24 सितंबर को जैसे ही AIADMK ने NDA से अलग होने का ऐलान किया। वैसे ही BJP को तमिलनाडु में जोर का झटका लगा है। बता दें कि भगवा पार्टी के पास दक्षिण भारत में AIADMK के रूप में एक बड़ा सहयोगी था। ऐसा नहीं है कि ये गठबंधन अचानक से टूटा है। इसके टूटने का संकेत अगले साल ही मिल गया था
24 सितंबर को जैसे ही AIADMK ने NDA से अलग होने का ऐलान किया। वैसे ही BJP को तमिलनाडु में जोर का झटका लगा है। बता दें कि भगवा पार्टी के पास दक्षिण भारत में AIADMK के रूप में एक बड़ा सहयोगी था। ऐसा नहीं है कि ये गठबंधन अचानक से टूटा है। इसके टूटने का संकेत अगले साल ही मिल गया था। बता दें 2021 में दोनों ने मिलकर तमिलनाडु में चुनाव लड़ा था।
यहां भाजपा को महज चार सीटें मिली थीं और AIADMK को 66 सीटें मिलीं। हालांकि जीत DMK के गठबंधन को मिली थी। 2019 के आम चुनाव में भाजपा को तमिलनाडु में कोई सीट नहीं मिली थी। बता दें कि यह गठबंधन भी बहुत पुराना नहीं था। जयललिता के निधन के बाद ही भाजपा और AIADMK के एक धड़े में करीबी आई थी।
उत्तर से दक्षिण तक इन दलों ने छोड़ा BJP का साथ
अगर हम थोड़ा पीछे चले तो पाएंगे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब की शिरोमणि अकाली दल, बिहार की जनता दल (यू) और महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के साथ थी। इन सबने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और तीनों पार्टियों को उसके साथ मिला। चुनाव जीतने के बाद अकाली दल से हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री की शपथ ली। वहीं, JDU और शिवसेना से किसी ने भी मंत्री पद की शपथ नहीं ली।
लोकसभा चुनाव में असर पड़ना तय
अगर हम ध्यान देंगे तो ये बात खुलकर सामने आती है कि पिछले चुनाव के बाद जितनी भी पार्टियों ने भाजपा का साथ छोड़ा है। वो सभी पार्टियां अपने- अपने राज्यों में बड़ी जनाधार वाली पार्टियां है। पिछले चुनाव में दोनों ही पार्टियों को एक दूसरे का साथ मिला था।
इसका उदाहरण बिहार है, जहां 2014 के आम चुनाव में JDU दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाई थी। वहीं, 2019 में भाजपा के साथ आने के बाद वह 16 सीट जीतने में कामयाब हो गई थी। वहीं, आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका लग सकता है। इस बात की पुष्टि कई सर्वे भी कर चुके हैं।