बदरीनाथ में सन् 1815 से है ”सेंगोल” जैसी व्यवस्था

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– टिहरी राजघराने ने रावल को दिए थे राजदंड के रूप में प्रशासनिक और न्यायिक अधिकार

देहरादून, 27 मई : उत्तराखंड स्थित चारधामों में से एक बदरीनाथ में राजदंड (सेंगोल) की व्यवस्था 1815 से चली आ रही है। बदरीनाथ के रावल के आगे आज भी ”सेंगोल” स्वर्ण छड़ी के रूप में चलता है। इसे टिहरी राजघराने ने तत्कालीन रावल को उनकी शक्ति और सत्ता के प्रतीक के रूप में सौंपा था। इसके 132 साल बाद अंग्रेजों ने भी भारत की आजादी पर 1947 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल दिया था। जिसे अब नए संसद भवन में स्थापित किया जा रहा है। बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चन्द्र उनियाल बताते हैं कि सन 1815 में अंग्रेजों व टिहरी नरेश के बीच गढ़वाल राज्य का विभाजन हुआ था। बंटवारे में बदरीनाथ का हिस्सा अंग्रेजों के क्षेत्र में आया। लेकिन, धार्मिक मान्यता को देखते हुए बदरीनाथ धाम के क्षेत्र का अधिकार टिहरी राजघराने के पास ही रखा गया। टिहरी राजा ने बदरीनाथ की शासन व्यवस्था की जिम्मेदारी उसके पुजारी रावल को दे दी। इसके लिए शक्ति और सत्ता के प्रतीक के रूप में उन्हें राजदंड सौंपा गया। रावल धार्मिक परम्पराओं के साथ इस राजदंड की शक्ति से न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्थाएं देखते थे, बल्कि न्यायिक कार्य भी करते थे। यह दंड आज भी हमेशा रावल के आगे चलता है। प्राचीन भारत में राजा अपने साथ में एक प्रतीकात्मक छड़ी रखते थे। इसे राजदंड कहा जाता था। यह जिसके पास भी होता था, पूरे राज्य का वास्तविक शासन उसी के आदेशों से चलता था। यही परंपरा टिहरी राजा ने रावल को सौंपी थी।
जिनको भी बदरीनाथ धाम जाने का अवसर मिला है, तो उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों व प्रक्रियाओं के दौरान रावल के साथ में इस छड़ी के दर्शन किए होंगे। हालांकि आजादी के बाद रावल के प्रशासनिक व न्यायिक कार्य धीरे-धीरे कम हो गए और अब वे पूर्ण रूप से धार्मिक कार्य करते हैं।

दक्षिण भारत से ही होते हैं बदरीनाथ के रावल
– आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित व्यवस्था के अनुसार भगवान बदरीनाथ के पुजारी दक्षिण भारत के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं। केरल के यह ब्राह्मण आदि गुरु शंकराचार्य के कुल के हाेते हैं। यह अविवाहित होते हैं। मुख्य पुजारी के तौर पर सिर्फ रावल ही एकमात्र वह व्यक्ति हैं, जो भगवान बदरी नारायण के विग्रह यानी मूर्ति को स्पर्श कर सकते हैं। उनके अलावा अन्य किसी को भी यह अधिकार नहीं है।

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