-तेजस्विनी-2023 में हुई स्त्री शक्ति की चर्चा
उदयपुर, 07 अक्टूबर(ब्यूरो): स्त्री सृष्टि के नवसृजन और संवर्धन की शक्ति रखती है। अगली पीढ़ी की मार्गदर्शक भी स्त्री होती है। संस्कृति और संस्कारों की संवाहक भी स्त्री होती है, क्योंकि शिशु की सबसे पहली शिक्षक वही होती है। भले ही स्त्री को अक्षर का ज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ हो, किन्तु परिवार के पोषण, ममता, गृह प्रबंधन, बालकों के पालन, संस्कारों के संवहन में वह स्वतः ही पारंगत होती है। एक स्त्री भले ही अशिक्षित हो सकती है, किंतु अज्ञानी कतई नहीं। यह बात राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय कार्यवाहिका अलका ताई ने शनिवार को यहां उदयपुर के नगर निगम प्रांगण में आयोजित ‘तेजस्विनी-2023’ मातृशक्ति सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही। सुखाड़िया रंगमंच सभागार में उपस्थित मातृशक्ति को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने आह्वान किया कि वे आदर्श बहन, आदर्श पत्नी और आदर्श बेटी बनें।
उन्होंने भारतीय दृष्टि में महिला चिंतन पर विचार रखते हुए कहा कि भारतीय चिंतन समाज में स्त्री-पुरुष दोनों में ईश्वर का साकार रूप समान रूप से मानता है। भारतीय चिंतन में अर्द्धनारीश्वर की संकल्पना है। पुरुष और प्रकृति दोनों की समानता ही सृष्टि के सृजन का आधार है। जबकि, पाश्चात्य संस्कृति में पहले पुरुष की अवधारणा है, पुरुष को एकाकी लगा तब पुरुष की पसली से नारी को उसके मनोरंजन के लिए बनाया गया।
उन्होंने कहा कि कोई भी राष्ट्र तभी सुरक्षित और समृद्ध है जब उसके पास सामरिक शक्ति है, बुद्धि-ज्ञान की शक्ति है और आर्थिक शक्ति है। भारतीय चिंतन में इन तीनों के लिए मां दुर्गा, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी को अधिष्ठात्री देवी माना गया है। ऐसे में भारतीय संस्कृति में स्त्री के स्थान को स्वतः ही समझा जा सकता है। आवश्यकता पाश्चात्य जगत में महसूस की गई थी जहां स्त्री को पुरुष के बाद माना गया। अमेरिका में महिला को मतदान का अधिकार नहीं था। उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति में वैदिक काल से ही स्त्री का स्थान ऊंचा है।
अलका ताई ने कहा कि आज हम स्वदेशी वोकल फोर लोकल की बात करते हैं, लेकिन इसे हम अंतर्मन तक नहीं अपना सके हैं। माता-पिता को मम्मी-डैडी बोलना, हमारे रिश्तों की भारतीय उपमाओं को सिर्फ अंकल-आंटी में समेट देना कहां तक उचित है। घर से ही संस्कारों का निर्माण करने का 99 प्रतिशत दायित्व मां अर्थात स्त्री का होता है। जैसा मातृशक्ति चाहेगी, घर-परिवार के संस्कार वैसे ही होंगे और यही संस्कार आगे चलकर समाज और राष्ट्र के संस्कारों का दर्पण होंगे।
अलका ताई ने आह्वान किया कि मातृशक्ति संकल्प लेकर अपने अंदर की शक्ति को जगाएं और समाज की हर महिला का आत्मबल बढ़ाएं। महिलाओं को अबला समझकर दान का पात्र न बनाएं, अपितु उन्हें आवश्यकतानुरूप शिक्षा देकर आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करें, स्त्री अपनी प्रतिभा से स्वतः ही स्वयं को सिद्ध कर देगी।
‘तेजस्विनी-2023’ की संयोजिका कुसुम बोरदिया ने बताया कि समाज में महिलाओं के योगदान को सम्मान देने तथा इस योगदान को और सशक्त करने के लिए आयोजित इस मातृशक्ति सम्मेलन में मेवाड़ की वीरांगनाओं के शौर्य पर प्रदर्शनी भी लगाई गई।