-प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी पहुंचे दिल्ली, शीर्ष नेताओं से होगी मुलाकात
जयपुर, 16 मई : प्रदेश में भले ही लड़ाई गहलोत-पायलट के बीच चल रही है लेकिन पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के कार्यकाल के घोटालों की गूंज से जयपुर से लेकर दिल्ली तक हलचल तेज है। इससे पार्टी की छवि पर जहां असर पड़ रहा है वहीं लोगों के जेहन में पुराने मुद्दे फिर आने लगे हैं। यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है और इसी के चलते पार्टी अब राजस्थान को लेकर नए सिरे से चुनावी रणनीति बनाने में जुट गई है। केंद्र के कार्यों पर कर्नाटक की जनता ने स्थानीय मुद्दों को तवोज्जो दी और इसी थीम पर राजस्थान में भी चुनावी मैदान में भाजपा जाना चाहती थी, लेकिन अब वह इसको लेकर नए सिरे से सोच-विचार करने में जुट गई है। संभवत: इसी के चलते प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी दिल्ली में संसद सदन की बैठक में शरीक होने गए हैं। हालांकि बताया जाता है कि प्रदेश की चुनावी तैयारियों को लेकर उनकी शीर्ष नेताओं से मीटिंग होगी।
2018 में जिन मुद्दों को लेकर कांग्रेस चुनावी मैदान में उतरी और राजे सरकार को बाहर का रास्ता दिखाया उसी तर्ज पर कांग्रेस विशेषकर सचिन पायलट अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं। दूसरी तरफ गहलोत ने राजे की तारीफ व सरकार बचाने का बयान देकर भाजपा और वसुंधरा राजे की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यह अलग बात है कि शीर्ष नेतृत्व ने साढ़े चार साल में राजे को अधिक महत्व नहीं दिया। इस प्रकार के मामले सामने आने पर हो सकता है कि आगे भी उन्हें मुख्य धारा में नहीं लाया जाए। राजे सरकार के समय हुए घोटालों को लेकर पायलट गुट अब पूरे प्रदेश में आंदोलन करने जा रहे हैं। इससे राजे के साथ ही भाजपा की छवि धूमिल होना तय है। दूसरी तरफ प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ अभी माहौल नहीं है और पेपर लीक के मामले को तो खुद पायलट ने भाजपा से झपट लिया है। इससे कांग्रेस को अधिक नुकसान नहीं होने वाला है। दूसरी तरफ भाजपा सीएम फेस के साथ चुनाव में जाने का जोखिम नहीं ले रही और वह मोदी काम-नाम-चेहरे को लेकर चुनाव में उतरना चाहती है। हिमाचल के बाद कर्नाटक के परिणाम के बाद भाजपा अब दूसरे विकल्प पर भी सोच-विचार करने में जुट गई है। प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी जब दिल्ली पहुंच गए हैं, तो बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव की तैयारियां, संगठनात्मक मुद्दे, सीएम फेस की रार, गहलोत-पायलट द्वंद सहित कांग्रेस को राजस्थान में कैसे घेरे इन सभी पर उनकी शीर्ष नेतृत्व से चर्चा संभव है। जोशी को प्रदेशाध्यक्ष बने दो माह हो गए लेकिन संगठन में वह कोई बदलाव नहीं कर पाए। हालांकि चुनावी साल में पार्टी बदलाव नहीं करती है, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष को अपने हिसाब से कुछ करीबी व विश्वसनीय लोग चाहिए होते हैं और उसके लिए चंद बदलाव जरूरी होते हैं। फिलहाल प्रदेश में यह देखने को नहीं मिला। संभव है कि जोशी के दिल्ली से आने के बाद कुछ बदलाव व भाजपा की नई रणनीति देखने को मिले।
केंद्र के कामों पर वोट देना है, तो 2024 में देंगे
सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर बलजीत सिंह सिंगरोहा कहते हैं कि हिमाचल हो या फिर कर्नाटक वहां केंद्र के काम पर वोट मांगे गए। जबकि विधानसभा चुनाव में राज्य के मुद्दे होना चाहिए। लोग अब जागरूक हो गए हैं, वह भलीभांति समझते हैं कि यदि केंद्र के काम पर वोटिंग करना है, तो उसके लिए लोकसभा में करेंगे, विधानसभा के लिए तो स्थानीय मुद्दे ही होना चाहिए। इसी के चलते शायद अब भाजपा राजस्थान, एमपी व छत्तीसगढ़ को लेकर नए सिरे से प्लानिंग बनाने में जुट गई है।
सीएम फेस पर रार
राजनैतिक जानकार प्रो.वीरेंद्र सिंह राजावत बताते हैं कि भले ही बाहर नहीं दिख रहा लेकिन भाजपा में अंदरखाने सीएम फेस को लेकर जमकर लामबंदी हो रही है। राजे का मुद्दा कांग्रेस ने उठाया, लेकिन उसे भुनाने में कुछ भाजपा नेता अंदरखाने लगे हुए प्रतीत हो रहे हैं। सीएम बनने की लालसा वाले जयपुर से लेकर दिल्ली तक रणनीति बनाकर अपने समीकरण सेट कर रहे हैं और यह भी भाजपा के लिए किसी सिरदर्दी से कम नहीं है।