सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (ia) के तहत विवाह की ऐसी टूट कि सुधार संभव ना हो, (अपूरणीय टूट या irretrievable breakdown) को विवाह को विघटित करने के लिए “क्रूरता” के आधार के रूप में समझा जा सकता है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की पीठ ने यह टिप्पणी एक ऐसे मामले को निस्तारित करते हुए की, जिसमें एक जोड़ा 25 साल से अलग रह रहा था। दंपति बमुश्किल चार साल तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे थे, उसके बाद वे अलग हो गए। उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए थे।
फैमिली कोर्ट ने 2009 में क्रूरता के आधार पर पति की ओर से दायर विवाह को भंग करने की याचिका स्वीकार कर ली, हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने 2011 में तलाक के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पति की अपील पर विचार करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में दोनों पक्षों के बीच संबंध कटु हो गए है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि विवाह में कोई बच्चा पैदा नहीं होता है। पीठ ने कहा कि विवाह की अपूरणीय टूट अभी तक विवाह के विघटन का आधार नहीं है, हालांकि इस आशय की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट ने नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (2006) 4 SCC 558 में की थी।