झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि लिखित बयान दाखिल करने के समय प्रस्तुत नहीं किए गए दस्तावेजी साक्ष्य मुकदमे के बाद के चरणों में पेश किए जा सकते हैं बशर्ते कि उनके उत्पादन में उचित परिश्रम किया गया हो।
जस्टिस सुभाष चंद ने कहा,
“वादी का आवेदन खारिज करते समय ट्रायल कोर्ट ने इस कानूनी स्थिति पर विचार नहीं किया कि यदि लिखित बयान के समय उचित परिश्रम के बावजूद दस्तावेजी साक्ष्य दायर नहीं किए गए तो उन्हें बाद के चरण में रिकॉर्ड पर लिया जा सकता है यदि वे दस्तावेज पक्षों के बीच मुद्दों के न्यायनिर्णयन के लिए आवश्यक हैं। सी.पी.सी. के आदेश XVIII नियम 17A के तहत प्रावधान को हटाने के बाद भी पक्षकार मुकदमे के बाद के चरण में साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसमें मुकदमा दायर करने के समय या लिखित बयान दाखिल करने के समय उन्हें प्रस्तुत न करने का पर्याप्त आधार दर्शाया गया हो।”
उपरोक्त निर्णय याचिकाकर्ता की ओर से सिविल जज (जूनियर डिवीजन)-I, गुमला द्वारा टाइटल सूट में पारित 2016 के आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका में आया, जिसके तहत याचिकाकर्ता द्वारा आदेश VIII नियम 1A(3) C.P.C. के तहत दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति देने के लिए याचिका दायर की गई, जिसे खारिज कर दिया गया।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने आदेश VIII नियम 1A(3) C.P.C. के तहत दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने अनुरोध अस्वीकार कर दिया। इस निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने वर्तमान रिट याचिका दायर की।