विधायिका को सामाजिक व धार्मिक समूहों से परामर्श करके इस विषय से निपटने दें
नई दिल्ली, 23 अप्रैल : बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बी.सी.आई.) ने समलैंगिक विवाह की याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ की सुनवाई को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि विवाह की अवधारणा को मौलिक रूप से बदलना विनाशकारी होगा।
बी.सी.आई. के साथ सभी राज्य बार काउंसिलों की एक संयुक्त बैठक में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कहा गया कि इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए विविध सामाजिक-धार्मिक पृष्ठभूमि के हितधारकों के एक व्यापक दायरे को ध्यान में रखते हुए यह सलाह दी जाती है कि याचिका में उठाए गए मुद्दे से सक्षम विधायिका द्वारा विभिन्न सामाजिक व धार्मिक समूहों को शामिल करते हुए विस्तृत परामर्श प्रक्रिया अपनाकर बाद में निपटा जाए।
बी.सी.आई. ने कहा कि हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों पर दूरगामी प्रभाव वाले मामले को आवश्यक रूप से विधायी प्रक्रिया के माध्यम से ही आना चाहिए। बी.सी.आई. का मानना है कि उच्चतम न्यायालय का किसी प्रकार से इस मामले में शामिल होना आने वाले दिनों में हमारे देश की सामाजिक संरचना को अस्थिर कर देगी। बी.सी.आई. के प्रस्ताव में कहा गया है,‘‘इतिहास के अनुसार मानव सभ्यता और संस्कृति की स्थापना के बाद से विवाह को आमतौर पर स्वीकार किया गया है और प्रजनन एवं मनोरंजन के दोहरे उद्देश्य के लिए जैविक पुरुष और महिला के मिलन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
ऐसी पृष्ठभूमि में विवाह की अवैध अवधारणा के मौलिक रूप से कुछ भी व्यापक बदलाव (किसी भी कानून न्यायालय द्वारा) चाहे वह कितना भी नेकनीयत क्यों न हो, विनाशकारी होगा। देश के 99.9 प्रतिशत से अधिक लोग हमारे देश में समान लिंग विवाह पर ‘विचार के विरोध में हैं।’
2023-04-24