धारीवाल, मेघवाल और सूर्यकांता क्यों बने कांग्रेस-भाजपा की मजबूरी?

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राजस्थान की राजनीति में इन दिनों उम्रदराज नेता चर्चाओं में हैं। पहले कैलाश मेघवाल का BJP पर हमला और फिर सूर्यकांता व्यास को लेकर मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की टिप्पणी।

विधानसभा चुनाव में उम्र प्रत्याशियों के टिकट में बड़ा रोल अदा करेगी। कांग्रेस के कई नेता जहां अपनी उम्र ज्यादा बताकर चुनाव नहीं लड़ने की बात कह चुके हैं, वहीं BJP में उम्रदराज नेताओं पर चर्चाएं तेज हैं। कैलाश मेघवाल चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। वहीं, सूर्यकांता व्यास भी चुनाव लड़ने के मूड में हैं।

BJP और कांग्रेस हर बार प्रत्याशियों की उम्र को लेकर बात करती है, लेकिन कभी भी ठोस फैसला नहीं होता।
कई नेता इस बार 70 पार हुए, कई 80 से ज्यादा

राजस्थान में ऐसे कई नेता हैं जो अब 70 के पार हो चुके हैं। इनमें ज्यादातर वो हैं, जिन्होंने 2018 में अपनी सीट से चुनाव जीते हैं। वहीं कई ऐसे भी हैं जो चुनाव हार गए थे, मगर फिर भी टिकट की रेस में हैं।

BJP और कांग्रेस दोनों में 55 से 60 नेता हैं, जो इस बार 70 या उससे ज्यादा उम्र के हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दोनों पार्टियों के टिकट मिलाकर लगभग 50 टिकट ऐसे होंगे, जो 70 साल या उससे ज्यादा उम्र के नेताओं को मिलेंगे।

पार्टियों का फोकस युवाओं पर, फिर भी उम्रदराज नेता मजबूरी

BJP और कांग्रेस दोनों का फोकस युवाओं पर है। कांग्रेस ने उदयपुर संकल्प शिविर में युवाओं को आगे रखने का निर्णय लिया था। संगठन और टिकटों में 50 प्रतिशत हिस्सा युवाओं को देने की बात हुई। छत्तीसगढ़ अधिवेशन में भी इस पर फोकस रहा।

वहीं, BJP भी लगातार 75 साल या उससे ज्यादा उम्र के विधायकों को टिकट नहीं देने की पैरवी करती आई है। इसके बावजूद दोनों पार्टियां चुनाव के वक्त उम्रदराज नेताओं को टिकट देने पर मजबूर हो जाती हैं।

क्यों नहीं बदल पाते उम्रदराज नेताओं के टिकट

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उम्रदराज नेताओं के टिकट काटना या बदलना पार्टियों के लिए एक बड़े रिस्क की तरह होता है। कई बार युवा चेहरों से वे सफलता हासिल करते हैं, मगर ज्यादातर नुकसान होता है।

हाल ही में कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को साइड करने का असर BJP देख चुकी है। ऐसे में कई तरह से ये नुकसान करता है। ऐसे में पार्टियों के सामने इस तरह के बड़े संकट खड़े हो जाते हैं।
टिकट दिया तो पॉलिसी पर सवाल

पार्टियां जब ज्यादा उम्र के नेताओं को टिकट देती है तो उनकी पॉलिसी पर सवाल उठते हैं। हाल ही में जब CWC के गठन में कांग्रेस ने उम्रदराज नेताओं को ज्यादा जगह दी तो उदयपुर संकल्प पर सवाल उठे।

वहीं टिकटों के मामले में अगर वहां से युवा नेता तैयारी कर रहे हैं तो युवाओं की अनदेखी की बात सामने आती है। पार्टी नेता की एक्टिवनेस को भी दिमाग में रखती है। उम्रदराज नेता चुनाव तो जीत जाते हैं मगर उसके बाद पार्टी के लिए उतना एक्टिवली काम नहीं कर पाते।

बेटे या बेटी को टिकट दिया तो परिवारवाद का डर

अक्सर उम्रदराज नेता अपने टिकट से हटने की एवज में अपने बेटे या बेटी या परिवार के किसी दूसरे सदस्य को टिकट देने की मांग करते हैं।

मगर परिवार में टिकट देने पर पार्टियों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाता है। बेटे या बेटी को टिकट देने पर परिवारवाद का आरोप पार्टियों पर लगता है।

BJP अपने कैम्पेन में लगातार कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगाती आई है। इसी के चलते BJP ने भी परिवार में टिकट नहीं देने की पॉलिसी बनाई थी। राजस्थान के उपचुनाव में धरियावद सीट से इसी का हवाला देकर गौतम लाल मीणा के बेटे को टिकट नहीं दिया था।

वहीं दूसरी ओर बड़े नेताओं के परिवार में टिकट देने पर हार का डर भी पार्टियों को रहता है। इस बार भी कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं जो अपने परिवार के सदस्य को लड़ाना चाह रहे हैं। मगर पार्टी के सर्वे में वो जीतते नजर नहीं आ रहे हैं। इस वजह से भी कई बार पार्टियां उन्हें टिकट देने से बचती हैं।
टिकट काटा तो हार का डर

अगर पार्टी बड़े नेताओं के टिकट काटती है तो इससे हार का डर रहता है। दोनों पार्टियों के आंतरिक सर्वे में उम्र ज्यादा होने के बावजूद नेता किसी अन्य प्रत्याशी या उनके बेटे या बेटी के मुकाबले खुद ज्यादा बेहतर ढंग से जीत रहे हैं।

ऐसे में बड़े नेताओं या उनके परिवार से भी अगर टिकट नहीं दिया जाए तो बगावत या हार का डर पार्टी को रहता है। हाल ही में कैलाश मेघवाल के केस में यही दिखने को मिल रहा है।

मेघवाल BJP से बगावत कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। पहले भी दोनों पार्टियों से कई नेता टिकट कटने पर बगावत कर चुनाव लड़ चुके हैं।

नेता जिनकी उम्र के साथ लीड भी बढ़ रही

अशोक गहलोत : CM गहलोत की लीड लगातार बढ़ रही है। 2008 में गहलोत 16 हजार वोटों से जीते थे। वहीं 2013 में 19 हजार से जीते और 2018 में वे 45 हजार वोटों से जीते।
कैलाश मेघवाल : 2013 में जब 79 साल के थे तब अपनी सीट से 44 हजार वोटों से जीते थे। मगर पिछले चुनाव में जब वे 84 साल के थे, तब वे 74 हजार की लीड से चुनाव जीते।
सुखराम विश्नोई: कांग्रेस के मंत्री सुखराम विश्नोई 2013 में 60 की उम्र में 23 हजार से जीते, तो 2018 में 65 की उम्र में 25 हजार वोटों से जीते थे।
बृजेंद्र ओला : कांग्रेस के मंत्री बृजेंद्र ओला 62 साल की उम्र में 2013 में झुंझुनूं से 18 हजार वोटों से जीते थे। वहीं, पिछले चुनाव में 67 साल की उम्र में 39 हजार से जीते।
नेता जिनकी उम्र के साथ लीड कम हुई

वसुंधरा राजे : पूर्व CM राजे 2008 में 31 हजार वोटों से जीती थीं। 2013 में वे रिकॉर्ड 60 हजार वोटों से जीतीं। मगर 2018 में उनकी लीड घटकर 34 हजार रह गई।
सूर्यकांता व्यास : 2013 में 20 हजार वोटों से जीतने वाली सूर्यकांता व्यास 2018 में सिर्फ 6 हजार वोटों से जीत पाईं। सूर्यकांता अब 85 वर्ष की हो चुकी हैं।
गुलाबचंद कटारिया : कटारिया अब असम के राज्यपाल बन चुके हैं। 2013 में वो 24 हजार वोटों से जीते थे। मगर 2018 में उनकी लीड सिर्फ 9 हजार की रह गई थी।
वासुदेव देवनानी : 2013 में 20 हजार वोटों से जीते थे, लेकिन 2018 में 9 हजार वोटों से ही जीत सके।
कालीचरण सराफ : 2013 में 49 हजार वोटों से बड़ी जीत दर्ज करने वाले कालीचरण सराफ 2018 में बमुश्किल 2 हजार से भी कम वोटों से जीत सके।
नरपतसिंह राजवी : 2013 में 38 हजार वोटों से जीतने वाले नरपत सिंह राजवी 2018 में 32 हजार वोट से ही जीत पाए। राजवी फिलहाल 72 वर्ष के हैं।
ये नेता अब पार कर चुके 80 की उम्र

BJP की सूर्यकांता व्यास 85, अमराराम 80, कांग्रेस के अमीन खान 84, जौहरीलाल मीणा, दीपचंद खैरिया 82, रामनारायण मीणा 81, कांग्रेस के शांति धारीवाल 80, महादेव सिंह 80 साल के हो चुके हैं।

कांग्रेस के हेमाराम चौधरी, दीपेंद्रसिंह शेखावत, भरत सिंह, महादेव सिंह और भरोसी लाल जाटव चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। मगर ये अपने बेटे या परिवार के सदस्यों के लिए टिकट मांग रहे हैं।

सक्रियता होगा पैमाना, मिलेंगे टिकट

टिकट में उम्र की कई बार बहस होने के बावजूद दोनों ही पार्टियो के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि नेताओं की सक्रियता और जीतने वाला उम्मीदवार ही इसका पैमाना होगा।

कांग्रेस से एक वरिष्ठ नेता और राजस्थान की टिकटों को तय करने में अहम भूमिका में मौजूद एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि उम्र बड़ा मसला नहीं है। अगर कोई उम्रदराज नेता भी जीतने की स्थिति में होगा तो उसे टिकट दिया जाएगा। BJP भी इसी फॉर्मूले पर चलेगी। अगर कोई नेता सक्रिय नहीं है या उसकी एक्टिविटी कम है तो उसी का टिकट काटा जाएगा।

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