कर्नाटक में कांग्रेस ने जीत का डंका बजा दिया। कर्नाटक के चुनाव ने यह साफ कर दिया है कि किसी भी राज्य में चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों के बजाय स्थानीय मुद्दों पर ही लड़कर जीता जा सकता है।
कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर फोकस रखा, जिसका उसे फायदा मिला। वहीं, भाजपा का फाेकस राष्ट्रीय मुद्दों पर था, जिसका माइलेज पार्टी को नहीं मिला।
इसके अलावा कर्नाटक में जनता ने स्थानीय चेहरों पर ही भरोसा जताया। यहां मोदी-शाह के चेहरों पर भाजपा को वोट नहीं मिले। कर्नाटक के बाद अब राजस्थान में करीब छह माह बाद चुनाव होने हैं।
ऐसे में दोनों पार्टियों का पूरा फोकस राजस्थान पर रहेगा। एक्सपर्ट्स की मदद से कर्नाटक चुनाव के नतीजों का एनालिसिस किया। कर्नाटक के परिणाम से राजस्थान को लेकर भी कांग्रेस और भाजपा के लिए कई मैसेज छिपे हुए हैं। इसके साथ ही यह भी सवाल है कि कर्नाटक की तरह क्या राजस्थान में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस को सफलता दिला पाएगी? वहीं टिकट की आस लगा रहे भाजपा-कांग्रेस के बड़े नेता पुत्रों का क्या होगा?
राजस्थान में क्या जरूरत है? : कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस को अब राजस्थान में पार्टी के भीतर चल रहे राजनीतिक युद्ध पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
राजस्थान में चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा टास्क सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच चल रहे विवाद को थामने का है।
पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ हमलावर हैं और वे अजमेर से जयपुर के बीच जनसंघर्ष यात्रा निकाल रहे हैं।
अब तक पायलट के मामले में कांग्रेस का कोई निर्णय नहीं आने के पीछे कर्नाटक चुनाव ही कारण था। कर्नाटक का रिजल्ट आ चुका है और अब राजस्थान के मुद्दे पर मंथन होगा।