-मोदी की गारंटियां, शाह की माइक्रोप्लानिंग और शिवराज की लाड़ली योजना भाजपा की बनी खेवनह
मध्य प्रदेश में एक बार फिर भाजपा सत्ता में वापसी कर रही है। सत्ता विरोधी लहर को मात देकर 160 से ज्यादा सीटों के साथ भाजपा की सत्ता में वापसी के तीन अहम कारक रहे। एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटियां, जिस पर जनता ने भरोसा जताया। दूसरा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की संगठनात्मक स्तर पर की गई माइक्रोप्लानिंग और तीसरा, जिसे सबसे प्रमुख कारण इस जीत का माना जा रहा है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से चलाई गई लाड़ली बहना योजना। इस योजना में प्रदेश की आधी आबादी यानि महिलाओं को हर महीने 1250 रुपये नगद राशि मुहैया कराई जाती है। कांग्रेस आपसी कलह में उलझी रही और कमजोर रणनीति के चलते भाजपा के खिलाफ बने माहौल को भुनाने में असफल रही।
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। मगर डेढ़ साल में ही कांग्रेस की सरकार गिर गई। 2018-20 के बीच के डेढ़ साल के कांग्रेस की सरकार का कार्यकाल छोड़ कर बीते दो दशक से भाजपा मध्य प्रदेश में राज कर रही है। हर चुनाव में उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की बात कही जाती है, लेकिन सरकार की बजाए यह मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ ज्यादा होती है। यही कारण है कि प्रचंड बहुमत के बावजूद इस बार भी पार्टी के कई दिग्गज नेता और मंत्री विधानसभा सदन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस जीत के पीछे भाजपा की माइक्रोप्लानिंग को एक प्रमुख कारक माना जा रहा है। चुनावी गतिविधियां शुरू होने से पहले और टिकट बंटवारे के बाद हुई बगावतों के बाद यह माना जा रहा था कि भाजपा की सत्ता गई। लेकिन अंतिम दिनों में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संगठन और चुनावी रणनीति को संभाल लिया। उन्होंने कुछ दिनों तक मध्य प्रदेश में डेरा डाल दिया। बगावत को निष्प्रभावी करने की रणनीति बनाने के साथ ही कांग्रेस के कमजोर पक्ष को खोज कर उस पर आक्रामक हमले करने से लेकर विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को घेरने और मतदान वाले दिन वोटर को बूथ तक पहुंचाने की रणनीति बना कर पूरे संगठन को सक्रिय और एकजुट कर दिया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के एक पदाधिकारी ने बताया कि संघ ने अपने सर्वे में भाजपा को 96 सीट मिलने की उम्मीद जताई थी। इसी सर्वे रिपोर्ट में कुछ विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटने की सिफारिश के साथ नए चेहरों को टिकट देने की बात कही गई थी। संघ की रिपोर्ट अमल में लाने के बाद भाजपा को 110 से 122 सीट मिलने की उम्मीद जताई गई थी। भाजपा ने अलग से सर्वे करवाया और उसके बाद बैलेंस करते हुए कुछ टिकट काटे और कुछ नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतार दिया। शाह ने माइक्रोप्लानिंग की और पूरे संगठन को चुनाव प्रचार में झोक दिया।
वहीं, कांग्रेस अपने अंतर्कलह में ही उलझी रह गई। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने अपने-अपनों को टिकट दिलाने में जितनी ताकत लगाई, उतनी शिद्दत से चुनाव लड़ाने का प्रयास करते नजर नहीं आए। बागियों को मनाने और संगठनात्मक सक्रियता बढ़ाने को लेकर भी पार्टी के बड़े नेताओं की रुचि नहीं दिखी। कमलनाथ के पास वक्त था कि पार्टी अध्यक्ष रहते हुए संगठन को बूथ स्तर तक खड़ा करते, मगर पांच साल में इस बारे में काम करते कहीं नहीं दिखे। साफ्ट हिंदुत्व का उनका कार्ड भी भाजपा के हार्ड हिंदुत्व के सामने फेल रहा।
-मुख्यमंत्री चेहरा न देना बना तुरुप का पत्ता
मध्य प्रदेश में किसी को मुख्यमंत्री चेहरा न बनाना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और अपनी सरकार के काम पर वोट मांगने की भाजपा रणनीति सफल रही। भाजपा ने समय रहते यह भांप लिया था कि दो दशक से सत्ता में रहने के चलते कई मुद्दों पर जनता नाराज है। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ भी लोगों की नाराजगी हो सकती है। भाजपा ने रणनीतिक रूप से मुख्यमंत्री का चेहरा किसी को भी घोषित नहीं किया। शिवराज को हाशिए पर डालने के साथ ही राज्य के कई वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को भी चुनाव मैदान में उतार दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि सभी क्षत्रप मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो गए और अपने-अपने प्रभाव वाले इलाकों में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने में पूरी ताकत लगा दी। केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव लड़ाने की यह रणनीति भाजपा के पक्ष में गया।
-मोदी की गारंटियों पर लोगों ने जताया भरोसा
डबल इंजन की सरकार के साथ विकास की गंगा बहाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्वासन और गारंटियों पर लोगों ने भरपूर भरोसा जताया। चुनाव प्रचार के बीच ही किसानों के खातों में किसान सम्मान निधि का पैसा पहुंचा और उससे पहले लाड़ली बहना योजना के तहत राज्य की महिलाओं के खातों में 1250 रुपये प्रति माह की दर से राशि पहुंची। मोदी ने सात दिनों में 15 जिलों में 14 रैलियां की। अमित शाह ने छह दिनों में 17 रैली और रोड शो किए। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 150 से ज्यादा चुनावी सभाएं और रैलियां की। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ा और जनता ने एक बार फिर से भरोसा जताया।
-लाडली बहना योजना बनी गेमचेंजर
मध्य प्रदेश में चुनावी गतिविधियां शुरू होने से छह महीने पहले से कांग्रेस की स्थिति मजबूत मानी जा रही थी। हर किसी के जुबान पर यही था कि अब भाजपा की वापसी संभव नहीं है। लेकिन चुनाव में उतरने के साथ ही लाडली बहना योजना को केंद्र में रखा कर भाजपा ने जिस तरह से अपना प्रचार अभियान शुरू किया, उसने राज्य की आधी आबादी को अपने पक्ष में करने में काफी हद तक सफलता हासिल कर ली। माना जा रहा है कि भाजपा को मिले वोटों में करीब छह फीसद इस योजना की बदौलत बढ़े हैं।