आपराधिक मुकदमे में दस्तावेज़ को चिह्न/प्रदर्श सौंपना मंत्री स्तरीय कार्य, साक्ष्य दर्ज करने के दौरान कोई महत्व नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

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राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी दस्तावेज़ को कोई प्रदर्श या चिह्न सौंपने का कार्य मंत्री स्तरीय कार्य है, जिसका उद्देश्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेज़ की पहचान करना है और साक्ष्य दर्ज करने के समय ऐसा असाइनमेंट महत्वहीन है।

जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि भले ही किसी दस्तावेज़ को कोई प्रदर्श सौंपा गया हो लेकिन बाद में पाया जाता है कि वह कानून के अनुसार विधिवत साबित नहीं हुआ या अस्वीकार्य है तो उचित चरण में उसका बहिष्कार मांगा जा सकता है। इसके विपरीत यदि किसी दस्तावेज़ को शुरू में चिह्नित किया गया। बाद में कानून के अनुसार साबित किया गया और स्वीकार्य माना गया तो संबंधित पक्ष उचित समय पर न्यायालय से इस पर विचार करने का अनुरोध कर सकता है।

न्यायालय ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन खारिज कर दिया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपंजीकृत समझौते को प्रदर्शनी सौंपने पर आपत्ति जताई थी।

न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि आपराधिक कानून में यदि कोई दस्तावेज अपंजीकृत या असत्यापित है तो उसकी स्वीकार्यता में बाधा नहीं आती है, क्योंकि आपराधिक कार्यवाही में पक्षों के बीच किसी भी नागरिक अधिकार को निर्धारित करने पर नहीं बल्कि न्यायालय का ध्यान अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोपों को तय करने पर होता है।

इसके अलावा न्यायालय ने यह भी फैसला सुनाया कि किसी दस्तावेज को कोई प्रदर्शन या चिह्न देना केवल एक मंत्री का कार्य है, जो साक्ष्य रिकॉर्ड करने के समय अप्रासंगिक है।

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि चूंकि मुकदमा चल रहा है। इसलिए ट्रायल कोर्ट उचित चरण में दस्तावेज की स्वीकार्यता और साक्ष्य मूल्य पर निर्णय ले सकता है।

तदनुसार, Criminal Trial RAJASTHAN STATE

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