जिस मामले में एफआईआर रद्द की गई थी, उस मामले में पुलिस की ओर से क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट हैरान; ऐसी प्रथा को बंद करने का निर्देश

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस को उन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने की जरूरत नहीं है, जहां हाईकोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही या एफआईआर को रद्द कर दिया है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने हाईकोर्ट द्वारा कार्यवाही रद्द किए जाने के बाद भी मामलों में पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने की प्रथा को खारिज कर दिया। खंडपीठ ने यह टिप्पणी उत्तराखंड पुलिस द्वारा खारिज किए गए एक मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किए जाने के एक उदाहरण पर गौर करने के बाद की।
“हम वास्तव में हैरान हैं कि जब हाईकोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही/एफआईआर को रद्द कर दिया था, जिसे उसके बाद राज्य ने चुनौती दी है, तो जांच अधिकारी क्लोजर रिपोर्ट कैसे दे सकता है।” कोर्ट ने आगे कहा, “यदि राज्य द्वारा इस तरह की प्रथा का पालन किया जा रहा है, तो उसे तुरंत बंद कर देना चाहिए। हम मानते हैं कि हाईकोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही/एफआईआर को रद्द करने के मामले में धारा 173 सीआरपीसी के तहत क्लोजर रिपोर्ट तैयार करने/दर्ज करने का कोई सवाल ही नहीं है।”
पीठ ने आगे निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव और सचिव (गृह विभाग) और राज्य के पुलिस महानिदेशक को भेजी जाए ताकि इसे राज्य के सभी पुलिस थानों में प्रसारित किया जा सके। केस टाइटल: स्टेट ऑफ उत्तराखंड बनाम उमेश कुमार शर्मा व अन्य

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