कांग्रेस ने 6 तो बसपा ने 3 मुस्लिम प्रत्याशियों पर लगाया दांव, भाजपा सिर्फ 1 टिकट देने पर कर रही मंथन

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राजनीति में जातिवाद का घुन : मुस्लिम वोट से प्रेम, लेकिन टिकट देने में आनाकानी
-230 प्रत्याशी चुनाव में, लेकिन मुस्लिम प्रत्याशी मात्र 9
-मुस्लिम समाज में आक्रोश, भाजपा अल्पसख्ंयक मोर्चा बनाने पर उठाए सवाल
जयपुर, 23 अक्टूबर (योगेंद्र भदौरिया) : चुनाव आते ही जाति-धर्म का मुद्दा सबकी जुबान पर आ जाता है और सभी को इनकी याद सताने लगती है। चुनाव में हर समाज का वोट तो राजनैतिक पार्टियों को चाहिए, लेकिन जब प्रत्याशी उतारने की बात आती है, तो सभी कन्नी काटने लगते हैं। अभी तक चार राजनैतिक दलों ने करीब 230 प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। अब इनमें मुस्लिम प्रत्याशी की बात की जाए तो उनकी संख्या करीब एक दर्जन ही है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मुस्लिम वर्ग व उनके नेताओं को लेकर पार्टी में क्या सोच है। जबकि प्रदेश में तीन दर्जन से अधिक सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में है। प्रदेशभर में उनका वोट प्रतिशत करीब 11-12 परसेंट है, फिर भी टिकट में उनका नंबर नहीं लगता है। बीजेपी ने कहने को तो अल्पसंख्यक मोर्चा बना रखा है, लेकिन वह भी इस बार शायद 1 ही मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट देने पर मंथन करती नजर आ रही है। अभी तक कांग्रेस ने 6 तो बसपा ने 3 मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हैं। इसको लेकर मुस्लिम समाज के लोगों में गहरी नाराजगी है। यहां तक बीजेपी से जुड़े नेता भी अपनी पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं।
भाजपा व कांग्रेस ने दो लिस्ट के माध्यम से अभी तक क्रमश: 124 व 76 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतार दिए हैं। इनमें से सिर्फ कांग्रेस ने 6 मुस्लिम को टिकट दिया है। वहीं बसपा ने 21 प्रत्याशियों का ऐलान किया है और इनमें से 3 मुस्लिम है। बीटीपी ने 9 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, लेकिन इनमें मुस्लिम एक भी नहीं है। बीजेपी की आधे से अधिक लिस्ट आ गई, लेकिन एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया। जबकि भाजपा अल्पसंख्य मोर्चा करीब आधा दर्जन सीट मुस्लिम प्रत्याशियों के लिए मांग रहा है। यहां तक मोर्चा पदाधिकारी खुद दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी आलाकमान शायद इस बार भी सिर्फ 1 सीट मुस्लिम को टिकट देना चाहता है। 2018 में भी पार्टी ने सबसे आखिर में टोंक से यूनुस खान को चुनावी मैदान में उतारा था।
2018 में कांग्रेस ने 15 तो भाजपा ने 1 को दिया था टिकट
सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 15 मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे थे। इनमें से करीब 8 चुनाव जीते थे। वहीं बीजेपी ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के करीबी एकमात्र यूनुस खान को टोंक से उतारा और वह चुनाव हार गए थे।
2013 के विधानसभा चुनाव की स्थिति
वर्ष 2013 के चुनाव में बीजेपी ने 4 मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया था। इनमें से दो जीते थे और दो हार गए थे। वहीं कांग्रेस ने 16 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सभी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था।
मुस्लिम बाहुल्य वाली विधानसभा सीटें
आदर्श नगर, किशनपोल, हवामहल, टोंक, सवाई माधोपुर, धौलपुर, पुष्कर, मसूदा, अजमेर शहर, तिजारा, लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, कामां, नगर, बीकानेर पूर्व, सरदार शहर, सूरसागर, शिव, पोकरण, मकराना, चूरू, फतेहपुर, धौलपुर, नागौर, मकराना, डीडवाना, मंडावा, नवलगढ़, नागौर, झंझुनूं, सीकर और दांतारामगढ़।
‘सबका साथ सबका विकास’ का क्या हुआ?
राजनैतिक जानकार एडवोकेट साजिद खान कहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी हमेशा ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात कहते हैं, लेकिन जब टिकट की बात आती है, तो फिर उसका क्या होता है। प्रदेश में 11-12 परसेंट मुस्लिम वोटर हैं। इसके चलते मुस्लिम वोटर करीब 40 सीटें प्रभावित करते हैं। मुस्लिम वोट से ना केवल चुनाव के नतीजों पर असर पड़ता है, बल्कि कई बार हार-जीत भी तय करते हैं। बावजूद इसके टिकट देने के नाम पर खानापूर्ति की जाती है। सरकार बनने पर भी समाज के जीते हुए प्रत्याशी को कोई अहम मंत्रालय नहीं दिया जाता है। खान कहते हैं कि शायद हमारा उपयोग सिर्फ वोट लेने के लिए किया जाता है।

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