कांग्रेस में संतुलन की कवायद, संगठनात्मक बदलाव संभव

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-नए पदाधिकारी लगाएंगे पार्टी की नैया पार!
-तीन सह प्रभारी की नियुक्ति के बाद तेज हुई अटकलें

जयपुर, 26 अप्रैल: कांग्रेस की गहलोत सरकार इस समय पूरी तरह चुनावी मोड में नजर आ रही है। सीएम गहलोत खुद लगातार एक्शन में हैं, तो दूसरी ओर संगठन स्तर पर भी चुनावी तैयारियों को लेकर समीक्षा का दौर चल रहा है। दिल्ली में समीक्षा बैठक में गुटबाजी का मुद्दा सर्वाधिक रूप से सामने आने पर अब इस पर अंकुश लगाने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। इसी के तहत पार्टी हाईकमान अब संगठन में बदलाव की दिशा में मंथन कर रहा है। यानि अब पार्टी की गाइड लाइन के विपरीत बयानबाजी या आरोप-प्रत्यारोप लगाने वालों पर लगाम कसने के लिए उन्हें संगठन की गाइडलाइन रूपी जंजीरों से जकडऩे की तैयारी की जा रही है। बताया जाता है कि जल्द ही पार्टी को मजबूत करने के लिए संगठन स्तर पर बदलाव किए जा सकते हैं। इसमें प्रदेशस्तरीय टीम के साथ ही जिलास्तरीय टीम में आमूल-चूल परिवर्तन होने की बात सामने आ रही है। हालांकि प्रदेशस्तर पर मामूली बदलाव होगा तो बाकी प्रदेश में जहां पदाधिकारी नहीं हैं, वहां नई नियुक्तियां की जाएंगी।
गहलोत व पायलट के बीच चल रहे शीत युद्ध को लेकर तमाम प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान इस समय सिर्फ राजस्थान चुनाव फतेह पर फोकस किए हुए है। इसके चलते वह किसी पर कोई कार्रवाई के पक्ष में नजर नहीं आ रहा है। संभवत : इसी के चलते पिछले एक सप्ताह में लगातार दिल्ली में हुई मीटिंग से एक बात सामने निकलकर आई है कि पार्टी गुटबाजी व बयानबाजी पर रोक लगाने के लिए ऐसे नेताओं को जिम्मेदारी देकर पार्टी गाइडलाइन व नियमों की जंजीरों से जकडऩे की कोशिश करने की सोच रही है। हाईकमान का मानना है कि संगठन के बाहर रहने पर नेता कई प्रकार के बयान देकर पार्टी की मुसीबत बढ़ा देते हैं यदि वह किसी जिम्मेदार पद पर रहेंगे तो पार्टी की गाइडलाइन का पालन करना उनकी मजबूरी हो जाएगी। इसके पीछे उनकी सोच सिर्फ यह है कि राजस्थान में आपसी खींचतान को खत्म किया जाए। पार्टी के आंतरिक सर्वे में भले ही कई विधायकों का रिपोर्ट कार्ड ठीक नहीं आया है, लेकिन कांग्रेस सरकार को लेकर लोगों ने पॉजिटिव संकेत दिए हैं। यानि सत्ता विरोधी लहर नहीं है और यदि कांग्रेस एकजुटता के साथ चुनावी मैदान में जाएगी तो फिर रिवाज-परंपरा को वह ध्वस्त कर सकती है। इसी के चलते पार्टी हाईकमान किसी को शह व किसी को मात देने के पक्ष में नहीं है। उनकी सोच है कि एकला चलने के बजाय सभी को साथ लेकर चलना है और तभी वह भाजपा को कड़ी टक्कर देकर सत्ता की कुुर्सी तक का सफर तय कर सकती है।

सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बन रही रणनीति
कांग्रेस पार्टी ने जो सर्वे कराया था उसी के आधार पर वह अपनी आगामी रणनीति बनाकर काम करने की कोशिश कर रही है। जिन विधायकों का रिपोर्ट कार्ड अच्छा नहीं था पार्टी ने उनके साथ सर्वे रिपोर्ट शेयर की है। ताकि वह अपना परफार्मेंस सुधार सकें। साथ ही कांग्रेस आगे भी सर्वे व स्टेडी कराने की बात कर रहा है। यानि जिन विधायकों का परफार्मेंस नहीं सुधरा तो फिर उनका टिकट कटना तय है।
युवाओं पर टिकी नजर
कांग्रेस हाईकमान से लेकर प्रदेश स्तरीय नेता इस समय युवा नेताओं पर फोकस किए हुए हैं। सर्वे रिपोर्ट में जो विधायक फिसड्डी साबित हुए हैं, उनकी जगह युवा वर्ग में संभावनाएं पार्टी तलाश रही है। पार्टी सूत्रों की माने तो इस बार कांग्रेस युवाओं पर दांव लगा सकती है और इसके पीछे उनका लॉजिक भी है कि 2018 में उनके युवा प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने जादुई करिश्मा किया था। यदि इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ तो यह कांग्रेस के लिए इतिहास बन सकता है।

सह प्रभारियों की मीटिंग टली
सीएम अशोक गहलोत, प्रदेश प्रभारी रंधावा व प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा तीनों महंगाई राहत कैंप को लेकर बीकानेर में हैं। वहीं गुरुवार को नवनियुक्त सह प्रभारी अमृता धवन, वीरेंद्र सिंह राठौड़ व काजी निजामुद्दीन की जयपुर में मीटिंग होने वाली थी। तीन सह प्रभारियों की नियुक्ति करने में ही पार्टी ने चार माह का समय लगा दिया और इसी के चलते अब पार्टी जल्द ही संगठन को मजबूत करने के लिए कई परिवर्तन की सोच रही है।
सीएम के बयान भी कर रहे इशारा
सीएम गहलोत के तीन-चार दिन के बयान को यदि ध्यान से सुना व समझा जाए तो यह भी इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि आपसी विवाद, गुटबाजी, बयानबाजी को छोडक़र एकजुटता से चुनावी मैदान में जाना है। वह कह रहे हैं कि छोटा-मोटा विवाद चलता रहता है, हमें लड़ाने की कोशिश मत करिए। वहीं पायलट को लेकर भी वह कोई बयान नहीं दे रहे हैं। इससे इस बात को बल मिल रहा है कि जल्द ही पायलट को कोई अहम जिम्मेदारी देकर फिर से गहलोत के साथ चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है।

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