पाप का त्याग करके ही बना जा सकता हैं श्रावक: सिंघवी

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11वीं राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का समापन
जोधपुर। श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ एवं सम्यक ज्ञान प्रचारक मंडल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 11वीं राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का समापन सत्र सामायिक स्वाध्याय भवन, शक्ति नगर में विराजित आचार्य हीराचंद्र महाराज एवं महेंद्र मुनि के सानिध्य में आयोजित हुआ।
दीपक कुमार सिंघवी ने कहा कि विद्वान जन सीखने व सिखाने का कार्य करते हैं, लेकिन जैन दर्शन में श्रावक व्रत धारण व पाप का त्याग करके ही श्रावक बना जा सकता हैं। उन्होंने कहा कि श्रावकत्व सिखाना और श्रावक बनाना अलग बात है, लेकिन स्वयं श्रावक बनना अपने आप में एक विशेष महत्व रखता हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में महेंद्र मुनि ने युवा पीढ़ी को धर्म के मार्ग में आगे बढक़र आदर्श युवा के रूप में संघ समाज के समक्ष उपस्थित होने का संदेश दिया। विनम्र मुनि ने उपस्थित युवा पीढ़ी को अपने व्यावहारिक जीवन में नीति के साथ व्यवहार करने की शिक्षा प्रदान की। भाग्यप्रभा महाराज ने श्रावक के बारह व्रतों की विस्तार से व्याख्या करते हुए उसकी महत्ता को बताया। गजेंद्र चौपड़ा ने बताया कि कार्यक्रम की अध्यक्षता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश टाटिया और मंडल के अध्यक्ष आनंद चौपड़ा ने की। कार्यक्रम में धनपत सेठिया, सुभाष गुंदेचा, नवरत्न गिडिय़ा, जिनेंद्र ओस्तवाल, मनमोहन कर्णावट, सुमन सिंघवी, श्वेता कर्णावत, अमरचंद चौधरी, लोकेश कुम्भट, आदि उपस्थित थे।

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