आसाराम को सुप्रीम कोर्ट से झटका

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आईपीएस अजयपाल लांबा को बतौर गवाह बुलाने का राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला रद्द
जोधपुर। अपने ही आश्रम की नाबालिग छात्रा से रेप के मामले में जोधपुर की सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आसाराम को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा को केस में बतौर गवाह बुलाने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट को सजा के खिलाफ अपील पर जल्द सुनवाई करने को भी कहा है।

दरअसल राजस्थान हाईकोर्ट ने आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा को गवाह के तौर पर पेश होने के लिए समन जारी किया था। इसे राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दस फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा था। राजस्थान सरकार के वकील ने कहा था किताब फिक्शन है, उसके आधार पर पूरे मामले को दोबारा खोलने की मांग नहीं की जा सकती। किताब में ही कहा गया है कि यह घटना का एक नाटकीय रूपांतरण है।
आसाराम मामले में जांच की अगुवाई करने वाले आईपीएस अजय पाल लांबा ने अपनी किताब गनिंग फॉर द गॉड मैन में पुलिस की जांच पर सवाल खड़े किए थे। इसे लेकर आसाराम ने लांबा को बतौर गवाह पेश करने की अर्जी लगाई थी। जिसे हाईकोर्ट ने मान लिया था। लांबा की किताब गनिंग फॉर द गॉड मैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम्स कनविक्शन में घटनास्थल की वीडियो ग्राफी करवाने का तथ्य सामने आने के बाद बचाव पक्ष ने इसे महत्वपूर्ण साक्ष्य बताते हुए सीआरपीसी की धारा 391 के तहत हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र पेश किया था।

अपनी सजा के खिलाफ आसाराम ने हाईकोर्ट में अपील करते हुए तर्क दिया था कि अभियोजन पक्ष की ओर से झूठा मामला बनाया गया है। लांबा को तलब करने के लिए एक अर्जी देते हुए आरोप लगाया गया था कि अपराध के दृश्य के कुछ वीडियो के आधार पर पीडि़ता को सिखाया गया था जिसे उन्होंने शूट किया गया था। वहीं अर्जी में कहा गया कि लांबा की ओर से लिखी गई किताब गनिंग फॉर द गॉडमैन, द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम कन्विक्शन में इस दावे की पुष्टि भी की जा सकती है। इस पर आसाराम की अर्जी पर दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने लांबा को समन करने की अनुमति दी थी। जिसे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और तर्क रखा कि किताब नाटकीय रुपांतरण है इसके आधार पर पूरा केस फिर से नहीं खोला जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने वकील के तर्क के आधार पर हाईकोर्ट के इस आदेश को खारिज कर दिया।

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