ट के पास एकमात्र कारण यह था कि सह-आरोपी, जो जमानत पर रिहा हुआ था, उसने आत्मसमर्पण नहीं किया है।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा, “हमारा विचार है कि तथ्य यह है कि सह-आरोपी जो जमानत पर रिहा किया गया था, उसने आत्मसमर्पण नहीं किया है, सह-आरोपी, अर्थात् अपीलकर्ता को जमानत अस्वीकार करने के लिए एक उचित कारक नहीं हो सकता है।” पीठ ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता दो साल और 11 महीने से हिरासत में है। पीठ ने हाईकोर्ट को जमानत अर्जी पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया, विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आरोप तय किए गए हैं और 19 अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच की जानी प्रस्तावित है।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा, “हमारा विचार है कि तथ्य यह है कि सह-आरोपी जो जमानत पर रिहा किया गया था, उसने आत्मसमर्पण नहीं किया है, सह-आरोपी, अर्थात् अपीलकर्ता को जमानत अस्वीकार करने के लिए एक उचित कारक नहीं हो सकता है।” पीठ ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता दो साल और 11 महीने से हिरासत में है। पीठ ने हाईकोर्ट को जमानत अर्जी पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया, विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आरोप तय किए गए हैं और 19 अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच की जानी प्रस्तावित है।
केस टाइटल : सेबिल एलानजिमपल्ली बनाम ओडिशा राज्य

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