इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोदीज मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी, बाईसवां संस्करण (छात्र संस्करण) [Modi’s Medical Jurisprudence & Toxicology, Twenty-Second Edition] पर भरोसा करते हुए, हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को जमानत दे दी, जिस पर क्लोरोफॉर्म के इस्तेमाल से कथित तौर पर एक महिला को बेहोश करने के बाद उसके साथ बलात्कार करने का आरोप है।
जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने कहा कि मोदीज मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी के अनुसार, किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध बेहोश करना असंभव है, जबकि वह जाग रही हो। कोर्ट ने कहा कि एक अनुभवहीन व्यक्ति के लिए बिना किसी व्यवधान के सो रहे व्यक्ति को बेहोश करना और प्राकृतिक नींद के स्थान पर कृत्रिम नींद देना भी असंभव है।
कोर्ट ने कहा, “इसलिए आम प्रेस में अक्सर प्रकाशित होने वाली कहानी जिसमें एक महिला के चेहरे पर क्लोरोफॉर्म में भिगोए गए रूमाल को रखकर उसे अचानक बेहोश कर दिया गया और फिर उसके साथ बलात्कार किया गया, उस पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।”
न्यायालय ने किताब पर भरोसा करते हुए आगे कहा कि ‘उत्तेजक’ और ‘भावुक’ स्वभाव वाली महिलाओं को बेहोशी की अवस्था के दौरान बलात्कार होने का भ्रम हो सकता है या सपने आ सकते हैं और इस तरह के सपनों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।