– बस सारथी कर रहे हैं बिना विश्राम के लगातार 15 दिनों तक ड्यूटी
-कंडम बसों की भरमार, हर माह बढ़ रही है नाकारा वाहनों की संख्या
जयपुर, 15 अप्रैल (ब्यूरो) : लगातार तीसरी सरकार के कार्यकाल में राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम (राजस्थान रोडवेज) के घाटे से उबरने के कोई आसार नहीं दिख रहे है। रोडवेज का घाटा करीब 8 हजार करोड़ को पार कर गया है। सरकार ने रोडवेज को विभाग बनाकर घाटा-नफा का ही चक्कर खत्म करने की तैयारी कर ली थी, लेकिन रोडवेज को विभाग बनाने की फाइल अब भी संभवत: सचिवालय के गलियारों के चक्कर लगा रही है। सरकार ने नई बसों की खरीद अवश्य की है, लेकिन ये नई बसें मांग और आपूर्ति के अनुपात में सामंजस्य नहीं बिठा पा रही है। रोडवेज में इस समय करीब 2 हजार बसें लगभग कंडम हो चुकी है, लेकिन करीब चार साल पहले केवल 500 बसों की ही खरीद हो पाई। अभी स्थिति यह है कि हर वर्ष 200 बसें नाकारा होती जा रही है। यानी कि बेड़े में मौजूद करीब 5 हजार बसों में से करीब 70 प्रतिशत सडक़ों पर चलने की स्थिति में नहीं है। लेकिन रोडवेज के खराब आर्थिक हालात के कारण प्रशासन इन्हीं बसों को ढोने के लिए मजबूर है।
इसके अलावा रोडवेज कर्मियों की सेलेरी दो-दो, तीन-तीन माह में आ रही है। वैसे ये कोई नई बात नहीं है। पिछली सरकार के कार्यकाल से ही पगार का यही हाल है। कई बार तो 6-6 माह बीत जाते है कर्मचारियों के अकाउंट में सेलेरी के दर्शन नहीं होते। इतनी सेलेरी बाकी रहने पर 2 या तीन माह की पगार डाल कर इतिश्री कर ली जाती है।
मामूली सेलेरी में 1100 बस सारथी लगातार काम करने को मजबूर
गौरतलब है कि रोडवेज में कंडक्टरों की भर्ती हुए एक अर्सा हो चुका है। अंतिम बार साल 2013 में रोडवेज में चालक और परिचालकों की भर्ती हुई थी। कंडक्टरों की कमी पूर्ती के लिए रोडवेज ने कुछ समय पूर्व बस सारथियों की भर्ती का प्रावधान बनाया था। यानी कि परिचालकों के स्थान पर एक निश्चित सेलेरी पर संविदा की तर्ज पर बस सारथी काम करेंगे। लेकिन बताया जाता है कि रोडवेज प्रशासन बस सारथियों की कोई सुध नहीं नहीं ले रहा है। इनको करीब 11 हजार रुपए प्रति माह के फिक्स वेज पर रोडवेज में रखा हुआ है लेकिन एक रिमार्क लगने पर 10 हजार रुपए तक जुर्माना वसूल लिया जाता है। यानी कि एक ही झटके में पूरी सेलेरी गायब। इस पर भी कई तरह के नियम कायदे बना रखे है जो कोढ़ में खाज का काम कर रहे है। सूत्रों के अनुसार इस समय रोडवेज में लगभग 3 हजार पद कंडक्टरों के खाली है। रोडवेज की खराब आर्थिक स्थिति के कारण इस समय हालात ऐसे नहीं है कि मोटी सेलेरी पर परिचालकों की भर्ती की जाए लिहाजा रोडवेज प्रशासन बस सारथियों से ही काम चला रहा है। इस पर भी इन बस सारथियों को लगातार 15 दिन तक काम में लिया जा रहा है यानी कि रेस्ट के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हो रही है।
रोडवेज वर्कशॉप की खाली जमीन पर निजी बसों की मरम्मत!
राजस्थान रोडवेज मुख्यालय के पास वैशाली नगर और जयपुर डिपो की खाली पड़ी जमीन पर इन दिनों निजी बस ऑपरेटरों और लोक परिवहन बसों की मरम्मत की खबरें सामने आ रही है। वहां देखने वाला कोई नहीं है। जानकारी के मुताबिक बाहर वाले मैकेनिक आकर वर्कशॉप के साधनों का उपयोग कर रहे हैं और प्राइवेट बसें लगातार रिपेयर हो रही है। रोडवेज मुख्यालय के पास वरिष्ठ अधिकारियों के नाक के नीचे इस तरह का काम होना कम आश्चर्यजनक नहीं है।
2023-04-16